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लोकसभा में नागरिकता संशोधन बिल पेश, पढ़ें अमित शाह का पूरा भाषण

By स्वाति सिंह | Updated: December 9, 2019 13:34 IST

अमित शाह ने कहा नागरिकता (संशोधन) विधेयक किसी भी आर्टिकल को आहत नहीं करता है। बिल अल्पसंख्यकों के खिलाफ नहीं है। इसपर सदन में सभी विपक्षी सांसदों ने आर्टिकल 14 का जिक्र किया।

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ठळक मुद्देअमित शाह ने सोमवार को लोकसभा में नागरिकता (संशोधन) विधेयक पेश किया है।अमित शाह ने कहा 'लोगों ने हमे पांच साल के लिए चुना है, इसलिए आपको सुनना पड़ेगा

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सोमवार को लोकसभा में नागरिकता (संशोधन) विधेयक पेश किया है। इस दौरान विरोधी पार्टियों ने सदन में जमकर विरोध किया। अमित शाह ने बिल के बारे में बताते हुए कहा कि मैं पूरे सदन और देश को बताना यह चाहता हूं कि ये बिल किसी भी आर्टिकल को दरकिनार नहीं करता। 

अमित शाह ने कहा नागरिकता (संशोधन) विधेयक किसी भी आर्टिकल को आहत नहीं करता है। बिल अल्पसंख्यकों के खिलाफ नहीं है।  इसपर सदन में सभी विपक्षी सांसदों ने आर्टिकल 14 का जिक्र किया।  तब गृह मंत्री ने कहा मैं ये कहना चाहता हूं कि समानता का अधिकार इससे आहत नहीं होता है। उन्होंने कहा ऐसा नहीं है कि कि पहली बार नागरिकता के लिए सरकार कोई फैसला ले रही है। इंदिरा सरकार ने फैसला लिया था कि बांग्लादेश से जो भी लोग आए हुए हैं उनको नागरिकता दी जाएगी। पाकिस्तान के लोगों को क्यों नहीं दी गई। अमित शाह ने कहा कि ये बिल भी बांग्लादेश से आए हुए लोगों को लेकर है।

उन्होंने कांग्रेस पर आरोप लगाते हुए कहा कि उन्हीं के चलते इस बिल को लाने की जरूरत है। कांग्रेस ने धर्म के आधार पर विभाजन किया है। अमित शाह ने कहा 'लोगों ने हमे पांच साल के लिए चुना है, इसलिए आपको सुनना पड़ेगा। 1971 में बांग्लादेशियों को नागरिकता दी गई।'

क्या है नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएबी): 

-यह बिल नागरिकता बिल 1955 में संशोधन करता है, जिससे चुनिंदा श्रेणियों में अवैध प्रवासियों को भारतीय नागरिकता देने का पात्र बनाया जा सके। 

-नागरिकता संशोधन बिल का उद्देश्य बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से धार्मिक उत्पीड़न का शिकार होकर भारत आने वाले छह समुदायों-हिंदू, सिख, जैन बौद्ध, ईसाई और पारसी धर्म के लोगों को भारतीय नागरिकता देना है। 

-इस बिल में इन छह समुदायों को ऐसे लोगों को भी नागरिकता देने का प्रस्ताव है, जो  वैध यात्रा दस्तावेजों के बिना ही भारत आए गए थे या जिनके दस्तावेजों की समय सीमा समाप्त हो गई है।  

-अगर कोई व्यक्ति, इन तीन देशों से के उपरोक्त धर्मों से संबंधित है, और उसके पास अपने माता-पिता के जन्म का प्रमाण नहीं है, तो वे भारत में छह साल निवास के बाद भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं।

-ये संशोधित बिल उन लोगों पर लागू होता है, जिन्हें धर्म के आधार पर उत्पीड़न की वजह से भारत में शरण लेने के लिए मजबूर होना पड़ा।

-इस बिल का उद्देश्य ऐसे लोगों को अवैध प्रवास की कार्यवाही से बचाना भी है।

क्या है नागरिकता संशोधन बिल के लिए योग्य होने की कट ऑफ डेट -इस बिल के तहत भारत की नागरिकता के लिए योग्य होने की कट ऑफ डेट 31 दिसंबर 2014 है। इसका मतलब है कि इन छह समुदायों के लोगों को इस तारीख या इसके पहले भारत में प्रवेश किया हुआ होना चाहिए। वर्तमान कानून के मुताबिक, नागरिकता या तो भारत में पैदा होने वाले लोगों या देश में कम से कम 11 साल रहने वाले लोगों को दी जाती है। 

कहां लागू नहीं होगा नागरिकता संशोधन बिल

-इस नागरिकता बिल में दो अपवाद जोड़े गए हैं। सीएबी छठी अनुसूची के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों में लागू नहीं होगा (जो स्वायत्त आदिवासी बहुल क्षेत्रों से संबंधित है), जिनमें असम, मेघायल, त्रिपुरा और के क्षेत्र मिजोरम शामिल हैं। 

-साथ ही ये बिल उन राज्यों पर भी लागू नहीं होगा जहां इनर लाइन परमिट है (अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और मिजोरम)।

क्या है इस बिल से सरकार का उद्देश्य

-संशोधित बिल में लिखा है, 'नागरिकता संशोधन अधिनियम 1955 में प्रस्तावित संशोधनों से भारतीय नागरिकता की सुविधा का विस्तार एक विशिष्ट वर्ग के लोगों के लिए होगा, जो वर्तमान में नागरिकता प्राप्त करने में कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं।'

-यह बिल सरकार को किसी के ओसीआई (सिटीजंश ऑफ इंडिया) कार्ड के पंजीकरण को रद्द करने में भी सक्षम बनाएगा यदि वे नागरिकता कानून या किसी अन्य कानून के प्रावधानों का उल्लंघन करते हैं।

विपक्षी दल क्यों कर रहे हैं विरोध, जानें सरकार का तर्क

विपक्षी दल नागरिकता संशोधन विधेयक को धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के खिलाफ बताते हुए इसका विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि सरकार ने मुस्लिमों को इससे बाहर रखकर उनके साथ भेदभाव किया है। 

वहीं सरकार का कहना है कि इसमें शामिल छह समुदाय ही इस्लामिल बहुलता वाले पड़ोसी देशों में अल्पसंख्यक हैं, जहां उनके साथ धर्म के आधार पर अत्याचार किया जाता है, ऐसे में ये भारत का कर्तव्य है कि वह धार्मिक उत्पीड़नका शिकार लोगों को शरण दे।   

 

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