अदालत ने देशमुख मामले में महाराष्ट्र सरकार के आचरण पर सवाल उठाया

By भाषा | Updated: December 15, 2021 20:59 IST2021-12-15T20:59:53+5:302021-12-15T20:59:53+5:30

Court questions Maharashtra government's conduct in Deshmukh case | अदालत ने देशमुख मामले में महाराष्ट्र सरकार के आचरण पर सवाल उठाया

अदालत ने देशमुख मामले में महाराष्ट्र सरकार के आचरण पर सवाल उठाया

मुंबई, 15 दिसंबर महाराष्ट्र सरकार को बुधवार को बंबई उच्च न्यायालय में दोहरा झटका लगा जिसने पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख के खिलाफ भ्रष्टाचार मामले की जांच के लिए एसआईटी के गठन के साथ ही मामले के संबंध में एजेंसी द्वारा जारी सम्मन को रद्द करने के अनुरोध वाली सरकार की याचिकाओं को खारिज कर दिया।

राज्य सरकार ने एसआईटी का गठन इस आधार पर करने का अनुरोध किया था कि सीबीआई की जांच निष्पक्ष नहीं है। इसके अलावा मामले के संबंध में राज्य के पूर्व मुख्य सचिव सीताराम कुंटे और मौजूदा पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) संजय पांडे के खिलाफ एजेंसी द्वारा जारी समन को रद्द करने का भी अनुरोध किया था।

न्यायमूर्ति नितिन जामदार और न्यायमूर्ति एसवी कोतवाल की पीठ ने अपने फैसले में पूरे अनिल देशमुख-परमबीर सिंह प्रकरण के माध्यम से महाराष्ट्र सरकार के आचरण के खिलाफ तीखी टिप्पणियां की।

पीठ ने यह तक कहा कि उसे केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की इस दलील में दम नजर आया कि राज्य सरकार की याचिका देशमुख के खिलाफ चल रही जांच को बाधित करने की कोशिश है।

हालांकि, महाराष्ट्र सरकार ने कहा कि उसका विरोध जांच के लिए नहीं बल्कि जिस तरह से सीबीआई द्वारा जांच की जा रही है उसे लेकर है लेकिन उच्च न्यायालय ने दलील को स्वीकार करने से इनकार कर दिया।

पीठ ने कहा कि जब सिंह ने पहली बार देशमुख द्वारा कदाचार का मुद्दा उठाया था तब राज्य सरकार ने कोई जांच शुरू नहीं की थी।

अदालत ने कहा कि जब वकील जयश्री पाटिल ने देशमुख और सिंह दोनों के खिलाफ मुंबई के मालाबार हिल पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई तो राज्य सरकार ने प्राथमिकी तक दर्ज नहीं की।

यह पाटिल की शिकायत पर था कि उच्च न्यायालय की एक अन्य पीठ ने सीबीआई को देशमुख के खिलाफ प्रारंभिक जांच करने का निर्देश दिया था, जिन्हें प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने गिरफ्तार किया और वह वर्तमान में न्यायिक हिरासत में हैं।

उच्च न्यायालय ने कहा, “निष्कर्ष के रूप में, हमें प्रतिवादी सीबीआई के आरोप में दम लगा है कि यह याचिका और कुछ नहीं बल्कि जांच को रोकने के लिए याचिकाकर्ता (महाराष्ट्र राज्य) का नया तरीका है।”

उसने कहा, “इस प्राथमिकी के संबंध में याचिकाकर्ता ने जिस तरीके से खुद को पेश किया है और जिस तरह से याचिका दायर की गई है, उसे देखते हुए, हम संतुष्ट नहीं हैं कि प्रतिवादी सीबीआई से जांच वापस लेने के लिए याचिकाकर्ता का आवेदन जरा भी वास्तविक है।”

हालांकि, अदालत ने कहा कि राज्य सरकार के आचरण पर उसकी टिप्पणियां सामान्य रूप से नहीं बल्कि वर्तमान मामले में मुकदमेबाजी करने वाले पक्ष के रूप में थीं।

पीठ ने राज्य के इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि वर्तमान सीबीआई निदेशक सुबोध जायसवाल को केंद्रीय एजेंसी की जारी जांच का नेतृत्व नहीं करना चाहिए क्योंकि वह देशमुख के गृह मंत्री रहने के समय महाराष्ट्र के डीजीपी थे।

उच्च न्यायालय ने कहा कि जायसवाल के बारे में महाराष्ट्र सरकार की आशंका "उचित नहीं है, बल्कि केवल रची गई है।"

पीठ ने राज्य के इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि कुंटे और पांडे को सीबीआई ने उत्पीड़न की रणनीति के तहत तलब किया था।

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Web Title: Court questions Maharashtra government's conduct in Deshmukh case

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