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दाभोलकर की हत्या का मामले में HC ने महाराष्ट्र सरकार की आलोचना की

By भाषा | Updated: July 5, 2019 06:02 IST

सीबीआई के वकील अनिल सिंह ने अदालत को बताया कि जांच एजेंसी ने ठाणे जिले में स्थित क्रीक में एक अस्थायी प्लेटफार्म लगाने के लिए महाराष्ट्र तटीय जोन प्रबंध प्राधिकरण (एमसीजेडएमए) से इजाजत मांगी थी, ताकि गोताखोर हत्या में इस्तेमाल हथियार ढूंढ सकें। सीबीआई के मुताबिक एक गिरफ्तार आरोपी ने हथियारों को नष्ट कर क्रीक में फेंक दिया था।

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बंबई उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को महाराष्ट्र सरकार की उस वक्त आलोचना की, जब उसे बताया गया कि तर्कवादी नरेंद्र दाभोलकर की हत्या की जांच कर रही सीबीआई जरूरी इजाजत के अभाव में ठाणे क्रीक में हथियार नहीं ढूंढ पाई। न्यायमूर्ति एससी धर्माधिकारी और न्यायमूर्ति जीएस पटेल की पीठ ने कहा कि असंतोष को खामोश करने की कोशिश से जुड़े अपराधों के मामलों में सरकार को यह फैसला करना चाहिए कि क्या वह इसी तरह से काम करते रहना चाहती है।

सीबीआई के वकील अनिल सिंह ने अदालत को बताया कि जांच एजेंसी ने ठाणे जिले में स्थित क्रीक में एक अस्थायी प्लेटफार्म लगाने के लिए महाराष्ट्र तटीय जोन प्रबंध प्राधिकरण (एमसीजेडएमए) से इजाजत मांगी थी, ताकि गोताखोर हत्या में इस्तेमाल हथियार ढूंढ सकें। सीबीआई के मुताबिक एक गिरफ्तार आरोपी ने हथियारों को नष्ट कर क्रीक में फेंक दिया था।

उन्होंने बताया कि हालांकि, प्राधिकरण ने कुछ हिचकिचाहट दिखाई और प्लेटफॉर्म लगाने के लिए कुछ शर्तें लगा दीं। इस बात से नाराज होकर अदालत ने कहा कि यदि क्रीक में कोई अप्रिय घटना हुई थी तो जांच एजेंसियां फौरन ही रेस्क्यू अभियान चला सकती थी या प्राधिकरण की सहमति का इंतजार कर सकती थी।

अदालत ने कहा, ‘‘हम यह नहीं समझ पा रहे हैं कि इस तरह के अभियान से पारिस्थितिकी और पर्यावरण किस तरह से प्रभावित होता।’’ पीठ ने सरकारी वकील पी काकडे को निदेशक (पर्यावरण विभाग) और प्राधिकरण के सदस्य सचिव से इस मुद्दे पर बात करने का निर्देश दिया।

अदालत ने कहा, ‘‘हम इस निष्कर्ष पर पहुंचने में नहीं हिचकिचाएंगे कि राज्य स्तर के पदाधिकारी आवश्यक साजो सामान से सहयोग नहीं कर रहे हैं और मामले की जांच में जांच एजेंसियों को सहयोग नहीं दे रहे हैं।’’ अदालत ने कहा, ‘‘हम अधिकारियों को तलब करने में भी नहीं हिचकेंगे।’’

पीठ ने कहा, ‘‘इस अपराध को अंजाम देने वालों ने यह सुनिश्चित किया कि असहमति को खामोश कर दिया जाए, कम से कम अस्थायी तौर पर...यदि आप बहुसंख्यक लोगों से कुछ अलग राय रखेंगे तो आपका भी इन शख्सयितों जैसा हश्र होगा। इस संदेश पर सरकार को अवश्य संज्ञान लेना चाहिए।’’

अदालत दाभोलकर और दिवंगत कम्युनिस्ट नेता गोविंद पानसरे के परिजनों की ओर से दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। दरअसल, ये लोग जांच की अदालती निगरानी चाहते हैं।

गौरतलब है कि अंधविश्वास के खिलाफ मुहिम चलाने वाले दाभोलकर की 20 अगस्त 2013 को गोली मार कर हत्या कर दी गई थी। वहीं, पानसरे को 16 फरवरी 2015 को गोली मार दी गई थी और चोट के चलते चार दिन बाद उनकी मौत हो गई। 

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