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न्यायालय ने गिरफ्तारी, दंडात्मक कदम के खिलाफ आदेश पारित करने को लेकर उच्च न्यायालयों को आगाह किया

By भाषा | Updated: April 13, 2021 20:58 IST

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नयी दिल्ली, 13 अप्रैल उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि संज्ञेय अपराधों की जांच लंबित होने के दौरान आरोपी को गिरफ्तारी से संरक्षण देने या उनके खिलाफ दंडात्मक कदम नहीं उठाने का आदेश पारित करते समय उच्च न्यायालय सावधानी बरतें ताकि प्रारंभिक दौर में ही आपराधिक कार्यवाही निष्प्रभावी नहीं हो।

शीर्ष अदालत ने कहा कि बिना कारण बताए ऐसे अंतरिम आदेश पारित होने से जांच में बाधा आएगी। शीर्ष अदालत ने कहा कि अदालतों को संज्ञेय अपराधों में किसी भी जांच को निष्प्रभावी नहीं करना चाहिए और एक शिकायत या प्राथमिकी रद्द करना ‘‘सामान्य नियम के बजाय’’ अपवाद होना चाहिए।

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिका निरस्त करने के अनुरोध पर विचार से इनकार करते हुए अपने फैसले में कहा ‘‘हम एक बार फिर उच्च न्यायालयों को जांच पूरी होने तक और अंतिम रिपोर्ट दाखिल नहीं होने तक ‘‘कोई दंडात्मक कदम नहीं उठाने' या गिरफ्तार नहीं करने जैसे आदेश पारित करने के खिलाफ आगाह करते हैं।’’

पीठ में न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना भी शामिल थे। पीठ ने कहा कि न्यायपालिका और पुलिस के कार्य "पूरक, हैं तथा रद्द करने की शक्ति का इस्तेमाल संयम से और दुर्लभतम मामलों में किया जाना चाहिए।

शीर्ष अदालत ने यह बात अपने 64-पृष्ठों के फैसले में कही जिसके जरिये उसने पिछले साल सितंबर में बम्बई उच्च न्यायालय के अंतरिम आदेश को खारिज कर दिया था जिसमें निर्देश दिया था कि धोखाधड़ी, जालसाजी और अन्य के आरोप में 2019 में दर्ज प्राथमिकी के संबंध में आरोपी के खिलाफ ‘‘कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए।

पीठ ने अपने फैसले में कहा कि उच्च न्यायालयों को इस बात की सराहना करनी चाहिए कि न्याय के आपराधिक प्रशासन में शीघ्र जांच आवश्यक है।

पीठ ने कहा, ‘‘उच्च न्यायालय के आदेश से उन कारणों का खुलासा होना चाहिए कि उसने कार्यवाही लंबित रहने के दौरान धारा 482 सीआरपीसी के तहत एक अंतरिम निर्देश क्यों पारित किया।’’

पीठ ने कहा, ‘‘इस तरह के आदेश देने से न केवल जांच पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा बल्कि इसका कानून का नियम बनाए रखने में दूरगामी प्रभाव पड़ेगा।’’

पीठ ने कहा कि इस मुद्दे पर शीर्ष न्यायालय द्वारा कानून निर्धारित किये जाने के बावजूद कुछ उच्च न्यायालय ऐसे आदेश पारित करना जारी रखे हुए हैं।

न्यायालय ने अपनी रजिस्ट्री को इस फैसले की प्रति सभी उच्च न्यायालय को अग्रेषित करने का निर्देश दिया है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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