दाऊद के भाई को सरेआम उतारा था मौत के घाट, ग्रेजुएट होने के बाद भी जुर्म की दुनिया का सौदागर था मान्या सुर्वे
By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: February 16, 2023 05:29 PM2023-02-16T17:29:25+5:302023-02-16T17:35:23+5:30
साल 1986 में दुबई बसने से पहले दाऊद ने उसे ठिकाने की बहुत कोशिश की थी लेकिन सच्चाई तो यह है कि उस समय में दाऊद की हिम्मत नहीं हुई कि वो उस शख्स से सीधी टक्कर ले सके। कहा जाता है कि दाऊद ने पुलिस के जरिये उस शख्स का एनकाउंटर करवा दिया क्योंकि उसने दाऊद के बड़े भाई शब्बीर इब्राहिम कासकर को मौत के घाट उतार दिया था, जिसने अपराध की दुनिया में डी कंपनी की बुनियाद रखी थी।
मुंबई: बॉम्बे यानी आज की मुंबई, ये सपनों का शहर है, मायानगरी है। यहां पर है फिल्मी सितारों का आशियाना है लेकिन इसी शहर ने देश को दिया सबसे कुख्यात भगोड़ा आतंकी, जिसका नाम है दाऊद इब्राहिम कासकर। 80 के दशक में दाऊद बॉम्बे का सबसे खतरनाक बदमाश हुआ करता था, जिसे मुंबईया भाषा में 'भाई' कहा जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं ये दाऊद इसी मुंबई शहर में एक शख्स के नाम से इतना खौफ खाता था कि वो हर वक्त उसे मारने के फिराक में रहता था।
साल 1986 में दुबई बसने से पहले दाऊद ने उसे ठिकाने की बहुत कोशिश की थी लेकिन सच्चाई तो यह है कि उस समय में दाऊद की हिम्मत नहीं हुई कि वो उस शख्स से सीधी टक्कर ले सके। कहा जाता है कि दाऊद ने पुलिस के जरिये उस शख्स का एनकाउंटर करवा दिया क्योंकि उसने दाऊद के बड़े भाई शब्बीर इब्राहिम कासकर को मौत के घाट उतार दिया था, जिसने अपराध की दुनिया में डी कंपनी की बुनियाद रखी थी। दाऊद के सबसे खौफनाक दुश्मनों में से एक, उसका नाम था मनोहर अर्जुन सुर्वे। मुंबई पुलिस की डायरी में उसका नाम मान्या सुर्वे लिखा था क्योंकि अपराध जगत में हर कोई उसे मान्या के नाम से बुलाता था। मान्या सुर्वे के साथ अपराध जगत में दो इत्तेफाक जुड़ते हैं, पहला यह कि मान्या जिस पुलिस एनकाउंटर में मारा गया। उसे मुंबई का पहला एनकाउंटर कहा जाता है। वहीं, दूसरी यह कि मुंबई के पहले एनकाउंटर में मारा गया मान्या, अंडरवर्ल्ड का पहला ग्रेजुएट डॉन था।
कैसे जुर्म की दुनिया में रखा अपना पहला कदम?
