न्यायालय ने चारधाम परियोजना को उत्तराखंड आपदा से जोड़ने वाले पत्र पर केंद्र को जवाब देने को कहा
By भाषा | Updated: February 17, 2021 20:28 IST2021-02-17T20:28:15+5:302021-02-17T20:28:15+5:30

न्यायालय ने चारधाम परियोजना को उत्तराखंड आपदा से जोड़ने वाले पत्र पर केंद्र को जवाब देने को कहा
नयी दिल्ली, 17 फरवरी उच्चतम न्यायालय ने उत्तराखंड में कुछ दिनों पहले आई आपदा का संबंध सड़क चौड़ी करने से जोड़े जाने के चारधाम परियोजना समिति के अध्यक्ष के आरोपों का केंद्र को जवाब दाखिल करने की बुधवार को अनुमति दे दी।
उत्तराखंड में सात फरवरी को हिमस्खल के कारण धौलीगंगा नदी में अचानक आई बाढ़ के चलते तपोवन जल विद्युत परियोजना को भारी नुकसान पहुंचा और जनहानि हुई।
अटार्नी जनरल (महान्यायवादी) के.के. वेणुगोपाल ने शीर्ष न्यायालय से कहा कि शीर्ष न्यायालय द्वारा नियुक्त उच्च अधिकार प्राप्त समिति के अध्यक्ष के पत्र क जवाब दाखिल करना चाहेंगे। पत्र में, सड़क को चौड़ा करने के कार्य और राज्य में आई हालिया आपदा के बारे में कई ‘‘आरोप’’ लगाये गये हैं।
यह समिति, उत्तराखंड में भारत-चीन सीमा तक सड़कों को चौड़ा करने पर चारधाम राजमार्ग परियोजना की निगरानी कर रही है।
वेणुगोपाल ने कहा कि उच्च अधिकार प्राप्त समिति के अध्यक्ष रवि चोपड़ा ने सरकार को लिखे अपने पत्र में (हालिया) आपदा का संबंध चारधाम परियोजना से होने का जिक्र किया है।
उनकी दलील पर गौर करते हुए न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन, न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने कहा, ‘‘आप इस पर जवाब दाखिल करिए।’’ साथ ही, पीठ ने विषय की सुनवाई दो हफ्ते बाद के लिए सूचीबद्ध कर दी।
रणनीतिक महत्व की 900 किमी लंबी चारधाम राजमार्ग परियोजना यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ तक बारहमासी सड़क संपर्क मुहैया करेगी।
समिति के अध्यक्ष चोपड़ा ने शीर्ष न्यायालय से कहा है कि जल विद्युत परियोजना के निर्माण कार्य से और सड़क चौड़ी किये जाने से हिमालय क्षेत्र की पारिस्थितिकी को अपूर्णीय क्षति हुई है। इसके परिणामस्वरूप चमोली जिले में अचानक बाढ़ (आपदा) आई।
शीर्ष न्यायालय को लिखे पत्र में चोपड़ा ने कहा है कि 2013 में आई केदारनाथ आपदा के बाद एक विशेषज्ञ इकाई ने एक रिपोर्ट सौंपी थी, जिसमें जल विद्युत परियोजनाओं के प्रभावों का उल्लेख किया गया था। उन्होंने पत्र में कहा, ‘‘ यदि इन चिंताओं और सिफारिशों पर ध्यान दिया जाता तो रिषी गंगा और तपोवन विष्णुगाड परियोजनाओं में जानमाल को हुए नुकसान को टाला जा सकता था। ’’
उन्होंने कहा कि समिति हिमालय क्षेत्र की पारिस्थितकी के संरक्षण के लिए गंभीर है, लेकिन उपलब्ध तथ्यों के वैज्ञानिक विश्लेषण और 2013 में आई आपदा पर आधारित समिति की रिपोर्ट की सराहना करने के बजाय , ‘‘यह बहुत खेदजनक है कि रक्षा मंत्रालय ने 15 जनवरी 2021 के अपने हलफनामे में अगंभीरता दिखाई।’’
चोपड़ा ने कहा, ‘‘न्यायालय रक्षा मंत्रालय से इस तरह के आरोप वापस लेने को कह सकती है। हम इस बात पर जोर देना चाहते हैं कि रक्षा मंत्रालय के हालिया हलफनामे में हिमालय की पारिस्थितिकी को होने वाली अपूर्णीय क्षति का हम सभी पर और आने वाली पीढ़ियों पर पड़ने वाले प्रभाव की अनदेखी करने के लिए ऐसी कोई ठोस दलील नहीं दी गई है, जिस पर सहमत हुआ जा सके। ’’
उन्होंने कहा कि चार धाम परियोजना के तीन राजमार्गों पर कई गंभीर भूस्खलन संभावित स्थान एवं सड़क का हिस्सा है, जिनकी पहचान रक्षा मंत्रालय ने ‘डिफेंस फीडर रोड’ के रूप में की है।
उन्होंने कहा, ‘‘सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के जो आंकड़े समिति को सौंपे गये हैं उनमें 574 किमी (राष्ट्रीय राजमार्ग 94: रिषीकेश से उत्तरकाशी तक, राष्ट्रीय राजमार्ग 58 :रिषीकेश से माना तक और राष्ट्रीय राजमार्ग 125:तनकपुर से पिथौड़ागढ़ तक) में 161 संवेदनशील स्थानों की पहचान की गई है, जो प्रत्येक 3.5 किमी पर है। ’’
