गृहमंत्री अमित शाह और महिला बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी के इस्तीफों के कारण रिक्त हुईं गुजरात से राज्यसभा की दो सीटों के चुनाव का मामला अब सर्वोच्च न्यायालय पहुंच गया है. सर्वोच्च न्यायालय कल कांग्रेस की गुजरात इकाई की याचिका पर सुनवाई करेगा. जिसमें मांग की गई है कि दोनों सीटों के लिए एक साथ चुनाव कराए जाए जबकि चुनाव आयोग ने 5 जुलाई को ही दोनों सीटों के लिए एक ही दिन अलग-अलग चुनाव कराने की घोषणा की है.
चुनाव आयोग के आदेश के खिलाफ गुजरात में नेता विपक्ष परेशभाई धनानी की याचिका पर उनके वकील विवेक तन्खा के इस आग्रह को सर्वोच्च न्यायालय ने आज स्वीकार कर लिया कि याचिका पर तत्काल सुनवाई की जाए.
गौरतलब है कि चुनाव आयोग ने 15 जून को राज्यसभा के उप चुनावों की अधिसूचना जारी करते हुए 5 जुलाई को दोनों सीटों के लिए अलग-अलग चुनाव कराने की घोषणा की है. जिसका सीधा मतलब है कि यदि अलग-अलग चुनाव होते है तो दोनों सीटें भाजपा के खाते में जाएगीं. भाजपा के पास 182 सदस्यों वाली विधानसभा में 100 सदस्यों का समर्थन है जबकि कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्ष को 75 सदस्यों का समर्थन प्राप्त है और सात सीटें अभी रिक्त है.
चुनावी गणित के अनुसार यदि एक ही दिन अलग-अलग चुनाव होते है तो भाजपा राज्यसभा की अपनी दोनों सीटों को बचाने में कामयाब हो जाएगी. जबकि कांग्रेस इस कोशिश में है कि 75 विधायकों के समर्थन से वह एक सीट पर कब्जा कर ले. और इसलिए कांग्रेस ने चुनाव आयोग के आदेश के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है.
चुनाव आयोग की दलील है कि 1994 और 2009 में दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसलों का यदि अवलोकन करें तो उसमें साफ है कि एक ही राज्य में जन प्रतिनिधित्व कानून के तहत अलग-अलग चुनाव कराए जा सकते है.
इसके विपरीत कांग्रेस की याचिका में संविधान के अनुच्छेद 14 के उल्लंघन की बात कही गई है और दलील दी गयी है कि अलग-अलग चुनाव कराने का अर्थ है जनप्रतिनिधित्व कानून के मूल सिद्धांतों की अवहेलना जो संविधान के पूरी तरह विपरीत है.
कांग्रेस ने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग सरकार के दबाव में काम कर रहा है जो पूरी तरह से असंवैधानिक, गैर कानूनी और जनप्रतिनिधित्व कानून के विरुद्ध है.