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सीजेएआर ने ‘तुच्छ’ जनहित यचिका दायर करने पर लगे जुर्माने की राशि न्यायालय में जमा करायी

By भाषा | Updated: November 3, 2020 22:41 IST

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नयी दिल्ली, तीन नवंबर कैम्पेन फॉर ज्यूडीशियल अकाउन्टेबिलिटी एंड रिफॉर्म्स नामक संगठन ने उच्चतम न्यायालय को मंगलवार को सूचित किया कि उसने न्यायालय की रजिस्ट्री में 25 लाख रुपए जमा करा दिये हैं और संगठन ने यह राशि जमा कराने में हुआ विलंब माफ करने का अनुरोध किया।

शीर्ष अदालत ने मेडिकल कॉलेज घोटाले में उच्चतर न्यायपालिका में कथित रिश्वत की एसआईटी से जांच कराने के लिये ‘तुच्छ’ जनहित याचिका दायर करने पर इस संगठन पर यह जुर्माना लगाया था।

न्यायमूर्ति आर के अग्रवाल, न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा (दोनों अब सेवानिवृत्त) और न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर की पीठ ने दिसंबर, 2017 को कैम्पेन फॉर ज्यूडीशियल अकाउन्टेबिलिटी एंड रिफॉर्म्स की जनहित याचिका खारिज हुये इसे ‘अपमानजनक, अवमाननाकारक और बदनाम करने वाला’ करार दिया था और इसे छह सप्ताह के भीतर रजिस्ट्री में 25 लाख रुपए बतौर हर्जाना जमा करने का निर्देश दिया था।

यह राशि उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन एडवोकेट्स वेलफेयर फण्ड में स्थानांतरित की जानी थी।

इस संगठन ने अधिवक्ता प्रशांत भूषण के माध्यम से नया आवेदन दायर कर न्यायालय को सूचित किया कि उसने दो नवंबर की तारीख का 25 लाख रुपए का बैंक ड्राफ्ट शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री में जमा करा दिया है और उसने यह रकम जमा कराने में करीब ढाई साल के विलंब को माफ करने का अनुरोध किया।

आवेदन में हालांकि, इस बात का उल्लेख किया गया है कि बाद में सीबीआई ने शीर्ष अदालत से अपेक्षित आदेश प्राप्त करने के आरोप में उड़ीसा उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश आई एम कुदुसी और पांच अन्य के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की है और 2017 का वह फैसला वापस लेने का अनुरोध किया है जिसमें संगठन पर जुर्माना लगाया गया था।

आवेदन में कहा गया है कि उच्च न्यायालय में प्राथमिकी के मामले की सुनवाई करने वाले उच्च न्यायालय के एक पीठासीन न्यायाधीश को आंतरिक जांच समिति ने दोषी पाया है और उसे पद से हटाने के लिये कार्यवाही की सिफारिश की है।

आवेदन में यह भी कहा गया है, ‘‘इस आवेदन में उल्लिखित सारी परिस्थितियों के आलोक में नजीर बनाने वाला जुर्माना लगाने का आदेश वापस लिया जाये क्योंकि यह अनुचित तरीके से कुछ बहुत ही प्रतिष्ठित व्यक्तियों की प्रतिष्ठा खराब करता है, जो वैसे भी बेदाग हैं।’’

शीर्ष अदालत ने इस मामले में इस संगठन की पुनर्विचार याचिका भी खारिज कर दी थी।

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