पत्र में कहा गया है, ‘‘ रिषी गंगा नदी घाटी में हालिया आपदा आई, यह स्थान ‘मेन सेंट्रल थ्रस्ट’ के उत्तरी क्षेत्र में है जो अत्यधिक भूस्खलन, अचानक आने वाली बाढ़ और भूकंप संभावित क्षेत्र है। भारत-चीन सीमा की ओर जाने वाली एक डिफेंस रोड का एक हिस्सा और रिषी गंगा नदी पर बना एक पुल भी बह गया है, जिससे क्षेत्र में आने वाली आपदा के बारे में हमारी दलील की विश्वसनीयता बढ़ जाती है। ’’
पत्र में दावा किया गया है, ‘‘वनों की कटाई, पहाड़ी ढाल को काटा जाना, चट्टानों को तोड़ने के लिए विस्फोट करना, नदियों पर बांध बनाने, अत्यधिक पर्यटन आदि से इस क्षेत्र में आपदा की संभावना बढ़ने वाली है। इन गतिविधियों का नजदीक के ग्लेश्यिर पर प्रभाव पड़ने से इनकार नहीं किया जा सकता। ’’
शीर्ष न्यायालय ने 18 जनवरी को संबद्ध पक्षों से कहा है कि उच्च अधिकार प्राप्त समिति द्वारा दाखिल रिपोर्ट पर यदि उन्हें कोई आपत्ति है, तो वे अपना जवाब दाखिल कर सकते हैं।
केंद्र ने न्यायालय से 21 सदस्यीय समिति की बहुमत वाली रिपोर्ट स्वीकार करने का अनुरोध किया था, जिसमें (रिपोर्ट में) यह सिफारिश की गई थी कि रणनीतिक जरूरतों और बर्फ हटाने की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए दो ‘लेन’ वाली सड़क बनाई जाई, जिस पर 10 मीटर चौड़ी ‘कैरियेजवे’ हो।
केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा था कि पिछले साल दो दिसंबर को शीर्ष न्यायालय द्वारा जारी निर्देश के अनुपालन में समिति ने 15-16 दिसंबर 2020 को बैठक की और सड़क की चौड़ाई पर चर्चा की। इस बारे में रिपोर्ट शीर्ष न्यायालय को पिछले साल 31 दिसंबर को सौंपी गई।
हलफनामे में कहा गया है, ‘‘समिति की रिपोर्ट में सड़क की चौड़ाई के मुद्दों पर एक बार फिर प्राथमिक तौर पर भिन्न-भिन्न विचार नजर आए, 16 सदस्य और नामित सदस्यों ने सिफारिश की कि भारतीय सड़क सम्मेलन :52-2019 के प्रावधानों तथा 15 दिसंबर 2020 को सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय द्वारा जारी संशोधित परिपत्र के मुताबिक 10 मीटर चौड़े कैरियेजवे के साथ दो लेन वाली बनाई जाए। साथ ही, भूस्खलन नियंत्रण उपायों के लिए उपयुक्त सुरक्षा मानदंड अपनाए जाएं।
इसमें कहा गया है कि समिति के अध्यक्ष रवि चोपड़ा सहित तीन सदस्य (अल्पमत वाली रिपोर्ट) अब भी सड़क की चौड़ाई 5.5 (साढ़े पांच) मीटर रखने पर जोर दे रहे हैं, जैसा कि पूर्व में 23 मार्च 2018 को मंत्रालय द्वारा जारी परिपत्र में कहा गया था। वे लोग देश की सुरक्षा जरूरतों और भारत-चीन सीमा पर होने वाले किसी भी बाहरी आक्रमण का प्रतिरोध करने के लिए रक्षा बलों की जरूरतों से सहमत नहीं हैं।
केंद्र ने कहा, ‘‘बहुमत वाली रिपोर्ट में एक ओर जहां देश की सामाजिक, आर्थिक और रणनीतिक जरूरतों को ध्यान में रखते हुए समग्र दृष्टिकोण अपनाया गया है, वहीं दूसरी ओर पर्यावरण की रक्षा भी की गई है। ’’
केंद्र ने यह भी कहा कि परियोजना के समर्थक चारधाम परियोजना का पर्यावरण और सामाजिक जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव को न्यूनतम करने तथा परियोजना का क्रियान्वयन खड़ी ढाल वाली घाटी के अनुरूप करने के लिए कर्तव्यबद्ध हैं, ताकि किसी नये भूस्खलन को टाला जा सके और संवेदनशील हिमालयी घाटियों की सुरक्षा एवं संरक्षण सुनिश्चित हो सके।
उल्लेखनीय है कि अगस्त 2019 में शीर्ष न्यायालय ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के एक आदेश में बदलाव करते हुए चारधाम परियोजना के लिए मार्ग प्रशस्त कर दिया था। साथ ही, यह कहा था कि एक उच्च अधिकार प्राप्त समिति गठित की जाए, जो चारधाम परियोजना से जुड़ी पर्यावरणीय चिंताओं पर गौर करे।
Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।