मुंबई एक शहर है जहां दिन-रात, सुबह-शाम, हर पल हर लम्हा जिंदगी दौड़ती है पूरे जोश के साथ। यहां थमने और रुकने के लिए किसी के पास वक्त नहीं है। मुंबई के बारे में एक और किस्सा कहा जाता है कि जो भी इसकी शरण में आया, वो इस शहर का हो लिया। मान्या सुर्वे का किस्सा भी कुछ ऐसा ही है, उसका जन्म साल 1944 में महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के कोकण क्षेत्र के रंपर गांव में हुआ था। मान्या के मां-बाबा कमाने के लिए मुंबई आ गये और उसके बाद से मान्या सुर्वे मुंबई का ही हो गया। मान्या का जानी दुश्मन दाऊद इब्राहिम कासकर भी इसी रत्नागिरी जिले का ही रहने वाला था। खैर दाऊद की कहानी फिर कभी, आज हम उसके बारे में बताते हैं, जिससे दाऊद भी खाता था खौफ।
मुंबई के कीर्ति कॉलेज से ग्रेजुएशन करने वाला मान्या 60 के दशक में तो सही रास्ते पर था लेकिन उसके लक्षण तब खराब होने शुरू हुए, जब वो अपने सौतेले भाई भार्गव दादा और उसके दोस्त सुमेश देसाई की खराब सोहबत में आया। उन दिनों भार्गव दादर इलाके का छोटा-मोटा मवाली हुआ करता था लेकिन उसके साथ अपराध की ट्रेनिंग ले रहा मान्या उससे भी ज्यादा खतरनाक और शातिर था। ऐसा माना जाता है कि मान्या ग्रेजुएट था तो उसमें सोचने और प्लानिंग करने की सलाहियत भार्गव से ज्यादा थी। भार्गव अपनी गुंडई का सिक्का दादर में चलाकर खामोश था लेकिन मान्या की नजर पूरे मुंबई अंडरवर्ल्ड पर थी।
फिल्म 'सत्या' याद है आपको, "मुंबई का किंग कौन?... भीखू म्हात्रे" कुछ-कुछ उसी तरह से। हालांकि, मजे की बात ये है कि मान्या सुर्वे को पहले ही कल्त के आरोप में आजीवन कारावास की सजा हो गई थी। ये वाकया है साल 1969 का। मान्या के सौतेले भाई भार्गव के साथ दांदेकर नाम के एक शख्स की अदावत चल रही थी।
भार्गव, मान्या और दांदेकर के बीच दादर में टक्कर हो गई और उसी समय मान्या के हाथ दांदेकर के खून से रंग गये। कहा जाता है कि मान्या हर समय अपने पास एसिड बॉटल्स रखता था। उस जमाने में पिस्टल और रिवाल्वर का उतना चलन नहीं था और पुलिस के पास भी 303 की राइफल हुआ करती थी। खैर, हत्या के कुछ ही दिनों के बाद मान्या को पुलिस ने पकड़ा और साल 1975 में कोर्ट ने उसे आजीवन कारावास की सजा दे दी।
उसे पुणे की यारवदा जेल भेज दिया गया। जेल में जाते ही मान्या की टक्कर हुई सुहास भटकर के चेलों से। मान्या बैरक में ही भटकर के चेलों को कुटने लगा। जेल वॉर्डन ने फौरन पगली घंटी बजाई और तीन-चार सिपाही भागे-भागे मान्या के बैरक में पहुंचे और उसकी अच्छे से मरम्मत की, लेकिन मान्या कहां मानने वाला था, वो अक्सर सुहास भटकर के चमचों को पिटता रहता था। अंत में तंग आकर जेल प्रशासन ने उसे रत्नागिरी जेल में शिफ्ट कर दिया। जहां पहुंचने ही उसने नया नाटक शुरू कर दिया। जी हां, उसने खान-पीना छोड़ दिया। धीरे-धीरे मान्या की तबियत खराब होने लगी। जेल अधिकारियों ने उसे रत्नागिरी के जिला अस्पताल में भर्ती कराया, जहां से वो सिपाहियों की आंख में धूल झोंककर 14 नवम्बर 1979 को फरार हो गया।
