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निचली अदालतों में हाईब्रिड सुनवाई के लिए दिल्ली सरकार का 79.48 करोड़ रुपये का बजट पर्याप्त है : अदालत ने पूछा

By भाषा | Updated: October 21, 2021 17:47 IST

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नयी दिल्ली, 21 अक्टूबर दिल्ली उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को अपने रजिस्ट्रार जनरल से कहा कि वह विशेषज्ञों से सलाह करने के बाद बताए कि क्या जिला अदालतों में हाइब्रिड सुनवाई के लिए बुनियादी ढ़ांचा लगाने के लिए दिल्ली सरकार का 79.48 करोड़ रुपये का नया बजट ‘‘पर्याप्त’’ है।

गौरतलब है कि पहले इस काम में 220 करोड़ रुपये की लागत आने का अनुमान लगाया गया था। लेकिन बाद में दिल्ली सरकार ने बजट की समीक्षा करने के बाद इसे अदालतों में हाइब्रिड सुनवाई के लिए बुनियादी ढ़ांचा लगाने के लिए 79.48 करोड़ रुपये कर दिया।

न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की पीठ ने कहा कि उसे यह जानने की ‘‘उत्सुकता’’ है कि कैसे लोक निर्माण विभाग ने करीब 79 करोड़ रुपये का नया बजट तैयार किया और सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र के किसी विशेषज्ञ से सलाह लिए बगैर ही उसे दिल्ली सरकार के वित्त विभाग के पास भेज दिया गया।

अदालत ने इस तथ्य का संज्ञान लिया की उच्च न्यायालय की रजिस्ट्री ने 220 करोड़ रुपये का बजट दिल्ली सरकार को सौंपा था जिसे कम करके 79.48 करोड़ रुपये कर दिया गया है। हाईब्रिड सुनवाई के लिए प्रस्तावित बुनियादी ढ़ांचा के स्पेसिफिकेशन कम करके इस बजट में कटौती की गयी है।

अदालत ने सवाल किया, ‘‘आपने अपनी ओर से 79 करोड़ रुपये की सीमा तय कर दी है। क्या किसी ने दिमाग लगाया कि 79 करोड़ रुपये वर्चुअल अदालत के लिए पर्याप्त हैं? आप बाद में आईटी विभाग के पास कैसे जाएंगे? तो, आप पहले पैसे बर्बाद करेंगे, फिर अपग्रेड करेंगे?’’

पीठ ने कहा, ‘‘सरकार को जनता के पैसे खर्च करने वाले प्रस्तावों की जांच करनी चाहिए और जहां भी संभव हो उसे पैसे बचाने का प्रयास करना चाहिए, लेकिन ऐसा करते हुए अपने विवेक का उपयोग भी करना चाहिए। ऐसा लगता है कि कम किए गए स्पेसिफिकेशन के संबंध में आईटी विभाग की मंजूरी लिए बगैर ही 79 करोड़ रुपये का नया बजट सौंप दिया गया है।’’

अदालत ने मामले की अगली सुनवाई के लिए नौ नवंबर की तारीख तय करते हुए कहा, ‘‘हम राजिस्ट्रार जनरल को निर्देश देते हैं कि वह पीडब्ल्यूडी द्वारा सौंपे गए बजट पर प्रतिक्रया दे और वह विशेष रूप से यह बताए कि क्या नये स्पेसिफिकेशन हाईब्रिड अदालतों में सुनवाई के लिए उपयुक्त है। रजिस्ट्रार जनरल के विचारों के साथ विशेषज्ञों की राय भी होनी चाहिए।’’

उच्च न्यायालय इस संबंध में वकीलों अनिल कुमार हजेलय और मनस्वी झा की याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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