लोकल पर वोकल नारे में मत उलझाइए, चीनी बाजार की सच्चाई भी बताइए, कुछ ऐसे हैं बाजार के हालात
By प्रदीप द्विवेदी | Updated: June 11, 2020 17:54 IST2020-06-11T17:54:16+5:302020-06-11T17:54:39+5:30
कंफेडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स ने इस दिशा में बेहतर कार्य शुरू किया है, जिसके तहत व्यापारियों ने करीब 3,000 ऐसी वस्तुओं की लिस्ट बनाई है जिनका बड़ा हिस्सा चीन से आयात किया जाता है.

चीनी प्रोडक्ट को रोकने के लिए केन्द्र सरकार की इच्छाशक्ति और आर्थिक संरक्षण बेहद जरूरी है. (फाइल फोटो)
पीएम मोदी ने लोकल पर वोकल का नारा देकर स्वदेशी आंदोलन वालों को खुश तो कर दिया है, लेकिन सच्चाई इससे एकदम अलग और बहुत कड़वी है. पीएम मोदी सरकार चीनी सामान को भारत में आने से सरकारी तौर पर नहीं रोक सकती है, तो कई प्राइवेट उद्योग भी चीनी प्रोडक्ट, पार्ट्स पर ही निर्भर हैं.
खबर है कि 3 जून को जब विश्व साइकिल दिवस मनाया जा रहा था, तब इसी दिन सुबह जब देश की सबसे बड़ी साइकिल निर्माता कंपनी एटलस के उत्तर प्रदेश के साहिबाबाद स्थित कारखाने के कर्मचारी काम के लिए पहुंचे तो गेट पर नोटिस लगा मिला कि इस इकाई को बंद कर दिया गया है और सभी कर्मचारियों को काम से हटा दिया गया है. अब कहां की बनी साइकिल चलाओगे?
ऐसा नहीं है कि यह सब अचानक हुआ है. दो साल पहले भी चीन के पब्लिक बाइक शेयरिंग (पीबीएस) कांसेप्ट को लेकर भारतीय साइकिल उद्योग में हड़कंप मच गया था. इस उद्योग से जुड़े लोगों का कहना था कि जिस तरह से चीन की ओर से लगातार घुसपैठ बनाई जा रही है, इससे आने वाले दस सालों में साइकिल इंडस्ट्री का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा. साइकिल निर्माण में मुख्य पार्ट- गियर बदलने वाला गियर शिफ्टर भारत में बनता ही नहीं है, तो कई पार्ट्स आसानी से और चीन से सस्ते मिलते ही नहीं हैं.
मशीनरी को लेकर भारतीय इंडस्ट्री चीन पर आश्रित
अभी दो माह पहले ही खबरें थी कि भारतीय व्यवसायियों का कहना था कि चीन में उत्पादन शुरू नहीं हुआ तो संकट में आ जाएगी यहां की इंडस्ट्री. देश में कई ऐसे उत्पाद हैं, जो चीन से आयात कर यहां मेन्यूफैक्चरर्स किए जाते हैं, लिहाजा मशीनरी को लेकर भी भारतीय इंडस्ट्री काफी हद तक चीन पर आश्रित है. अगर मशीन के आयात की बात करें, तो चीन इसमें 70 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखता है. वहीं साइकिल इंडस्ट्री के पार्टस को देखें, तो इसके लिए भी कई उत्पादों में भारतीय साइकिल निर्माता चीन पर आश्रित हैं.
चीन से आने वाले ज्यादातर प्रोडक्ट भारत में बनाए जा सकते हैं, परन्तु एक तो यहां टेक्नोलॉजी महंगी हैं और दूसरा- बैंकिंग सिस्टम उलझा हुआ है, लिहाजा लागत मूल्य तो बढ़ता ही है, समय पर पैसों का इंतजाम नहीं होने पर कारोबारी तनाव में भी रहते हैं.
चीन से आयात होने वाले पार्ट्स और प्रोडक्ट्स
साइकिल और साइकिल पार्टस- 1600 करोड़ रुपए
सिलाई मशीन और पार्टस- 2 हजार करोड़ रुपए
इलेक्ट्रिकल एवं मशीनरी- 1,84,789 करोड़ रुपए
गारमेंट्स सेक्टर- 16,500 करोड़ रुपए
प्लास्टिक पार्टस- 15250 करोड़ रुपए
लैदर गुड्स एवं फुटवियर- 5255 करोड़ रुपए
आयरन एवं स्टील- 19950 करोड़
खिलौने- 3147 करोड़
आर्गेनिक केमिकल- 45691 करोड़
पेपर प्रोडक्ट- 3934 करोड़
क्रेमिक एवं ग्लासवियर- 5898 करोड़
फर्नीचर- 7737 करोड़ रुपए.
व्यापारियों ने करीब 3,000 वस्तुओं की बनाई लिस्ट
ऐसा भी नहीं है कि चीन के इस जाल को काटा नहीं जा सकता है, लेकिन इसके लिए केन्द्र सरकार की इच्छाशक्ति और आर्थिक संरक्षण बेहद जरूरी है. अभी, कंफेडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स ने इस दिशा में बेहतर कार्य शुरू किया है, जिसके तहत व्यापारियों ने करीब 3,000 ऐसी वस्तुओं की लिस्ट बनाई है जिनका बड़ा हिस्सा चीन से आयात किया जाता है, लेकिन जिनका विकल्प भारत में मौजूद है या तैयार किया जा सकता है. इसके बाद चीन से आयातित माल के बहिष्कार का अभियान शुरू किया गया है.
कैट ने वस्तुओं की बनाई गई सूची
कैट ने जिन वस्तुओं की सूची बनाई है, उनमें मुख्यतः इलेक्ट्रॉनिक गुड्स, खिलौने, गिफ्ट आइटम, कंफेक्शनरी उत्पाद, कपड़े, घड़ियां, कई तरह के प्लास्टिक उत्पाद आदि शामिल हैं. कैट अपने इस अभियान के तहत देश भर में व्यापारियों एवं लोगों को जागरूक करेगा कि- चीनी वस्तुओं की बजाय भारतीय उत्पाद ही बेचें और खरीदें!