फरार होने के बाद मान्या सीधे मुंबई पहुंचा, जहां उसने गुनाह की दुनिया में रखा था पहला कदम। फरार मान्या और भी खतरनाक हो गया था। सुर्वे ने अपना गैंग बनाया और उसमें धारावी के बदमाश शेख मुनीर और डोम्बिवली के गुंडे विष्णु पाटिल को शामिल किया। दादर, धारावी और डोम्बिवली में यह बात फैल चुकी थी मान्या जेल से फरार होकर मुंबई में दाखिल हो चुका है। कई जगहों से उसने हफ्ता वसूली भी शुरू कर दी। बेखौफ मान्या ने 5 अप्रैल 1980 को दादर से चोरी की एक एम्बेसडर कार और उससे जाकर लक्ष्मी ट्रेडिंग कंपनी में 5700 रुपये लूट लिये। अभी पुलिस लूट के मामले को समझ पाती कि 15 अप्रैल को मान्या ने अपने साथी शेख मुनीर के दुश्मन शेख अजीज की हत्या कर दी। मान्या कितना खूंखार हो चुका था इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि अजीज की हत्या के ठीक 15 दिन बाद यानी 30 अप्रैल को उसने दादर पुलिस स्टेशन के पुलिस कांस्टेबल को छुरा मार दिया।
मान्या को दाऊद के परिवार से दुश्मनी पड़ी भारी
मान्या सुर्वे के अपराध से मुंबई पुलिस की डायरी के पन्ने भरते जा रहे थे और वो लगातार सिरदर्द बनता जा रहा था। दूसरी तरफ डी कंपनी भी तेजी से उभर रही थी। दाऊद भी अपने भाई सब्बीर के साथ स्मगलिंग, जुआ, हफ्ता वसूली के अलावा ठेके पर कत्ल कराने के काम में कुख्यात हो चुका था। सुर्वे को लगता था कि दाऊद परिवार के रहते वो मुंबई पर अपना सिक्का नहीं जमा सकता है। सुर्वे ने तय किया वो दाऊद के भाई सब्बीर को ठिकाने लगाएगा। 12 फरवरी 1981 की शाम में दाऊद का भाई सब्बीर जब चौपाटी की रेत पर अपनी प्रेमिका चित्रा के साथ प्यार की बातें कर रहा था तो उसे नहीं पता था कि मोहब्बत की यह शाम उसके जिंदगी को खत्म करने वाली है। सब्बीर प्रेमिका चित्रा के साथ बांद्रा से होते हुए पेडर रोड पहुंचा तो उसे एहसास हुआ कि गाड़ी का तेल खत्म हो रहा है। सब्बीर ने सोचा कि सिद्धि विनायक के पास वाले पेट्रोल पंप से तेल भरवा लेगा। सब्बीर की कार सिद्धिविनायक से पहले थोड़ी धीमी हुई। रात में लगभग एक बजे प्रभादेवी पेट्रोल पंप पर सब्बीर की गाड़ी के सामने एक अंबेसेडर पीछे से अवरटेक करती है।
खतरे के समझते हुए सब्बीर ने जैसे ही गाड़ी में रखी गन उठाने की कोशिश की तब तक मान्या सुर्वे ने उसकी गाड़ी पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। सारी की सारी गोलियां कार को चीरती हुई सब्बीर के बदन को छलनी कर गई थीं। मान्या ने कुल नौ गोलियां सब्बीर के बदन में उतार दी, लेकिन सब्बीर तब भी नहीं मरा। मान्या ने गन फेंकी और रामपुरी चाकू निकाला। सब्बीर के गोली से छलनी शरीर पर उसने ताबड़तोड़ कई वार किये। दाऊद के भाई सब्बीर की मौके पर ही मौत हो गई।
रात में लगभग 2 बजे दाऊद ने शब्बीर की लाश पर कसम खाई कि वो मान्या को नहीं छोड़ेगा। उसके आदमियों ने मान्या के अड्डों पर हमला कर दिया। दाऊद ने बहुत तलाश किया लेकिन मान्या का कहीं पता नहीं चल पा रहा था। सब्बीर को मारने वाले मान्या को ठिकाने लगाने के लिए दाऊद प्लान बनाने लगा। दाऊद के दिमाग में बस एक ही बात चल रही थी और वो था भाई के कत्ल के इंतकाम।
