नयी दिल्ली, सात दिसंबर उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि देश में 1975 में आपातकाल लागू करने की घोषणा को पूरी तरह असंवैधानिक करार देने के लिये 94 वर्षीय एक वृद्धा द्वारा दायर याचिका पर अगले सप्ताह सुनवाई की जायेगी।
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति ऋषिकेष रॉय की पीठ के समक्ष यह याचिका सोमवार को सुनवाई के लिये सूचीबद्ध थी। पीठ ने इस मामले को 14 दिसंबर के लिये सूचीबद्ध कर दिया है।
इस याचिका में इस असंवैधानिक कृत्य में सक्रिय भूमिका निभाने वालों से 25 करोड़ रुपए का मुआवजा दिलाने का भी अनुरोध किया गया है।
याचिकाकर्ता वीरा सरीन ने अपनी याचिका में दावा किया है कि वह और उनके पति आपातकाल के दौरान तत्कालीन सरकार के प्राधिकारियों और अन्य की ज्यादतियों के शिकार हैं, जो 25 जून, 1975 को आधी रात से चंद मिनट पहले लागू की गयी थी।
देश में आपातकाल मार्च 1977 में खत्म हुआ था।
सरीन ने याचिका में कहा है कि उनके पति का उस समय दिल्ली स्वर्ण कलाकृतियों का कारोबार था लेकिन उन्हें तत्कालीन सकरारी प्राधिकारियों की मनमर्जी से अकारण ही जेल में डाले जाने के भय के कारण देश छोड़ना पड़ा था।
याचिका के अनुसार, याचिकाकर्ता के पति की बाद में मृत्यु हो गयी और उनके खिलाफ आपातकाल के दौरान शुरू की गयी कानूनी कार्यवाही का उन्हें सामना करना पड़ा था।
याचिका के अनुसार, आपातकाल की वेदना और उस दौरान हुयी बर्बादी का दंश उन्हें आज तक भुगतना पड़ रहा है। याचिकाकर्ता के अनुसार उनके परिवार को अपने अधिकारों और संपत्ति पर अधिकार के लिये 35 साल दर-दर भटकना पड़ा
याचिका के अनुसार उस दौर में याचिकाकर्ता से उनके रिश्तेदारों और मित्रों ने भी मुंह मोड़ लिया क्योंकि उनके पति के खिलाफ गैरकानूनी कार्यवाही शुरू की गयी थी और अब वह अपने जीवनकाल में इस मानसिक अवसाद पर विराम लगाना चाहती हैं, जो अभी तक उनके दिमाग को झकझोर रहा है।
याचिका में आरोप लगाया गया है कि अभी तक उनके आभूषण, कलाकृतियां, पेंटिंग, मूर्तियां और दूसरी कीमती चल सम्पत्तियां उनके परिवार को नहीं सौंपी गयी हैं और इसके लिये वह संबंधित प्राधिकारियों से मुआवजे की हकदार हैं।
याचिका में दिसंबर 2014 के दिल्ली उच्च न्यायालय के उस आदेश का भी जिक्र किया गया है जिसमें कहा गया था कि याचिकाकर्ता के पति के खिलाफ शुरू की गयी कार्रवाई किसी भी अधिकार क्षेत्र से परे थी।
याचिका में कहा गया है कि इस साल जुलाई में उच्च न्यायालय ने एक आदेश पारित करके सरकार द्वारा गैरकानूनी तरीके से उनकी अचल संपत्तियों को अपने कब्जे में लेने के लिये आंशिक मुआवजा दिलाया था।
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