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चयन प्रक्रिया धोखाधड़ी मामले में आरोपी को राहत देने से अदालत का इनकार

By भाषा | Updated: July 5, 2021 21:02 IST

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लखनऊ, पांच जुलाई इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने उत्तर प्रदेश सहकारी बैंक चयन प्रक्रिया में कथित जालसाजी और धोखाधड़ी के मामले में उत्तर प्रदेश सहकारिता विभाग के अपर आयुक्त हीरा लाल यादव को कोई राहत देने से इनकार कर दिया है। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि ऐसा नहीं कहा जा सकता कि याचिकाकर्ता के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता।

न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति वीके श्रीवास्तव की खंडपीठ ने हीरालाल यादव की याचिका पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से सुनवाई के बाद उसे खारिज करते हुए यह आदेश पारित किया।

साल 2015 में अखिलेश यादव सरकार के दौरान सहकारिता विभाग में सहायक प्रबंधक और सहायक प्रबंधक (कंप्यूटर) की शिकायत पर विशेष जांच दल द्वारा दर्ज प्राथमिकी में यादव के खिलाफ लगाए गए आरोपों और जांच सामग्री पर विचार करते हुए पीठ ने कहा, “ यह नहीं कहा जा सकता है कि याचिकाकर्ता के खिलाफ प्रथम दृष्टया कोई भी मामला नहीं बनता है, बल्कि रिकॉर्ड को देखने के बाद प्रथम दृष्टया यह कहा जा सकता है कि अपराध हुआ है और विवेचना के लिए पर्याप्त आधार है।"

याचिका को खारिज करते हुए पीठ ने कहा कि उसे इसमें प्राथमिकी को रद्द करने का कोई औचित्य नहीं मिला।

पीठ ने यादव द्वारा 27 अक्टूबर, 2020 को एसआईटी द्वारा दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की मांग वाली रिट याचिका पर यह आदेश पारित किया। प्राथमिकी में 2014-15 में पदों की भर्ती में धोखाधड़ी और जालसाजी का आरोप लगाया गया था। अपर शासकीय अधिवक्ता मीरा त्रिपाठी ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि 2015 में हुए चयन में हुई अनियमितताओं के संबंध में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यालय एवं अन्य कार्यालयों में उक्त चयन में भ्रष्टाचार की अनेक शिकायतें प्राप्त हुई थी।

शिकायतों के बाद एसआईटी को एक जांच सौंपी गई जिसने पूरी जांच के बाद पाया कि याचिकाकर्ता जो उत्तर प्रदेश सहकारी बैंक के तत्कालीन प्रबंध निदेशक थे, नियमों के विपरीत कार्य किया। इसलिए उन्हें निर्दोष नहीं कहा जा सकता है।

इससे पहले अदालत ने पाया था कि एसआईटी द्वारा दर्ज प्राथमिकी को पहले याची ने इलाहाबाद उच्‍च न्‍यायालय में चुनौती दी थी वहां से गिरफ्तारी पर स्थगन मिल गया था। बाद में उसी के सहारे मामले के सह अभियुक्तों रविकांत सिंह, राज जतन यादव , संतोष कुमार व राकेश कुमार मिश्रा को लखनऊ खंडपीठ से राहत मिल गयी।

बाद में इलाहाबाद उच्‍च न्‍यायालय ने यह कहते हुए यादव की रिट याचिका खारिज कर दी कि वह वहां क्षेत्राधिकार के अभाव में पोषणीय ही नहीं थी। इसके बाद यादव ने लखनऊ खंडपीठ में नयी याचिका दायर कर प्राथमिकी को चुनौती दी थी जिसे पीठ ने मेरिट पर खारिज कर दिया है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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