वहीं, सब्बीर की हत्या के कारण मुंबई पुलिस की खूब किरकिरी हुई। दाऊद की मुंबई पुलिस में अच्छी पैठ थी, खुद उसके पिता इब्राहिम कासकर मुंबई पुलिस में सिपाही थे। सीधे तौर पर सबको पता था कि मान्या सुर्वे ने इस हत्या को अंजाम दिया है लेकिन कोई कुछ नहीं कर पा रहा था। इस बीच दाऊद इब्राहिम ने तत्कालीन मुख्यमंत्री अब्दुल रहमान अंतुले से मुलाकात की। कहते हैं सीएम रहमान ने भी दाऊद के भाई की हत्या पर अफसोस जताया और सब्बीर के हत्यारों को सजा दिलाने की बात कही। मुख्यमंत्री अब्दुल रहमान अंतुले भी दाऊद और मान्या की तरह कोंकण क्षेत्र से आते थे। उन्होंने मुंबई पुलिस के तत्कालीन पुलिस कमिश्नर जूलियो रिबेरो को बुलाया और मान्या सुर्वे के बारे में सख्त एक्शन लेने के लिए कहा। सीएम का आदेश मिलते ही जूलियो रिबेरो ने एक स्पेशल सेल बनाया। जिसे पहला टार्गेट मान्या सुर्वे का दिया गया। इस स्पेशल सेल में सीनियर पुलिस इंस्पेक्टर यशवंत भिड़े, राजा तंबत, संजय परांडे, इसाक बागवान जैसे तेज-तर्रार अफसर थे।
मुंबई के पहले एनकाउंटर में ऐसे मारा गया मान्या
अब मन्या की अंतिम गिनती शुरू हो गई थी लेकिन इस बात से बेफिक्र मान्या एक दूसरी दुनिया में खोया हुआ था। जी हां, कुख्यात अपराधी मान्या सुर्वे को मोहब्बत जैसी लाइलाज बीमारी हो गई थी और यही मोहब्बत आगे चलकर मान्या के मौत का सबब बनी। मुंबई पुलिस का टारगेट नंबर वन मान्या सुर्वे अक्सर वडाला के अंबेडकर कॉलेज के पास एक लड़की से मिलने के लिए जाता था। स्पेशल सेल को भी इस बात की जानकारी मिली थी। टीम इसी सूचना पर काम कर ही रही थी कि 11 जनवरी 1982 को उसे मुखबिरों से पता चला कि मान्या सुबह में 10.30 बजे वडाला के अंबेडकर कॉलेज आने वाला है। मुखबिरों की पक्की सूचना के आधार पर स्पेशल टीम वडाला के अंबेडकर कॉलेज के आसपास फैल गई। तकरीबन 10.35 बजे एक लड़की बस स्टॉप पर आकर खड़ी होती है। मुखबीरों के सूचना के मुताबिक, वो मान्या सुर्वे की प्रेमिका थी। पुलिस सधी हुई निगाहों से मान्या का इंतजार कर रही थी। करीब 10.45 बजे मान्या एक टैक्सी उतरता है, पुलिस उसे पहचान लेती है। पुलिस अफसर यशवंत भिड़े ने इशारा दिया और टीम के लोग उसके करीब जाने लगे।
तभी मान्या को लगा कि उसके करीब कुछ लोग बढ़ रहे हैं। उसने अपने मोजे में रखा रिवाल्वर जैसे ही निकाला। राजा तंबत और इसाक बागवान ने मान्या पर फायर झोंक दिया। बागवान की गोली ने मान्या का सीना छलनी कर दिया। वहीं, तंबत की दो गोलियां भी मान्या के शरीर में दाखिल हो चुकी थीं। उसके बाद भी मान्या ने एक एसिड बॉटल निकाली और पुलिस पर फेंका लेकिन शरीर में ताकत नहीं बची थी और वो बॉटल उसके पास ही गिर गई। गोली लगे मान्या का शरीर एसिड से भी बुरी तरह झुलस गया। पुलिस ने उसे कब्जे में लिया और गाड़ी में डालकर सायन के लोकमान्य तिलक अस्पताल में ले गई। डॉक्टर ने उसे मुर्दा करार दिया। मान्या सुर्वे भी दाऊद के भाई सब्बीर की तरह मोहब्बत के चक्कर में मारा गया। कहते हैं कि मुंबई पुलिस को मान्या सुर्वे की मुखबिरी किसी और ने नहीं बल्कि खुद दाऊद इब्राहिम ने की थी।