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न्यायालय ने खदानों में हरियाली संबधी आदेश का अनुपालन नहीं होने पर दिखाया सख्त रुख

By भाषा | Updated: December 14, 2020 18:59 IST

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नयी दिल्ली, 14 दिसंबर उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को झारखंड सरकार के इस दावे का संज्ञान लिया कि खनन काम बंद होने के पश्चात खदान के पट्टाधारकों द्वारा खनन वाले इलाके में फिर से घास लगाने के आदेश का अनुपालन नहीं किया जा रहा है। शीर्ष न्यायालय इसके लिये संबंधित प्राधिकारियों के खिलाफ अवमानना कार्रवाई की चेतावनी दी।

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने केन्द्र कहा कि झारखंड में व्यावसायिक खनन के लिये कोयला खदानों की ई-नीलामी के बाद शीर्ष अदालत की अनुमति के बगैर खुदाई नहीं होगी।

शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि न्यायालय के निर्देशो का पालन नहीं होने की स्थिति में संबंधित प्राधिकारियों के खिलाफ वह कार्रवाई कर सकता है।

पीठ ने कहा, ‘‘हमारी अनुमति के बगैर झारखंड में खनन के लिये खुदाई शुरू नहीं की जायेगी।’’

शीर्ष अदालत ने इस तथ्य का संज्ञान लिया कि खनन कार्य के दौरान घास पूरी तरह से खत्म हो जाती है और उसने आठ जनवरी को सरकार को निर्देश दिया था कि खदानों के पट्टाधारकों पर यह शर्त लगाई जाये कि खदान में खनन काम बंद होने के बाद उन्हें खदान वाले क्षेत्र में फिर से घास लगानी होगी।

न्यायालय ने देश के अनेक हिस्सों में बड़े पैमाने पर अवैध खनन के खिलाफ एक अन्य याचिका पर यह आदेश पारित किया था। न्यायलाय ने केन्द्र से कहा था कि वह इस शर्त के अनुपालन के लिये उचित तरीका खोजे।

वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से सोमवार को सुनवाई के दौरान झारखंड सरकार की ओर से अधिवक्ता तापेश कुमार सिंह ने पीठ को बताया कि खदान वाले क्षेत्र में फिर से घास लगाने के उसके निर्देश का अनुपालन नहीं किया जा रहा है।

इस पर पीठ ने कहा, ‘‘अटार्नी जनरल, अगर हमारे आदेश का अनुपालन नहीं हुआ तो हम संबंधित लोगों के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई कर सकते हैं। हम चाहते हैं कि हमारे आदेश का सख्ती से पालन हो। मवेशियों के चरने के लिये फिर से घास लगाना जरूरी है।’’

न्यायालय ने सिंह से कहा कि वह इस संबंध में अटार्नी जनरल को विवरण उपलब्ध करायें ताकि वह इस पर गौर कर सकें।

पीठ झारखंड में व्यावसायिक खनन के लिये कोयला खदानों की ई-नीलामी के मुद्दे पर राज्य सरकार की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। पीठ ने कहा कि इस मामले में जनवरी में सुनवाई की जायेगी।

झारखंड सरकर की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता फली एस नरिमन ने कहा कि चूंकि यह मामला जनवरी में सूचीबद्ध है, इसलिए कोई स्वतंत्र प्राधिकारी संबंधित स्थलों का निरीक्षण कर सकते हैं।

पीठ ने कहा, ‘‘हमें कुछ दीजिये। आपने एक नाम बताया था लेकिन उनका देहांत हो गया। हम इस मामले को जनवरी के प्रथम सप्ताह के लिये सूचीबद्ध करेंगे।’’

झारखंड सरकार की याचिकाओं के अलावा पीठ ने इससे संबंधित मुद्दों पर भी विचार किया और केन्द्र तथा अन्य को नोटिस जारी कर उनके जवाब मांगे।

न्यायालय ने छह नवंबर को केन्द्र को यह स्पष्ट कर दिया था कि झारखंड की पांच कोयला खदानों सहित 34 खदानों की ई नीलामी उसके अंतिम आदेशों के दायरे में रहेगी।

शीर्ष अदालत ने सरकार से यह भी कहा कि वह बोली लगाने वालों को सूचित करें कि इसके किसी भी तरह के लाभ उनके लिये अस्थाई होंगे।

केन्द्र की ओर से अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा था कि ऐसे क्षेत्र में एक भी वृक्ष की कटाई नहीं होगी।

इससे पहले, इस मामले में केन्द्र ने एक नोट दाखिल किया था जिसमे उन नौ खदानों और पारिस्थितिकी दृष्टि से संवेदनशील/ संरक्षित/ वन्यजीव अभ्यारण्य से उनकी दूरी का विवरण है जिनकी नीलामी की जायेगी।

इसमें कहा गया था कि नौ कोयला खदानों में से सिर्फ पांच की नीलामी होगी जबकि चार कोयला खदानों-चोरीटांड तिलैया, छितरपुर, उत्तरी धाधू और शेरगढ.- की नीलामी कम निविदायें मिलने की वजह से रद्द कर दी गयी हैं।

केन्द्र ने पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना 2006 के तहत पर्यावरण मंजूरी के लिये राष्ट्रीय उद्यान या वन्यजीव अभ्यरण्य के 10 किमी के दायरे में स्थित विकास परियोजनाओं की प्रक्रिया के संबंध में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के विभागीय मेमोरैण्डम और कई फैसलों का भी हवाला दिया है।

न्यायालय ने चार नवंबर को यह आदेश देने का संकेत दिया था कि झारखंड में व्यावसायिक मकसद से पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्र के 50 किमी के दायरे में प्रस्तावित कोयला खदानों के आवंटन के लिये ई-नीलामी नही की जायेगी।

शीर्ष अदालत ने कहा था कि वह सिर्फ यह सुनिश्चित करना चाहती है कि ‘जंगलों को नष्ट नहीं किया जाये। न्यायलाय ने कहा था कि उसका विचार विशेषज्ञों की एक समिति गठित करने का है जो यह पता लगायेगी कि क्या झारखंड में प्रस्तावित खनन स्थल के पास का इलाका पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र है या नहीं।

केन्द्र ने शीर्ष अदालत की इस टिप्पणी का विरोध करते हुये कहा था कि इस तरह के, पारिस्थितिकी दृष्टि से संवेदनशील जोन से खदान स्थल 20 किमी से 70 किमी की दूरी पर हैं और अगर यही पैमाना लागू किया गया तो गोवा जैसे राज्यों में खनन असंभव हो जायेगा।

न्यायालय ने 30 सितंबर को भी टिप्पणी की थी कि अगर कोई क्षेत्र पारिस्थितिकी दृष्टि से संवेदनशील जोन में आ रहा होगा तो केन्द्र और राज्य सरकार दोनों को ही इसमें खनन करने का अधिकार नहीं होगा।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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