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दिल्ली सरकार, छात्रों ने निजी स्कूलों को वार्षिक फीस लेने की मंजूरी देने के फैसले के खिलाफ की अपील

By भाषा | Updated: June 4, 2021 17:48 IST

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नयी दिल्ली, चार जून राष्ट्रीय राजधानी में पिछले साल लॉकडाउन खत्म होने के बाद बिना सहायता वाले मान्यता प्राप्त स्कूलों को छात्रों से वार्षिक और विकास शुल्क लेने की अनुमति देने के एकल पीठ के आदेश के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय में कई अपील दायर की गई हैं जिनमें से एक अपील आम आदमी पार्टी की सरकार की भी है।

ये याचिकाएं शुक्रवार को पहले मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध की गयी थीं।

हालांकि, पीठ के उपलब्ध नहीं होने के कारण यह मामला न्यायमूर्ति मनमोहन और न्यायमूर्ति नवीन चावला की पीठ के पास भेजा गया।

वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह और दिल्ली सरकार के स्थायी वकील संतोष के. त्रिपाठी तथा छात्रों की पैरवी कर रहे वकीलों ने पीठ से यथास्थिति बरकरार रखने के लिए एक अंतरिम आदेश पारित करने का अनुरोध किया और कहा कि निजी स्कूलों ने अभिभावकों को प्रताड़ित करना शुरू कर दिया है।

बहरहाल, पीठ ने ऐसा कोई आदेश पारित करने से इनकार करते हुए कहा कि उसने याचिकाओं का अभी अध्ययन नहीं किया है। पीठ ने इस मामले को को सात जून के लिये सूचीबद्ध कर दिया है।

बिना सहायता प्राप्त निजी स्कूलों में पढ़ रहे छात्रों की ओर से दायर याचिकाओं में दलील दी गई कि एकल पीठ का 31 मई का फैसला गलत तथ्यों और कानून पर आधारित था।

एकल पीठ ने 31 मई के अपने आदेश में दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशालय द्वारा अप्रैल और अगस्त 2020 में जारी दो कार्यालय आदेशों को निरस्त कर दिया जो वार्षिक शुल्क और विकास शुल्क लेने पर रोक लगाते और स्थगित करते हैं। अदालत ने कहा कि वे ‘अवैध’ हैं और दिल्ली स्कूल शिक्षा (डीएसई) अधिनियम एवं नियमों के तहत शिक्षा निदेशालय को दिए गए अधिकारों के बाहर जाते हैं।

पीठ ने कहा था कि दिल्ली सरकार के पास निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों द्वारा लिए जाने वाले वार्षिक और विकास शुल्क को अनिश्चित काल के लिए स्थगित करने का कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि यह अनुचित रूप से उनके कामकाज को सीमित करेगा।

दिल्ली सरकार ने अपने स्थायी वकील संतोष के. त्रिपाठी द्वारा दायर अपील में दलील दी कि पिछले साल अप्रैल और अगस्त के उसके आदेश वृहद जनहित में जारी किए गए क्योंकि लॉकडाउन के कारण लोग वित्तीय संकट में थे।

शिक्षा निदेशालय ने दलील दी कि ‘‘फीस लेना ही आय का एकमात्र स्रोत नहीं है’’ और अत: इसके विरोधाभासी कोई भी फैसला न केवल गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों के हितों के प्रतिकूल होगा बल्कि उनका नियमन भी मुश्किल हो जाएगा।

छात्रों की तरफ से दायर अपीलों में दावा किया गया है कि स्कूल बंद होने के दौरान इनकी इमारतों की मरम्मत, प्रशासनिक खर्च, किराया और छात्रावास के खर्च जैसी लागत ऐसे में लागू ही नहीं होती है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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