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चारधाम राजमार्ग परियोजना: न्यायालय ने कहा, केंद्र के उपचारात्मक उपाय 'मंद और सीमित'

By भाषा | Updated: December 14, 2021 19:59 IST

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नयी दिल्ली, 14 दिसंबर उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि उत्तराखंड में रणनीतिक चारधाम राजमार्ग के चौड़ीकरण से संबंधित पर्यावरणीय मुद्दों से निपटने के लिए केंद्र द्वारा उठाए गए कदम पर्याप्त नहीं हैं तथा ये वन्यजीवों एवं जल संसाधनों की उपलब्धता को प्रभावित करने वाले कचरे के निपटान सहित महत्वपूर्ण पहलुओं का समाधान नहीं करते।

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति विक्रमनाथ की पीठ ने कहा कि यहां तक ​​​​कि पहाड़ी काटने और भूस्खलन के संबंध में उपचारात्मक उपाय "मंद और सीमित" हैं।

तीन न्यायाधीशों की पीठ ने स्थायी उपायों को अपनाकर इस परियोजना के दृष्टिकोण में महत्वपूर्ण बदलाव का आह्वान किया।

शीर्ष अदालत ने इस बात का उल्लेख तब किया जब इसने उत्तराखंड में रणनीतिक चारधाम राजमार्ग परियोजना के तहत बन रही सड़कों को यह कहते हुए दो लेन तक चौड़ी करने की मंजूरी दे दी कि हाल के दिनों में राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौतियां उत्पन्न हुई हैं।

न्यायालय का 83 पन्नों का यह फैसला रक्षा मंत्रालय की उस याचिका पर आया है जिसमें शीर्ष अदालत के पहले के आदेश में संशोधन का अनुरोध किया गया था। गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) सिटीजन फॉर ग्रीन दून ने सड़क चौड़ीकरण के खिलाफ याचिका दायर की थी।

पीठ ने कहा कि केंद्र के कदम केवल उन सड़कों तक सीमित हैं जो रक्षा मंत्रालय द्वारा दायर आवेदन की विषय वस्तु हैं, जो केवल उन सड़कों से संबंधित हैं जो भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए रणनीतिक महत्व की हैं।

इसने कहा, "हालांकि, यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि परियोजना में 53 व्यक्तिगत परियोजनाएं शामिल हैं, जिनमें से सभी ऐसी सड़कें नहीं हैं। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि इन सड़कों और उनके आसपास का पर्यावरणीय प्रभाव कम महत्वपूर्ण होगा और इसका निवारण किए जाने की आवश्यकता नहीं है।’’

पीठ ने कहा, "राज्य ने अपने मौजूदा उपायों की प्रभावशीलता को केवल सशस्त्र बलों को सीधे उनके लाभों का उल्लेख करके सही ठहराने की कोशिश की है। वास्तव में, जबकि यह एक महत्वपूर्ण कारक है, इस स्तर की परियोजना में यह एकमात्र चीज नहीं है, जिसकी कल्पना चारधाम तीर्थयात्रा करने वालों के लिए एक अधिक सुविधाजनक मार्ग उपलब्ध कराने के लिए की गई थी।"

इसने कहा, ‘‘इस परियोजना में जो कुछ दांव पर लगा है वह पर्यावरणीय स्वास्थ्य और क्षेत्र में रहनेवाले सभी व्यक्तियों पर इसका प्रभाव है।"

शीर्ष अदालत ने कहा कि उच्चाधिकार प्राप्त समिति (एचपीसी) की सिफारिशों के अनुरूप, सभी व्यक्तिगत परियोजनाओं के लिए प्रासंगिक अध्ययनों के माध्यम से वास्तविक डेटा प्राप्त कर समस्या की प्रकृति का आकलन करना होगा।

पीठ ने कहा, "तब सभी परियोजनाओं के लिए विशिष्ट शमन उपायों को उनसे संबंधित विशिष्ट चिंताओं को ध्यान में रखते हुए लागू किया जाना चाहिए। ऐसा करने में, एचपीसी द्वारा जारी सामान्य सिफारिशों को आधाररेखा बनाया जाना चाहिए, यानी, उन्हें कम से कम लागू किया जाना चाहिए...।"

शीर्ष अदालत ने कहा कि परियोजना को पर्यावरण अनुकूल बनाए जाने को विकास के पथ पर "चेकबॉक्स" के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि इसे स्वयं में सतत विकास के मार्ग के रूप में देखा जाना चाहिए।

पीठ ने कहा, ‘‘इस प्रकार, अपनाए गए उपाय अच्छी तरह से सोचे-समझे होने चाहिए और वास्तव में परियोजना से जुड़ी विशिष्ट चिंताओं को दूर किया जाना चाहिए। जाहिर है, यह परियोजना को महंगा बना सकता है, लेकिन यह पर्यावरणीय नियम के ढांचे और सतत विकास के भीतर काम नहीं करने का वैध औचित्य नहीं हो सकता है।’’

शीर्ष अदालत ने कहा कि परियोजना को और अधिक पर्यावरण अनुकूल बनाने के लिए यह भी जरूरी है कि सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय तथा रक्षा मंत्रालय अपने द्वारा अपनाए जाने वाले उपायों में पारदर्शी हों।

एचपीसी द्वारा उठाई गईं पर्यावरणीय चिंताओं को ध्यान में रखते हुए, शीर्ष अदालत ने एक 'निगरानी समिति' का गठन किया, जो सीधे न्यायालय को रिपोर्ट करेगी तथा इसकी अध्यक्षता शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति ए के सीकरी करेंगे।

निगरानी समिति में राष्ट्रीय पर्यावरण अनुसंधान संस्थान और वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून के प्रतिनिधि भी होंगे।

इस संबंध में अंतिम अधिसूचना केंद्र द्वारा दो सप्ताह के भीतर जारी की जाएगी।

शीर्ष अदालत आठ सितंबर, 2020 के आदेश में संशोधन का अनुरोध करने वाली केंद्र की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय को महत्वाकांक्षी चारधाम राजमार्ग परियोजना को लेकर जारी 2018 के परिपत्र में निर्धारित सड़क की चौड़ाई 5.5 मीटर का पालन करने को कहा गया था। यह सड़क चीन (तिब्बत) की सीमा तक जाती है।

रक्षा मंत्रालय ने अपनी अर्जी में अदालत से पूर्व के आदेश में संशोधन करने का अनुरोध किया था। इसने साथ ही यह निर्देश देने का अनुरोध किया था कि ऋषिकेश से माना, ऋषिकेश से गंगोत्री और टनकपुर से पिथौरा के राजमार्ग को दो लेन में विकसित किया जा सकता है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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