Deep-Sea Mission: क्या है ‘डीप सी मिशन’?, 4000 करोड़ होंगे खर्च, क्या है लक्ष्य, जानें सबकुछ

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: December 27, 2024 10:02 IST2024-12-27T10:01:36+5:302024-12-27T10:02:40+5:30

Deep-Sea Mission: भारत का ‘डीप सी मिशन’ केवल खनिज अन्वेषण तक ही सीमित नहीं है, बल्कि समुद्री विज्ञान का विकास और वनस्पतियों तथा जीव-जंतुओं की खोज एवं समुद्री जैव विविधता का संरक्षण आदि भी इसमें शामिल है।

Deep-Sea Mission What Rs 4000 crore be spent target know everything Government Plans Human 2026 Jitendra Singh | Deep-Sea Mission: क्या है ‘डीप सी मिशन’?, 4000 करोड़ होंगे खर्च, क्या है लक्ष्य, जानें सबकुछ

सांकेतिक फोटो

Highlightsभारत के महत्वाकांक्षी 4,000 करोड़ रुपये के ‘डीप सी मिशन’ के लिए मील का पत्थर है।सक्रिय और निष्क्रिय ‘हाइड्रोथर्मल वेंट’ के प्रमाण की पहचान पहले ही कर ली थी। भविष्य के अभियानों के लिए विशेषज्ञता बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

Deep-Sea Mission: देश के शीर्ष वैज्ञानिकों का कहना है कि भारत का ‘डीप सी मिशन’ सही दिशा में आगे बढ़ रहा है और इस महीने हिंद महासागर की सतह से 4,500 मीटर नीचे सक्रिय ‘हाइड्रोथर्मल वेंट’ (जलतापीय छिद्र) की खोज से वैज्ञानिकों का आत्मविश्वास बढ़ेगा तथा आगे के अन्वेषण के लिए बहुमूल्य अनुभव प्राप्त होगा। भारत का ‘डीप सी मिशन’ केवल खनिज अन्वेषण तक ही सीमित नहीं है, बल्कि समुद्री विज्ञान का विकास और वनस्पतियों तथा जीव-जंतुओं की खोज एवं समुद्री जैव विविधता का संरक्षण आदि भी इसमें शामिल है।

राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं महासागर अनुसंधान केंद्र (एनसीपीओआर) के निदेशक थम्बन मेलोथ ने कहा कि यह तो बस शुरुआत है। राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईओटी) और एनसीपीओआर के भारतीय वैज्ञानिकों की एक टीम ने लगभग एक सप्ताह पहले हिंद महासागर की सतह से 4,500 मीटर नीचे स्थित एक सक्रिय ‘हाइड्रोथर्मल वेंट’ की पहली तस्वीर खींचकर एक बड़ी उपलब्धि हासिल की। यह भारत के महत्वाकांक्षी 4,000 करोड़ रुपये के ‘डीप सी मिशन’ के लिए मील का पत्थर है।

 जिसका उद्देश्य समुद्र की अज्ञात अनुछुए गहराइयों में अन्वेषण कर नए खनिजों और जीवन के रूपों की खोज करना तथा जलवायु परिवर्तन में महासागर की भूमिका को लेकर अधिक समझ विकसित करना है। मेलोथ ने कहा, ‘‘हमने (दक्षिणी हिंद महासागर में मध्य और दक्षिण-पश्चिम भारतीय रिज क्षेत्र में) सक्रिय और निष्क्रिय ‘हाइड्रोथर्मल वेंट’ के प्रमाण की पहचान पहले ही कर ली थी।

लेकिन हम दृश्य चित्र प्राप्त करना चाहते थे। इस बार हमने यही हासिल किया।’’ उन्होंने कहा कि यह खोज ‘नीली अर्थव्यवस्था’ (समुद्री अर्थव्यवस्था) में निवेश को प्रमाणित करती है और वैज्ञानिकों का अन्वेषण जारी रखने का आत्मविश्वास बढ़ाती है। उन्होंने कहा कि यह भविष्य के अभियानों के लिए विशेषज्ञता बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

एनसीपीओआर के निदेशक ने कहा, ‘‘हम इस सफलता से उत्साहित हैं, लेकिन हिंद महासागर में अभी और भी बहुत कुछ खोजा जाना बाकी है। आगे के अध्ययनों के लिए निरंतर समर्थन की आवश्यकता है। हम ऐसे सर्वेक्षणों के लिए एक नया जहाज बना रहे हैं, जो ‘डीप ओशन मिशन’ के तहत तीन साल में तैयार हो जाएगा।’’

‘हाइड्रोथर्मल वेंट’ समुद्र तल में वे खुले स्थान होते हैं जहां भूतापीय रूप से गर्म जल प्रवाहित होता है। ये प्राय: ज्वालामुखीय रूप से सक्रिय क्षेत्रों के पास पाए जाते हैं। ‘हाइड्रोथर्मल वेंट’ समुद्र तल पर गर्म झरनों की तरह होते हैं। पहला ‘हाइड्रोथर्मल वेंट’ 1977 में पूर्वी प्रशांत महासागर में ‘गैलापागोस रिफ्ट’ पर खोजा गया था। तब से, वैज्ञानिकों ने दुनिया के महासागरों में सैकड़ों ‘हाइड्रोथर्मल वेंट’ खोजे हैं।

मेलोथ ने कहा कि ‘हाइड्रोथर्मल वेंट’ दो कारणों से महत्वपूर्ण हैं। पहला, वे निकेल, कोबाल्ट और मैंगनीज जैसे मूल्यवान खनिजों का उत्पादन करते हैं, जो आधुनिक प्रौद्योगिकियों और स्वच्छ ऊर्जा समाधानों के लिए आवश्यक हैं और दूसरा, वे उन अद्वितीय जीव रूपों का समर्थन करते हैं जो जीवित रहने के लिए रसायन संश्लेषण (कीमोसिंथेसिस) नामक प्रक्रिया का उपयोग करते हुए सूर्य के प्रकाश के बिना पनपते हैं।

मेलोथ ने कहा, ‘‘‘हाइड्रोथर्मल वेंट’ की ये पहाड़ियां पानी के नीचे की पर्वत श्रृंखलाओं की तरह हैं, जो हिमालय की तरह ही ऊबड़-खाबड़ हैं। इनकी गहराई लगभग 3,000 से 5,000 मीटर है और पूर्ण अंधकार के कारण इनमें अन्वेषण करना बेहद चुनौतीपूर्ण है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘यह घास के ढेर में सुई ढूंढने जैसा है।’’

टीम ने रोबोटिक उपकरण ‘ऑटोनोमस अंडरवाटर व्हिकल’ (एयूवी) की मदद ली है, जो पानी के अन्दर के दुर्गम भूभाग पर आसानी से चलने, उच्च-रिज़ोल्यूशन की तस्वीरें लेने और डेटा एकत्र करने में सक्षम है। एनआईओटी के निदेशक बालाजी रामकृष्णन ने बताया कि भारत ने ‘हाइड्रोथर्मल वेंट’ का पता लगाने के लिए पिछले दो वर्षों में इस क्षेत्र में चार अभियान चलाए हैं।

रामकृष्णन ने कहा कि वैज्ञानिकों ने एकत्र किए गए वीडियो, तस्वीरों और नमूनों समेत अन्य आंकड़ों का अभी विश्लेषण नहीं किया है। वैज्ञानिकों ने कहा कि ‘हाइड्रोथर्मल वेंट’ न केवल खनिजों का खजाना हैं, बल्कि वे अद्वितीय पारिस्थितिकी प्रणालियों के उद्गम स्थल भी हैं। 

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