मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा- पुरखों के सपनों को पूरा करने का काम शुरू किया छत्तीसगढ़ सरकार ने

By भाषा | Updated: December 30, 2019 05:21 IST2019-12-30T05:21:36+5:302019-12-30T05:21:36+5:30

त्रेता युग में भगवान राम का ननिहाल यहीं था और उन्होंने अपने वनवास का अधिकांश समय छत्तीसगढ़ में बिताया था। द्वापर में कृष्ण-अर्जुन के यहां आने के प्रमाण हैं। बौद्धकाल में सिरपुर में बौद्ध ज्ञान एवं शिक्षा का प्रमुख केन्द्र रहा है।

Chief Minister Bhupesh Baghel said - Chhattisgarh government started the work of fulfilling the dreams of ancestors | मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा- पुरखों के सपनों को पूरा करने का काम शुरू किया छत्तीसगढ़ सरकार ने

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा- पुरखों के सपनों को पूरा करने का काम शुरू किया छत्तीसगढ़ सरकार ने

Highlightsआजादी की लड़ाई के दौरान 1857 में शहीद वीर नारायण सिंह ने अंग्रेजों के विरूद्ध बिगुल फूंका। आदिवासियों ने जंगल सत्याग्रह कर अंग्रेजों के शोषण नीति के विरूद्ध आवाज उठाई।

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा है कि पहले छत्तीसगढ़ की पहचान नक्सली गतिविधियों से होती थी लेकिन अब उनकी सरकार ने राज्य की गौरवशाली परंपरा और पुरखों के सपनों को पूरा करने का काम शुरू किया है। बघेल ने रविवार को यहां राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के समापन समारोह में कहा, ‘‘छत्तीसगढ़ का महत्व हर युग में रहा है।

त्रेता युग में भगवान राम का ननिहाल यहीं था और उन्होंने अपने वनवास का अधिकांश समय छत्तीसगढ़ में बिताया था। द्वापर में कृष्ण-अर्जुन के यहां आने के प्रमाण हैं। बौद्धकाल में सिरपुर में बौद्ध ज्ञान एवं शिक्षा का प्रमुख केन्द्र रहा है। आजादी की लड़ाई के दौरान 1857 में शहीद वीर नारायण सिंह ने अंग्रेजों के विरूद्ध बिगुल फूंका। आदिवासियों ने जंगल सत्याग्रह कर अंग्रेजों के शोषण नीति के विरूद्ध आवाज उठाई। यहां समाज सुधार के क्षेत्र में बाबा गुरू घासीदास और पंडित सुन्दरलाल शर्मा सहित अनेक महापुरूषों का उल्लेखनीय योगदान हैं।’’

मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘पिछले पंद्रह वर्षों में छत्तीसगढ़ की पहचान लुप्त हो गई थी। इसे केवल देश के नक्शे पर नक्सल हिंसा की गतिविधियों में स्थान मिलता था। हमारी सरकार ने छत्तीसगढ़ की गौरवशाली परम्परा और इतिहास एवं पुरखों के सपनों को पूरा करने की दिशा में तेजी से काम करना शुरू किया है।’’ बघेल ने इस दौरान कहा कि राज्य में अब प्रति वर्ष राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का आयोजन होगा। यह आयोजन राज्योत्सव के साथ होगा। राज्योत्सव कुल पांच दिनों का होगा।

इसमें पहले दो दिन राज्य के स्थानीय कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करेंगे। वहीं शेष तीन दिन राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का आयोजन किया जाएगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि छत्तीसगढ़ में आयोजित राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में पहली बार देश-विदेश के कलाकारों ने एक साथ मंच साझा किया है। तीन दिवसीय महोत्सव में बड़ी संख्या में आदिवासी कलाकारों ने अपनी कला और संस्कृति को नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत किया। कार्यक्रम में छह देशों सहित 25 राज्यों और तीन केन्द्र शासित प्रदेशों के कलाकार एक साथ जुटे। इस महोत्सव में देश-विदेश की जनजातीय संस्कृतियों को करीब से जानने का लोगों को मौका मिला।

इस महोत्सव ने अनेकता में एकता का संदेश दिया। बघेल ने कहा कि देश-विदेश के कलाकारों ने जिस शिद्दत से अपनी प्रस्तुति दी उसकी अमिट छाप हमारे दिल में हमेशा रहेगी। समापन कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि महाराष्ट्र विधानसभा के अध्यक्ष नानाभाऊ पटोले ने कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार ने आदिवासियों की कला एवं संस्कृति को देश-दुनिया में पहुंचाने और आदिवासियों में नई ऊर्जा लाने का काम किया है तथा आदिवासियों के जीवन में एक नई क्रांति और जोश भरा है। पटोले ने कहा कि सी.पी. बरार के समय छत्तीसगढ़ और विदर्भ का क्षेत्र एक साथ थे। उन्होंने कहा कि आदिवासी जनजीवन को प्रेरणा देने के लिए महाराष्ट्र में भी इस प्रकार के आयोजन की पहल की जाएगी। समापन समारोह में मुख्यमंत्री बघेल ने नृत्य महोत्सव में आयोजित प्रतियोगिता के विजेता नृतक दलों को पुरस्कार राशि, प्रशस्ति पत्र और स्मृति चिह्न प्रदान कर उन्हें सम्मानित किया। राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में कलाकारों ने चार श्रेणीयों में अपने नृत्य का प्रदर्शन किया। इसमें विवाह एवं अन्य संस्कार, पारंम्परिक त्यौहार एवं अनुष्ठान, फसल कटाई एवं कृषि तथा अन्य पांरम्परिक विधाएं शामिल रहीं। प्रत्येक श्रेणी के लिए प्रथम पुरस्कार के रूप में नृतक दल को पांच लाख रूपए की राशि, द्वितीय पुरस्कार के रूप में तीन लाख रूपए की राशि, तृतीय पुरस्कार में दो लाख रूपए और सांत्वना पुरस्कार के रूप में नर्तक दलों को 25-25 हजार रूपए के चेक प्रदान किए गए। समारोह में छत्तीसगढ़ विधानसभा अध्यक्ष चरणदास महंत, बघेल मंत्रिमंडल के सदस्य, वरिष्ठ अधिकारी और बड़ी संख्या में आम नागरिक मौजूद थे। भाषा संजीव सिम्मी सिम्मी

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