प्रधान न्यायाधीश ने कृष्णा नदी जल विवाद मामले में आंध्र प्रदेश की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग किया

By भाषा | Updated: August 4, 2021 14:01 IST2021-08-04T14:01:36+5:302021-08-04T14:01:36+5:30

CJI recuses himself from hearing Andhra Pradesh's plea in Krishna river water dispute case | प्रधान न्यायाधीश ने कृष्णा नदी जल विवाद मामले में आंध्र प्रदेश की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग किया

प्रधान न्यायाधीश ने कृष्णा नदी जल विवाद मामले में आंध्र प्रदेश की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग किया

नयी दिल्ली, चार अगस्त भारत के प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण ने बुधवार को अपने आप को आंध्र प्रदेश की उस याचिका पर सुनवाई से अलग कर लिया जिसमें आरोप लगाया गया है कि तेलंगाना ने उसे कृष्णा नदी से पीने और सिंचाई के पानी के उसके वैध हिस्से से वंचित कर दिया है।

आंध्र प्रदेश ने तेलंगाना के साथ विवाद को मध्यस्थता से सुलझाने के उच्चतम न्यायालय के सुझाव को मानने से ‘‘इनकार’’ कर दिया है। इसके बाद , प्रधान न्यायाधीश ने मामले की सुनवाई से अपने आप को अलग कर लिया।

आंध्र प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले प्रधान न्यायाधीश ने कहा था कि उनका संबंध दोनों राज्यों से है और उन्होंने आंध्र प्रदेश तथा तेलंगाना को अपना विवाद ‘‘मध्यस्थता’’ से हल करने का सुझाव देते हुए कहा था कि वह ‘‘अनावश्यक’’ रूप से हस्तक्षेप नहीं करना चाहता।

प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने आंध्र प्रदेश की ओर से पेश हुए वकील जी उमापति की उन दलीलों पर गौर किया कि राज्य मध्यस्थता का विकल्प चुनने के बजाय इस मामले में शीर्ष अदालत का फैसला चाहता है।

इस पर प्रधान न्यायाधीश ने आदेश दिया, ‘‘फिर इस मामले को किसी और पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करिए। अगर आप मध्यस्थता नहीं चाहते तो हम आपको विवश नहीं कर रहे हैं। इस मामले को दूसरे पीठ के समक्ष रखिए।’’

प्रधान न्यायाधीश ने संक्षिप्त सुनवाई के दौरान कहा, ‘‘वे मध्यस्थता नहीं चाहते और मैं मामले पर सुनवाई नहीं करना चाहता।’’ केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अगर प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ आंध्र प्रदेश की याचिका पर सुनवाई करती है तो केंद्र सरकार को कोई आपत्ति नहीं है। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे कोई आपत्ति नहीं है और न ही सरकार को। हमारा पूरा भरोसा है।’’

प्रधान न्यायाधीश रमण ने आंध्र प्रदेश के मामले पर सुनवाई करने से विनम्रता से इनकार करते हुए कहा, ‘‘शुक्रिया।’’

प्रधान न्यायाधीश ने दो अगस्त को कहा था, ‘‘मैं कानूनी रूप से इस मामले पर सुनवाई नहीं करना चाहता। मेरा संबंध दोनों राज्यों से है। अगर यह मामला मध्यस्थता से हल होता है तो कृपया ऐसा करिए। हम उसमें मदद कर सकते हैं। वरना मैं इसे दूसरी पीठ के पास भेज दूंगा।’’

आंध्र प्रदेश के वकील ने उच्चतम न्यायालय की मध्यस्थता की पेशकश पर राज्य की राय पीठ को बताने के लिए बुधवार तक का समय लिया था। जुलाई में आंध्र प्रदेश सरकार ने शीर्ष न्यायालय का रुख करते हुए दावा किया था कि तेलंगाना सरकार आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014 के तहत गठित सर्वोच्च परिषद द्वारा लिए गए फैसलों, इस अधिनियम के तहत गठित कृष्णा नदी प्रबंधन बोर्ड (केआरएमबी) और केंद्र के निर्देशों को मानने से इनकार कर दिया।

याचिका में कहा गया कि आंध्र प्रदेश में लोगों के जीने के अधिकार समेत कई मौलिक अधिकारों का ‘‘गंभीर रूप से हनन’’ किया गया क्योंकि उन्हें तेलंगाना सरकार तथा उसके अधिकारियों के ‘‘असंवैधानिक, गैरकानूनी और अनुचित’’ कृत्यों के कारण ‘‘पानी के वैध बंटवारे’’ से वंचित रखा जा रहा है।

इसमें कहा गया, ‘‘इससे आंध्र प्रदेश के लोगों को काफी मुश्किल हुई क्योंकि श्रीशैलम बांध परियोजना के साथ ही नागार्जुन सागर परियोजना और पुलीचिंताला परियोजना में पानी की कमी से पानी की उपलब्धता काफी प्रभावित हुई।’’

याचिका में उच्चतम न्यायालय से केंद्र को श्रीशैलम, नागार्जुनसागर और पुलीचिंताला जलाशयों का नियंत्रण अपने हाथ में लेने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।

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Web Title: CJI recuses himself from hearing Andhra Pradesh's plea in Krishna river water dispute case

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