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'अदालतें किसी को आरोपी के रूप में तलब करने की शक्ति का प्रयोग लापरवाह तरीके से नहीं कर सकतीं’

By भाषा | Updated: September 18, 2021 16:53 IST

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नयी दिल्ली, 18 सितंबर उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि यदि कोई व्यक्ति आरोपी नहीं है, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि उसने अपराध किया है, तो अदालतें ऐसे व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए अपने अधिकार का इस्तेमाल तभी कर सकती हैं, जब उसके खिलाफ “पर्याप्त और पुख्ता सबूत” हों और वे ‘‘लापहवाह तरीके से’’ इसका उपयोग नहीं कर सकतीं।

दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 319 के तहत, जब किसी अपराध की जांच या मुकदमे के दौरान सबूतों से यह प्रतीत होता है कि मामले में आरोपी नहीं बनाए गए किसी व्यक्ति ने अपराध किया है, तो अदालत ऐसे व्यक्ति के खिलाफ उस अपराध के लिए कार्यवाही कर सकती है।

न्यायमूर्ति के एम जोसफ और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा की पीठ ने एक आपराधिक मामले की सुनवाई के दौरान कहा, ‘‘यह एक और मामला है, जिसमें सीआरपीसी की धारा 319 के तहत शक्ति का प्रयोग करते हुए किसी नए व्यक्ति के खिलाफ समन जारी करके उसे इस अदालत में लाया गया है।’’

पीठ ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 319 के तहत शक्ति का इस्तेमाल करने के लिए इस अदालत की संविधान पीठ द्वारा निर्धारित पैमानों में अन्य बातों के साथ-साथ यह सिद्धांत भी शामिल है कि जब किसी व्यक्ति के खिलाफ पर्याप्त और पुख्ता सबूत हों, तभी धारा 319 का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

पीठ ने 13 सितंबर के अपने आदेश में कहा, ‘‘ इस शक्ति का इस्तेमाल लापरवाह तरीके से नहीं किया जा सकता है।’’

शीर्ष अदालत ने हरदीप सिंह बनाम पंजाब राज्य और अन्य के मामले में संविधान पीठ के 2014 के फैसले का हवाला दिया, जिसमें सीआरपीसी की धारा 319 के इस्तेमाल के बारे में बताया गया है। इस फैसले में कहा गया था कि यह किसी मामले में पेश किए गए सबूतों पर निर्भर करेगा कि क्या उस व्यक्ति के खिलाफ कार्यवाही करने के पर्याप्त एवं पुख्ता सबूत हैं, जिसे आरोपी नहीं बनाया गया है।

शीर्ष अदालत ने रमेश चंद्र श्रीवास्तव द्वारा दायर एक याचिका पर फैसला सुनाते समय यह टिप्पणी की। श्रीवास्तव के चालक का शव 2015 में मिला था। मृतक की पत्नी ने आरोप लगाया और अदालत में बयान दिया है कि श्रीवास्तव को अभियोजन पक्ष ने आरोपी नहीं बनाया है, लेकिन उसने अपने दोस्तों की मदद से उसके पति की हत्या कर दी।

निचली अदालत ने मृतक की पत्नी के बयान के आधार पर श्रीवास्तव को आरोपी के रूप में तलब किया था। श्रीवास्तव ने तब निचली अदालत के आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी, लेकिन उच्च न्यायालय में उसकी याचिका खारिज कर दी गई, जिसके बाद उसने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया।

शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘हमारा विचार है कि इस मामले के तथ्यों के आधार पर हमारे लिए सत्र न्यायाधीश को निर्देश देना आवश्यक हो जाता है कि वे इस मामले में न्यायालय द्वारा स्पष्ट रूप से प्रतिपादित सिद्धांतों के आलोक में मामले पर नए सिरे से विचार करें।’’

उसने श्रीवास्तव की अपील को स्वीकार कर लिया और इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले एवं एक आरोपी के रूप में उसे तलब करने के निचली अदालत के आदेश को दरकिनार कर दिया।

पीठ ने कहा, ‘‘सत्र न्यायाधीश 30 सितंबर, 2021 को इस मामले की सुनवाई करेंगे। उक्त दिन सभी पक्षकार मौजूद रहेंगे। इसके बाद अदालत हरदीप सिंह मामले (2014 के फैसले) में इस अदालत द्वारा निर्धारित सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए उचित आदेश पारित करेगी।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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