नेताओं के खिलाफ सीबीआई मामलों की धीमी जांच व सुनवाई से न्यायालय चिंतित
By भाषा | Updated: August 26, 2021 22:48 IST2021-08-26T22:48:29+5:302021-08-26T22:48:29+5:30

नेताओं के खिलाफ सीबीआई मामलों की धीमी जांच व सुनवाई से न्यायालय चिंतित
उच्चतम न्यायालय ने कानून निर्माताओं के खिलाफ सीबीआई मामलों में धीमी जांच और अभियोजन में देरी पर "गहरी चिंता" जतायी है। इसके साथ ही न्यायालय ने एजेंसी द्वारा त्वरित जांच और सुनवाई सुनिश्चित करने के लिए कई निर्देश जारी किए जिनमें उच्च न्यायालयों द्वारा अतिरिक्त विशेष अदालतों की स्थापना शामिल है।प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण की अध्यक्षता वाली पीठ ने उच्च न्यायालयों से कहा कि लंबित मुकदमों के त्वरित निपटान के लिए जहां भी ऐसी अतिरिक्त अदालतों का गठन करने की आवश्यकता हो, वहां विशेष अदालतें स्थापित करें और इस मुद्दे पर "केंद्र या राज्य सरकारों द्वारा किसी असहयोग" से उसे अवगत कराएं। न्यायालय ने मध्य प्रदेश में कानून निर्माताओं के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए भोपाल में एक विशेष अदालत पर न्याय मित्र की टिप्पणी से सहमति जतायी और कहा कि यह "न्याय का मजाक है क्योंकि राज्य के विभिन्न हिस्सों से अभियोजन और बचाव पक्ष के लिए अदालत में उपस्थित होना भौतिक रूप से असंभव है।" पीठ ने बुधवार को कहा था कि राज्यों के पास कानून निर्माताओं के खिलाफ "दुर्भावनापूर्ण" मामलों को वापस लेने की शक्ति है। पीठ ने बृहस्पतिवार को न्यायालय की वेबसाइट पर अपना आदेश पोस्ट किया और वकील अश्विनी उपाध्याय की जनहित याचिका पर पारित पहले के आदेशों के साथ आगे के निर्देश जारी किए। याचिका में नेताओं के खिलाफ मामले की त्वरित सुनवाई का अनुरोध किया गया है।पीठ ने कहा, ''ब्योरे में जाए बिना, हम इन (सीबीआई) मामलों की वर्तमान स्थिति को लेकर काफी चिंतित हैं। सॉलिसिटर जनरल ने हमें आश्वासन दिया कि वह एजेंसी को पर्याप्त मानव संसाधन और बुनियादी ढांचा उपलब्ध कराने के लिए निदेशक, सीबीआई के साथ मामले को उठाएंगे ताकि लंबित जांच जल्द से जल्द पूरी हो सके।’’ सीबीआई की रिपोर्ट के अनुसार विभिन्न सीबीआई अदालतों में मौजूदा और पूर्व सांसदों से जुड़े 121 मामले लंबित हैं वहीं मौजूदा और पूर्व विधायकों के खिलाफ 112 मामले लंबित हैं। पीठ ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा, "इस रिपोर्ट के अनुसार, 37 मामले अब भी जांच के चरण में हैं, सबसे पुराना मामला 24 अक्टूबर 2013 को दर्ज किया गया था। विवरण से पता चलता है कि ऐसे कई मामले हैं जिनमें आरोप पत्र वर्ष 2000 में दायर किया गया था। लेकिन अब भी आरोपियों की उपस्थिति, आरोप तय करने या अभियोजन साक्ष्य आदि को लेकर लंबित हैं।
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