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अदालत ने पुलिस आयुक्त को मामलों का जल्द निपटान करने के लिए निर्देश जारी किए

By भाषा | Updated: November 25, 2021 17:51 IST

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नयी दिल्ली, 25 नवंबर दिल्ली की एक अदालत ने कहा कि पुलिस की ओर से देरी के कारण ‘फाइव प्लस ज़ीरो’ नीति अवधि के तहत मामलों का निपटान संभव नहीं है। अदालत ने आपराधिक मामलों की जांच जल्द पूरी करने के लिए कुछ कदम बताएं हैं, जिन्हें पुलिस आयुक्त को उठाने की जरूरत है।

‘फाइव प्लस ज़ीरो’ राज्य सरकारों की एक पहल है जिसका मकसद पांच साल से अधिक समय से लंबित मामलों को प्राथमिकता के आधार पर उठाना है और ऐसे मामलों की संख्या को शून्य पर लाना है।

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सुनील चौधरी ने रेखांकित किया है कि पांच साल पुराने आपराधिक साजिश के मामले में आरोप पत्र सहायक पुलिस आयुक्त (एसीपी) द्वारा भेजे जाने के 27 महीने बाद दायर किया गया है और इसमें भी एफएसएल रिपोर्ट नहीं है।

न्यायाधीश ने कहा, “प्राधिकारियों से अपेक्षा है कि वे आपराधिक मामले की सुनवाई जल्दी पूरी करें और राज्य ने अदालती मामलों के संबंध में 'फाइव प्लस जीरो' नीति अपनाई है। अदालतों में रिपोर्ट प्रस्तुत करने में विलम्ब तथा अधूरी रिपोर्ट पेश करने से नीति अवधि में मामलों का निपटान संभव नहीं है। ”

न्यायाधीश ने कहा, “ इन तथ्यों ने इस अदालत को बाध्य किया कि वह दिल्ली में जांच एजेंसी के प्रमुख होने के नाते पुलिस आयुक्त का ध्यान इस ओर दिलाएं ताकि संबंधित एसीपी द्वारा भेजे जाने के बाद रिपोर्ट को जल्द से जल्द अदालत में पेश करने के लिए उचित कदम उठाएं जा सकें।”

अदालत ने कहा कि रोहिणी स्थित फॉरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला (एफएसएल) से वक्त पर रिपोर्ट हासिल करने के संबंध में पुलिस आयुक्त कार्यालय को कदम उठाने की जरूरत है ताकि जांच अधिकारी विशेषज्ञों की राय के आधार पर अंतिम रिपोर्ट अदालत में पेश कर सकें।

अदालत ने 24 नवंबर के आदेश में कहा है कि पुलिस आयुक्त कार्यालय को इस बारे में भी कदम उठाने की जरूरत है कि अगर रोहिणी की एफएसएल पर अधिक बोझ है और वे वक्त पर वांछित रिपोर्ट या राय नहीं दे सकती है तो पुलिस के अधीनस्थ अधिकारियों को इस बात की इजाज़त हो कि वे सबूत का परीक्षण किसी और मान्यता प्राप्त प्रयोगशाला से करा लें।

अदालत ने कहा कि मौजूदा मामले में अंतिम रिपोर्ट पर 14 जून 2017 को हस्ताक्षर किए गए थे और एसीपी महेंद्र कुमार मीणा द्वारा इसे भेजा गया था लेकिन इसे करीब 27 महीनों की देरी के बाद चार सितंबर 2019 में दाखिल किया गया।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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