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जलवायु वित्त होगा संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन का केंद्रबिन्दु : भूपेंद्र यादव

By भाषा | Updated: October 22, 2021 20:00 IST

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नयी दिल्ली, 22 अक्टूबर केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने शुक्रवार को कहा कि ब्रिटेन में जलवायु परिवर्तन पर होने वाले संयुक्त राष्ट्र के 26वें सम्मेलन (सीओपी26) का केंद्रबिन्दु जलवायु वित्त होगा तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसमें शामिल होंगे।

ग्लासगो में 31 अक्टूबर से 12 नवंबर तक होने वाले अंतरराष्ट्रीय जलवायु सम्मेलन से पहले मीडिया से बातचीत में मंत्री ने कहा कि अभी यह तय नहीं हुआ है कि वैश्विक जलवायु चुनौती से निपटने के लिए किस देश को कितनी वित्तीय सहायता मिलेगी।

उन्होंने कहा कि ऐसे कई मुद्दे हैं जिन पर चर्चा होगी लेकिन सबसे महत्वपूर्ण यह होगा कि विकसित देशों को विकासशील देशों को प्रति वर्ष 100 अरब डॉलर की सहायता के अपने वादे को पूरा करने की याद दिलाई जाए।

यादव ने कहा कि मोदी सम्मेलन में शामिल होंगे, लेकिन उन्होंने उनकी यात्रा की तारीख की पुष्टि नहीं की।

वर्ष 2009 में कोपेनहेगन में संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन में, विकसित देशों ने जलवायु परिवर्तन को कम करने में मदद करने के लिए विकासशील देशों को प्रति वर्ष 100 अरब डॉलर की मदद प्रदान करने का वादा किया था जो मिलनी बाकी है। 2009 से अब तक यह राशि 1,000 अरब डॉलर से अधिक हो गई है।

पर्यावरण सचिव आर पी गुप्ता ने इस मुद्दे पर कहा कि भारत को मिलने वाली राशि का अभी पता नहीं चल पाया है।

उन्होंने यह भी कहा कि जलवायु वित्त की पूर्ति किए जाने के अलावा भारत यह उम्मीद भी करता है कि देश को जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग की वजह से हुए नुकसान की क्षतिपूर्ति भी विकसित देश करें क्योंकि विकसित दुनिया इसके लिए जिम्मेदार है।

गुप्ता ने कहा, ‘‘बाढ़ और चक्रवातों की गंभीरता तथा आवृत्ति में वृद्धि हुई है और यह जलवायु परिवर्तन के कारण है। विश्व स्तर पर 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि विकसित देशों और उनके ऐतिहासिक उत्सर्जन के कारण हुई है। हमारे लिए मुआवजा होना चाहिए।’’

उन्होंने कहा कि विकसित देशों को नुकसान का खर्च वहन करना चाहिए क्योंकि वे इसके लिए कहीं न कहीं जिम्मेदार हैं। गुप्ता ने कहा कि भारत को सीओपी 26 में अच्छे परिणाम की उम्मीद है।

पर्यावरण सचिव ने कहा कि भारत का प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन प्रति वर्ष 1.96 टन है जो चीन और अमेरिका से काफी कम है, जो क्रमशः 8.4 टन और 18.6 टन उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं। गुप्ता ने कहा, "हम विकसित देशों के कारण पीड़ित हैं।"

विश्व का औसत प्रति व्यक्ति उत्सर्जन प्रति वर्ष 6.64 टन है।

पेरिस समझौते के तहत, भारत के राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित तीन मात्रात्मक योगदान (एनडीसी) हैं, जिसमें 2030 तक 2005 के स्तर की तुलना में अपने सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता को 33-35 प्रतिशत कम करना, 2030 तक जीवाश्म मुक्त ऊर्जा स्रोतों से कुल संचयी बिजली उत्पादन को 40 प्रतिशत तक बढ़ाना और अतिरिक्त वन और वृक्ष आवरण के माध्यम से 2.5 से 3 अरब टन तक का अतिरिक्त कार्बन सिंक बनाना शामिल है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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