न्यायालय का हर्ष वर्धन लोढा के खिलाफ अवमानना याचिका खारिज करने के अदालत के आदेश में दखल से इनकार

By भाषा | Updated: July 12, 2021 19:01 IST2021-07-12T19:01:29+5:302021-07-12T19:01:29+5:30

Court refuses to interfere with court order dismissing contempt petition against Harsh Vardhan Lodha | न्यायालय का हर्ष वर्धन लोढा के खिलाफ अवमानना याचिका खारिज करने के अदालत के आदेश में दखल से इनकार

न्यायालय का हर्ष वर्धन लोढा के खिलाफ अवमानना याचिका खारिज करने के अदालत के आदेश में दखल से इनकार

नयी दिल्ली, 12 जुलाई उच्चतम न्यायालय ने हर्ष वर्धन लोढा के खिलाफ अवमानना याचिका खारिज करने के कलकत्ता उच्च न्यायालय आदेश में दखल देने से सोमवार को इनकार कर दिया। लोढा के एम पी बिड़ला समूह की कंपनियों में निदेशक और अध्यक्ष बने रहने को लेकर यह याचिका दायर की गई थी।

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और ऋषिकेश रॉय की पीठ ने कहा वह उच्च न्यायालय के 22 अप्रैल के आदेश में हस्तक्षेप की इच्छुक नहीं है क्योंकि याचिका अभी वहां लंबित है।

शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय को निर्देश दिया कि वह लंबित याचिकाओं को यथाशीघ्र निस्तारित करने का प्रयास करे और किसी भी सूरत में 31 मार्च 2022 या उससे पहले ऐसा करे।

लोढा जिन कंपनियों का नेतृत्व कर रहे हैं उनमें बिड़ला कॉरपोरेशन, यूनिवर्सल केबल्स, विंध्य टेलीलिंक्स और बिड़ला केबल शामिल हैं।

बिड़ला के परिजनों और याचिकाकर्ता अरविंद कुमार नेवाड़ की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, पी चिदंबरम, के के विश्वनाथन और जनक द्वारकादास ने कहा कि अवमानना याचिका को खारिज करने में उच्च न्यायालय पूरी तरह गलत है।

सिब्बल ने कहा, “उच्च न्यायालय ने कहा है कि उन्हें उसके आदेशों का अनुपालन करना होगा लेकिन उन्होंने निर्देश नहीं माने। मेरी रुचि अवमानना या उन्हें जेल भेजने में नहीं है लेकिन मैं चाहता हूं कि उन्हें हटाया जाए।”

विंध्य टेलीलिंक्स लिमिटेड की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान और अधिवक्ता सुमीर सोढी ने कहा कि यह निर्देश जारी किया जाए कि उच्च न्यायालय से समक्ष लंबित सभी याचिकाओं पर चार हफ्ते के अंदर सुनवाई की जाए।

दीवान ने कहा कि कई अवमानना याचिकाएं दायर की गईं और दूसरे पक्ष ने सिर्फ एक अवमानना याचिका को चुना और वे इसे लेकर बार-बार कंपनी को पत्र लिख रहे हैं।

लोढा की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता दारियस खंबाटा ने कहा कि उच्च न्यायालय की एकल न्यायाधीश की पीठ का पिछले साल 18 सितंबर का फैसला चार विनिर्माण कंपनियों की वार्षिक आम बैठक (एजीएम) में पारित प्रस्ताव में दखल देने के अनुरोध को खारिज कर चुका है। इन एजीएम में पारित प्रस्ताव में उनके मुवक्किल को शानदार बहुमत के साथ फिर से निदेशक नियुक्त किया गया था और कुल मतों का करीब 97.98 प्रतिशत उनके पक्ष में था।

एम पी बिड़ला समूह की संपत्तियों को लेकर बिड़ला परिवार और लोढा परिवार में अदालती विवाद चल रहा है।

उच्च न्यायालय ने 22 अप्रैल को एम पी बिड़ला समूह की कंपनियों के निदेशक और चेयरमैन के रूप में लोढा के काम करते रहने के खिलाफ दायर अनेक अवमानना याचिकाएं खारिज कर दी थीं। लोढा के मामले में दिये गये निष्कर्ष के मद्देनजर उच्च न्यायालय ने कंपनियों के अन्य निदेशकों के खिलाफ भी अवमानना कार्यवाही खारिज कर दी थीं।

उच्च न्यायालय स्व आर एस लोढा के पुत्र हर्ष वर्द्धन के प्रोबेट आवेदन पर सुनवाई कर रही है। हर्ष वर्द्धन के पिता लोढा ने दावा किया था कि एम पी बिड़ला की पत्नी प्रियंवदा बिड़ला ने एक वसीयत के माध्यम से समूह की संपत्तियां उनके नाम कर दी थीं।

एम पी बिड़ला की पत्नी प्रियंवदा बिड़ला का 1990 में निधन हो गया था।

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