केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण कमेटी (डीपीसीसी) के अनुसार लॉकडाउन के दौरान ताजे पानी की उपलब्धता में वृद्धि और औद्योगिक अपशिष्ट नहीं होने के कारण यमुना के पानी की गुणवत्ता में ‘‘काफी सुधार’’ हुआ है।
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) द्वारा नियुक्त यमुना निगरानी कमेटी (वाईएमसी) ने इस महीने की शुरुआत में सीपीसीबी और डीपीसीसी को यह पता लगाने के लिए जांच करने के लिए कहा था कि क्या लॉकडाउन के कारण नदी के पानी की गुणवत्ता में सुधार हुआ है।
कमेटी ने कहा कि अप्रैल के दौरान वजीराबाद में ताजा पानी की उपलब्धता में (पांच से छह गुना) की बढ़ोतरी हुई है जिसके कारण नजफगढ़ और शाहदरा जैसे प्रमुख नालों से गंदे पानी के चलते होने वाले प्रदूषण में कमी आयी है।
सेवानिवृत्त एनजीटी विशेषज्ञ सदस्य विक्रम सिंह सजवान और दिल्ली के पूर्व मुख्य सचिव शैलजा चंद्र वाले पैनल ने कहा कि पानी की गुणवत्ता में सुधार के लिए ताजे पानी की अधिक मात्रा में उपलब्धता जरूरी होती है। गैर-पुष्ट या आवासीय क्षेत्रों में स्थित 28 औद्योगिक क्लस्टर और उद्योगों से औद्योगिक अपशिष्ट भी लॉकडाउन के दौरान बंद रहा।
अनुमान है कि आवासीय क्षेत्रों में 51,000 से अधिक उद्योग हैं। पैनल ने कहा कि औद्योगिक अपशिष्ट नाले में नहीं जाने और अंतत: नदी में नहीं जाने से पानी की गुणवत्ता में सुधार हुआ है। उसने कहा कि अन्य कारकों में लॉकडाउन के दौरान मानवीय गतिविधियां नहीं होने से भी पानी की गुणवत्ता में सुधार हुआ है। इन गतिविधियों में पूजा सामग्री, ठोस अपशिष्ट नहीं डाला जाना, स्नान और कपड़े नहीं धोना आदि शामिल है।