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सशस्त्र बलों में तैनाती के मामले में न्यायालय को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए: शीर्ष अदालत

By भाषा | Updated: November 16, 2020 19:35 IST

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नयी दिल्ली, 16 नवंबर उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि उसे तैनाती, विशेषकर सशस्त्र बलों में, के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए क्योंकि किसी न किसी व्यक्ति को तो लद्दाख, पूर्वोत्तर के चुनिन्दा इलाकों और अंडमान एंव निकोबार द्वीप जैसे स्थानों पर जाकर सेवा करनी ही होगी।

शीर्ष अदालत ने दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ सेना के एक कर्नल की अपील पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। उच्च न्यायालय ने सेना के इस कर्नल और उनकी कर्नल पत्नी से कहा था कि वे 15 दिन के भीतर अपनी तैनाती के नये स्थान पर कार्यभार ग्रहण करें।

याचिकाकर्ता, जो जज एडवोकेट जनरल (जेएजी) विभाग में अधिकारी हैं, ने 15 मई के अपनी तैनाती के आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। याचिका में आरोप लगाया गया था कि चूंकि उन्होंने जेएजी और अन्य के खिलाफ कानूनी शिकायत दायर की थी, इसलिए उन्हें और उनकी पत्नी का इतनी दूर स्थानांतरण करने का निर्णय लिया गया है।

इस अधिकारी ने राजस्थान के जोधपुर से अंडमान और निकोबार द्वीप में अपना तबादला किये जाने को चुनौती दी थी और यह दलील दी थी कि उनकी पत्नी को पंजाब के बठिंडा में तैनात किया जा रहा है।

न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा और न्यायमूर्ति इन्दिरा बनर्जी की पीठ से याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार ने कहा कि बठिंडा और अंडमान और निकोबार द्वीप के बीच की दूरी 3,500 किमी से ज्यादा है।

उन्होंने कहा कि दोनों अधिकारियों का साढ़े चार साल का बच्चा है और उन्होंने अपने अपने स्थानों पर प्रभार संभाल लिया है।

कुमार ने पीठ से कहा कि इस स्थानांतरण की वजह से याचिकाकर्ता को स्वैच्छिक अवकाश के लिये आवेदन करना पड़ेगा।

पीठ ने कहा, ‘‘अगर सशस्त्र बल कहता है कि वे दिल्ली में संयुक्त तैनाती के खिलाफ हैं, यह कठोर हो सकता है लेकिन किसी न किसी को तो अंडमान और निकोबार भी जाना होगा।’’

पीठ ने कहा, ‘‘सैन्य अधिकारियों की तैनाती के मामले में, हमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। लद्दाख, पूर्वोत्तर के कुछ इलाकों और अंडमान में किसी न किसी को जाना ही होगा।’’

शीर्ष अदालत ने जब यह कहा कि वह इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहती तो रंजीत कुमार ने कहा कि वह यह याचिका वापस लेना चाहेंगे।

पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार विशेष अनुमति याचिका वापस लेना चाहते हैं ताकि याचिकाकर्ता स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिये आवेदन वापस लेने के बारे में अपने अनुरोध पर स्वतंत्र तरीके से कार्यवाही कर सके।’’

पीठ ने कहा कि इस अनुरोध के आलोक में विशेष अनुमति याचिका वापस लेने की अनुमति देते हुये इसे खारिज किया जाता है ताकि याचिकाकर्ता दूसरे उपलब्ध तरीके अपना सकें।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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