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न्यायालय मराठा आरक्षण मामले पर 25 जनवरी से करेगा सुनवाई, कहा- मामले में जल्द सुनवाई जरूरी

By भाषा | Updated: December 9, 2020 21:05 IST

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नयी दिल्ली, नौ दिसंबर उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि मराठा समुदाय के लिये शिक्षा और रोजगार में आरक्षण का प्रावधान करने संबंधी महाराष्ट्र के 2018 के कानून से संबंधित मामले पर शीघ्र सुनवाई की आवश्यकता है क्योंकि इस कानून पर रोक लगी है और इसका लाभ जनता तक नहीं पहुंच रहा है।

न्यायालय ने नौ सितंबर को इस मामले को वृहद पीठ को सौंपते हुये शिक्षा और रोजगार में मराठा समुदाय के लिये आरक्षण का प्रावधान करने संबंधी महाराष्ट्र सरकार के 2018 के कानून के अमल पर रोक लगा दी थी। ऐसा करते समय न्यायालय ने स्पष्ट किया था कि जिन लोगों को इसका लाभ मिल गया है उनकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं होगा।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि इस मामले की 25 जनवरी से दैनिक आधार पर सुनवाई की जायेगी क्योंकि इसमें शामिल संभावित मुद्दों और इसके बाद के नतीजों को ध्यान में रखते हुये इसकी अंतिम सुनवाई को जल्द से जल्द पूरा करने की आवश्यकता है।

संविधान पीठ ने कहा, ‘‘इस मुद्दे पर जल्द सुनवाई की आवश्यकता है क्योंकि इस कानून के प्रभाव पर रोक लगा दी गयी है और इससे होने वाला लाभ लोगों तक नहीं पहुंच रहा है। इसलिए इस पर जल्द सुनवाई की आवश्यकता है।’’

संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर, न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति एस रवीन्द्र भट शामिल हैं।

न्यायालय ने इस मामले में मदद के लिये अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल को भी नोटिस जारी किया है।

पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘हमारा मानना है कि इन अपील में उठाये गये मुद्दों और इसके बाद के परिणामों को ध्यान में रखते हुये यह जरूरी है कि इस अपील पर यथाशीघ्र सुनवाई पूरी की जाये।’’

पीठ ने कहा, ‘‘संविधान पीठ के समक्ष विचारणीय मुद्दों में एक मुद्दा संविधान (102वें संशोधन) कानून, 2018 की व्याख्या भी है। अटॉर्नी जनरल को इस मामले में नोटिस जारी किया जाये।’’

पीठ ने कहा, ‘‘चूंकि न्यायालय शीतकालीन अवकाश के लिये बंद हो रहा है। इसके फिर से खुलने पर पहले दो सप्ताह में विविध प्रकार के मामलों की सुनवाई होनी है, इसलिये इस अपील को अन्य संबंधित अपीलों के साथ 25 जनवरी, 2021 को सूचीबद्ध किया जाये। हम यह स्पष्ट कर रहे हैं कि इन अपील पर दैनिक आधार पर सुनवाई होगी।’’

महाराष्ट्र सरकार ने मराठा समुदाय में सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिये शिक्षा और रोजगार में आरक्षण कानून, 2018 में बनाया था।

बंबई उच्च न्यायालय ने 27 जून, 2019 को इस कानून को वैध ठहराते हुये कहा था कि 16 प्रतिशत आरक्षण न्यायोचित नहीं है और इसकी जगह रोजगार में 12 और शिक्षण संस्थानों में प्रवेश के मामलों में 13 फीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं होना चाहिए।

महाराष्ट्र विधान मंडल ने 30 नवंबर, 2018 को राज्य में मराठा समुदाय के लिये शिक्षा और रोजगार में 16 प्रतिशत आरक्षण देने संबंधी विधेयक पारित किया था।

संविधान के 102वें संशोधन के अनुसार अगर राष्ट्रपति द्वारा तैयार सूची में किसी समुदाय विशेष का नाम है, तो उसे आरक्षण प्रदान किया जा सकता है।

वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से बुधवार को संपन्न सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि राज्य सरकार ने नौ सितंबर के आदेश में सुधार के लिये आवेदन दाखिल किया है।

उन्होंने कहा कि कुछ आंकड़ों के आधार पर इस रोक को हटाने के लिये यह आदेवन किया गया है। उन्होंने कहा कि यहां कानूनी सवाल यह है कि क्या पांच सदस्यीय पीठ को उस विषय पर विचार करना चाहिए जो उसके पास भेजा गया है।

इस पर पीठ ने कहा, ‘‘यह फैसला हुआ था कि सारे अंतरिम आदेश पर बृहद पीठ विचार करेगी।’’

रोहतगी ने कहा कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिये आरक्षण के प्रावधान का मुद्दा प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष लंबित है, लेकिन उस पर कोई रोक नहीं हे।

पीठ ने जानना चाहा, ‘‘क्या ऐसा कोई फैसला है जो यह कहता हो कि मामले को सौंपने के समय अंतरिम आदेश पारित नहीं किया जा सकता है।’’ इस पर रोहतगी ने कहा, ‘‘ऐसा कोई फैसला नहीं है।’’

रोहतगी ने कहा, ‘‘यह ऐसा मामला है जिसमें सैकड़ों फैसलों का हवाला दिया जा सकता है। इस पर साप्ताहिक सुनवाई में बहस नहीं हो सकती। मेरे आवेदन पर आदेश पारित कीजिये और इसे अंतिम सुनवाई के लिये सूचीबद्ध कर दीजिये। हम वैक्सीन लेने के बाद बहस करेंगे।’’

इस पर पीठ ने हल्के फुल्के अंदाज में कहा, ‘‘रोहतगी जी, आपको वैक्सीन की जरूरत नहीं है।’

इस मामले में एक पक्षकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि कई राज्यों में 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण है।

शीर्ष अदालत ने इस मामले को अगले महीने सुनवाई के लिये सूचीबद्ध करते हुये विभिन्न पक्षकारों की ओर से पेश अधिवक्ताओं से कहा कि वे 18 जनवरी तक अपनी दलीलों का लिखित सार जमा करें।

महाराष्ट्र सरकार ने 27 जुलाई को न्यायालय को भरोसा दिलाया था कि वह 15 सितंबर तक सार्वजनिक स्वास्थ और मेडिकल शिक्षा एवं शोध विभागों के अलावा 12 फीसदी मराठा आरक्षण के आधार पर रिक्त स्थानों पर भर्तियों की प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ायेगी।

उच्च न्यायालय ने पिछले साल 27 जून को अपने आदेश में कहा था कि अपवाद स्परूप परिस्थितियों के अलावा आरक्षण के लिये शीर्ष अदालत द्वारा निर्धारित 50 फीसदी की सीमा लांघी नहीं जा सकती है।

उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार के इस तर्क को स्वीकार कर लिया था कि मराठा समुदाय शैक्षणिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा हुआ है और उनकी प्रगति के लिेय आवश्यक कदम उठाना सरकार का कर्तव्य है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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