LG को दिल्ली का बॉस घोषित करने वाले कानून के खिलाफ हाईकोर्ट ने सुनवाई टाली, कहा- सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करेंगे

By विशाल कुमार | Updated: April 7, 2022 13:39 IST2022-04-07T13:36:29+5:302022-04-07T13:39:31+5:30

जीएनसीटीडी संशोधन कानून दिल्ली के उपराज्यपाल को 'दिल्ली की सरकार' घोषित करके चुनी हुई सरकार की तुलना में व्यापक अधिकार देता है। कानून यह भी प्रावधान करता है कि दिल्ली सरकार के मंत्रिपरिषद के निर्णयों पर कोई कार्यकारी कार्रवाई करने से पहले, एलजी द्वारा निर्दिष्ट सभी मामलों पर एलजी की राय ली जाएगी।

delhi-govt-and-lg-powers-gnctd-amendment-act-high-court-adjourns-challenge | LG को दिल्ली का बॉस घोषित करने वाले कानून के खिलाफ हाईकोर्ट ने सुनवाई टाली, कहा- सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करेंगे

LG को दिल्ली का बॉस घोषित करने वाले कानून के खिलाफ हाईकोर्ट ने सुनवाई टाली, कहा- सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करेंगे

Highlightsजीएनसीटीडी संशोधन कानून एलजी को चुनी हुई सरकार की तुलना में व्यापक अधिकार देता है।हाईकोर्ट ने कहा कि एक समान चुनौती सुप्रीम कोर्ट के समक्ष विचाराधीन है।हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता से मौखिक तौर पर कहा कि हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करेंगे।

नई दिल्ली:दिल्ली हाईकोर्ट ने आज राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (जीएनसीटीडी) संशोधन अधिनियम, 2021 के अधिकार को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई स्थगित कर दी।

बता दें कि, जीएनसीटीडी संशोधन कानून दिल्ली के उपराज्यपाल को 'दिल्ली की सरकार' घोषित करके चुनी हुई सरकार की तुलना में व्यापक अधिकार देता है। कानून यह भी प्रावधान करता है कि दिल्ली सरकार के मंत्रिपरिषद के निर्णयों पर कोई कार्यकारी कार्रवाई करने से पहले, एलजी द्वारा निर्दिष्ट सभी मामलों पर एलजी की राय ली जाएगी।

हाईकोर्ट ने कहा कि एक समान चुनौती सुप्रीम कोर्ट के समक्ष विचाराधीन है और मामले को कल, यानी 8 अप्रैल को कोर्ट नंबर 1 में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है।

हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता से मौखिक तौर पर कहा कि हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करेंगे। हमें उस पर मेहनत क्यों करना चाहिए?

यह जनहित याचिका अधिवक्ता विश्वनाथ अग्रवाल और श्रीकांत प्रसाद ने दायर की हैं। अग्रवाल ने अपनी याचिका में कहा है कि अधिनियमन दिल्ली के एनसीटी बनाम भारत संघ में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के विपरीत है और केशवानंद भारती मामले में स्पष्ट रूप से गणतांत्रिक और लोकतांत्रिक व्यवस्था के सिद्धांत के विपरीत है।

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