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न्यायालय का अरावली वन क्षेत्र में अतिक्रमण हटाने के आदेश पर रोक लगाने से इनकार

By भाषा | Updated: June 17, 2021 16:28 IST

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नयी दिल्ली, 17 जून उच्चतम न्यायालय ने खोरी गांव के पास अरावली वन क्षेत्र में अतिक्रमित करीब 10,000 आवासीय निर्माण को हटाने के लिए हरियाणा और फरीदाबाद नगर निगम को दिए अपने आदेश पर बृहस्पतिवार को रोक लगाने से इनकार कर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा, “ हम अपनी वन भूमि खाली चाहते हैं।”

न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी ने राज्य और नगर निकाय को इस संबंध में उसके सात जून के आदेश पर अमल करने का निर्देश दिया।

शीर्ष अदालत उस आवेदन पर सुनवाई कर रही थी जिसमें गांव में आवासीय ढांचों को तोड़ने पर रोक लगाने का आग्रह किया गया था।

न्यायालय ने सात जून को एक अलग याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य और फरीदाबाद नगर निगम को निर्देश दिया था कि गांव के पास अरावली वन क्षेत्र में ‘सभी अतिक्रमण को हटाएं’ और कहा था कि “ जमीन पर कब्जा करने वाले कानून के शासन की आड़ नहीं ले सकते हैं” और ‘निष्पक्षता’ की बात नहीं कर सकते हैं।

शीर्ष अदालत ने फरीदाबाद जिले में लकडपुर खोरी गांव के पास वन भूमि से सभी अतिक्रमण हटाने के बाद राज्य सरकार से छह हफ्ते में अनुपालन रिपोर्ट तलब की थी।

बृहस्पतिवार को वीडियो कॉन्फ्रेंस से हुई सुनवाई के दौरान निर्माण को तोड़ने पर रोक का आग्रह कर रहे याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील अपर्णा भट ने कहा कि गांव में करीब 10,000 परिवार हैं।

पीठ ने कहा, “ कृपया हमें संख्या न दें। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। हम अपनी वन भूमि खाली चाहते हैं।," पीठ ने कहा, "हमने पर्याप्त समय दिया है। अधिसूचना जारी की गई थी लेकिन आप अपने जोखिम पर वहां रुके रहे।" पीठ ने कहा , “यह वन भूमि है। साधारण जमीन नहीं है।”

भट ने पुनर्वास की दलील देते हुए कहा कि राज्य के प्राधिकारियों ने पात्रता के मुद्दे को नहीं उठाया है और पहचान प्रक्रिया नहीं की गई है। पीठ ने संबंधित मामले में पांच अप्रैल को पारित किए गए अपने आदेश का हवाला देकर कहा कि नगर निकाय कानून के मुताबिक कदम उठाएगा।

पीठ ने नगर निगम के वकील से कहा, “ आपको उन्हें कानून के अनुसार हटाना है । आपको उन लोगों को (पुनर्वास की) योजना का लाभ देना हैं जो पात्र हैं।”

भट ने दलील दी कि प्राधिकारी वहां रहने वालों को जबरन हटाने के लिए आए हैं और निर्माण विध्वंस से पहले उन्हें सत्यापन की कवायद करनी चाहिए। पीठ ने पूछा कि क्या याचिकाकर्ताओं ने सत्यापन के लिए निगम को अतिरिक्त दस्तावेज दिए हैं और कहा कि पहले ही पर्याप्त समय दिया जा चुका है।

भट ने कोविड-19 महामारी का हवाला देते हुए कहा, “इन लोगों और उनकी स्थिति को देखिए। वे प्रवासी मजदूर हैं। वहां बच्चे हैं।” पीठ ने कहा, “यह राज्य को करना है। हमारा सरोकार केवल वन क्षेत्र को खाली कराने से है। हमने पहले ही पर्याप्त समय दिया है।”

शीर्ष अदालत ने कहा कि लोग पहचान और पुनर्वास के वास्ते निगम को अपने दस्तावेज पेश कर सकते हैं। जब भट ने महामारी के दौरान न हटाए जाने से संबंधित वैश्वविक दिशा-निर्देशों का हवाला दिया तो पीठ ने कहा, “हमें वैश्विक दिशानिर्देशों से मतलब नहीं है। यह मुद्दा लंबे समय से चल रहा है। इस चरण पर कोई रियायत नहीं दिखाई जा सकती है।” उसने कहा कि याचिकाकर्ताओं से निगम के समक्ष पुनर्वास योजना के लिए दस्तावेज पेश करने को कहा गया था लेकिन वे नाकाम रहे।

पीठ ने कहा कि वन भूमि से अतिक्रमण कानूनी प्रक्रिया का पालन करके ही हटाया जाएगा। उसने कहा कि मामले से संबंधित बड़ा मुद्दा लंबित है और वह 27 जुलाई को याचिका पर सुनवाई करेंगे। मगर पीठ ने स्पष्ट किया कि याचिका का लंबित होना वन भूमि पर बनाए गए अनधिकृत ढांचों को हटाने में अधिकारियों के रास्ते में नहीं आएगा।

सुनवाई के आखिर में हरियाणा की ओर से पेश हुए वकील ने कहा कि निर्माण तोड़ने की प्रक्रिया के दौरान पथराव की कुछ घटनाएं हुई हैं, लिहाजा इस बाबत कुछ निर्देश दिए जाएं ताकि प्रक्रिया शांतिपूर्ण रहे। इस पर पीठ ने कहा, “हम इसपर कुछ नहीं कहना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि हमारे आदेश पर अमल हो।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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