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न्यायालय ने चेन्नई-सलेम राजमार्ग के लिये भूमि अधिग्रहण के वास्ते केन्द्र की अधिसूचना को सही ठहराया

By भाषा | Updated: December 8, 2020 18:57 IST

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नयी दिल्ली, आठ दिसंबर उच्चतम न्यायालय ने चेन्नई-सलेम आठ लेन की 10,000 करोड़ रुपए की लागत वाली हरित राजमार्ग परियोजना की खातिर भूमि अधिग्रहण के लिये जारी अधिसूचना को मंगलवार को सही ठहराया और कहा कि केन्द्र तथा राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण अब इस राजमार्ग निर्माण के वास्ते भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया आगे बढ़ा सकते हैं।

शीर्ष अदालत ने हालांकि इस परियोजना के लिये भूमि अधिग्रहण के खिलाफ भूस्वामियों की अपील खारिज कर दी।

न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने केन्द्र और राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण तथा पीएमके नेता अंबुमणि रामदास सहित कुछ भू स्वामियों की अपील पर यह फैसला सुनाया। यह अपील मद्रास उच्च न्यायालय के आठ अप्रैल, 2019 के फैसले के खिलाफ दायर की गयी थीं।

उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में नये राजमार्ग के निर्माण के लिये विर्निदिष्ट भूमि के अधिग्रहण के लिये राष्ट्रीय राजमार्ग कानून की धारा 3ए(1) के अंतर्गत भूमि अधिग्रहण के लिये जारी अधिसूचनाओं को गैरकानूनी और कानून की नजर में दोषपूर्ण बताया था। यह नया राजमार्ग ‘भारतमाला परियोजना-चरण 15’ परियोजना का हिस्सा है।

शीर्ष अदालत की पीठ ने अपने निर्णय में केन्द्र और राजमार्ग प्राधिकरण की अपील, मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले में राजमार्ग परियोजना के लिये भूमि अधिग्रहण के लिये अधिसूचना निरस्त करने तक स्वीकार कर ली और उसे अपनी प्रक्रिया के साथ आगे बढ़ने की अनुमति दे दी।

आठ लेन की 277.3 किमी लंबी हरित राजमार्ग की इस परियोजना का मकसद चेन्नै और सलेम के बीच की यात्रा का समय आधा करना अर्थात करीब सवा दो घंटे कम करना है।

हालांकि, इस परियोजना का कुछ किसानों सहित स्थानीय लोगों का एक वर्ग विरोध कर रहा था क्योंकि उन्हें अपनी भूमि गंवाने का भय था। दूसरी ओर, पर्यावरणविद भी वृक्षों की कटाई का विरोध कर रहे थे। यह परियोजना आरक्षित वन और नदियों से होकर गुजरती है।

न्यायमूर्ति खानविलकर ने अपने 140 पन्ने के फैसले में मद्रास उच्च न्यायालय के निर्णय में राजस्व प्राधिकारियों को एनएचएआई कानून के तहत जारी इस अधिसूचना के आधार पर एनएचएआई के पक्ष में की गयी दाखिल खारिज की प्रविष्टियां बहाल करने का निर्देश दिया था।

पीठ ने अपने फैसले में कहा कि 1956 के कानून की धारा 3ए के तहत अधिसूचना के कारण न तो अधिग्रहण करने वाली संस्था और न ही एनएचएआई का संबंधित जमीन पर कब्जा और न ही उस पर इसका अधिकार है, अत: उनके पक्ष में दाखिल खारिज में बदलाव करना होगा। पीठ ने कहा कि इस सीमा तक हम उच्च न्यायालय से सहमत हैं कि अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी होने और भूमि का कब्जा लिये बगैर 1956 के कानून की धारा 3ए के अंतर्गत अधिसूचना के आधार पर दाखिल खारिज रजिस्टर में प्रविष्टि में बदलाव का समर्थन नहीं किया जा सकता और इसलिए पहली प्रविष्टियां बहाल करनी होंगी।

पीठ ने स्पष्ट किया कि उसने पर्यावरण और वन कानूनों के तहत सक्षम प्राधिकारियों द्वारा परियोजना के लिये दी गयी मंजूरी की वैधता और इसके सही होने के मुद्दे पर कोई राय व्यक्त नहीं की है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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