Central Vista Avenue inauguration: जानिए ऐतिहासिक राजपथ का सफर, किंग्सवे से कर्तव्य पथ तक
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: September 8, 2022 04:58 PM2022-09-08T16:58:23+5:302022-09-08T16:58:23+5:30
आजादी के तुरंत बाद किंग्सवे का नाम बदलकर राजपथ कर दिया गया और इसके लंबवत मार्ग क्वींसवे का नाम बदलकर जनपथ कर दिया गया। अब, राजपथ का नाम बदलकर कर्तव्य पथ कर दिया गया है।
नई दिल्ली: आजादी की सुबह से लेकर सात दशकों से अधिक समय तक वार्षिक गणतंत्र दिवस समारोहों की मेजबानी करने तक, भारत की राजधानी में ऐतिहासिक राजपथ ने औपनिवेशिक शासन को भी देखा है और एक स्वतंत्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र की आन-बान-शान का भी गवाह बना है।
रायसीना हिल परिसर से इंडिया गेट तक फैले राष्ट्रीय राजधानी के इस पथ का नाम सबसे पहले किंग्सवे था, जो नयी दिल्ली के बीचों बीच एक राजसी केंद्रीय धुरी थी। ब्रिटिश सम्राट किंग जॉर्ज पंचम द्वारा प्रशासन के केंद्र कलकत्ता (अब कोलकाता) से दिल्ली स्थानांतरित करने के बाद इसका निर्माण किया गया।
आजादी के तुरंत बाद किंग्सवे का नाम बदलकर राजपथ कर दिया गया और इसके लंबवत मार्ग क्वींसवे का नाम बदलकर जनपथ कर दिया गया। अब, राजपथ का नाम बदलकर कर्तव्य पथ कर दिया गया है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बृहस्पतिवार को राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट तक नए नामकरण वाले खंड का उद्घाटन सेंट्रल विस्टा एवेन्यू के हिस्से के रूप में करेंगे।
किंग जॉर्ज पंचम और उनकी पत्नी क्वीन मैरी ने 15 दिसंबर, 1911 को ब्रिटिश राज की ‘नयी राजधानी’ की आधारशिला रखी थी। किंग की दृष्टि के अनुरूप वास्तुकार सर एडविन लुटियन और सर हर्बर्ट बेकर ने नये राजधानी शहर का निर्माण किया, जिसकी भव्यता और स्थापत्य कला ने यूरोप और अमेरिका के सर्वश्रेष्ठ शहरों को टक्कर दी।
इस नयी राजधानी का केंद्रबिंदु रायसीना हिल परिसर था, जिसमें राजसी वायसराय हाउस (अब राष्ट्रपति भवन) और नॉर्थ ब्लॉक और साउथ ब्लॉक शाही सचिवालय थे। ग्रेट प्लेस (जिसे बाद में विजय चौक का नाम दिया गया) से इंडिया गेट तक एक भव्य मार्ग बनाया गया, जिसके दोनों तरफ हरे-भरे लॉन, फव्वारे और सजावटी लैम्पपोस्ट थे।
बेकर ने राष्ट्रपति भवन के पास एक गोलाकार संसद भवन बनाया जिसका उद्घाटन जनवरी 1927 में तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन ने किया था। दो विश्व युद्धों के बीच शहर का निर्माण किया गया था और इसे बनने में 20 साल से अधिक का समय लगा था।
वायसराय इरविन ने ही 13 फरवरी, 1931 को इसका उद्घाटन किया था। लंबे औपनिवेशिक शासन के बाद 15 अगस्त, 1947 को भारत के आजाद होने पर लोग रायसीना हिल से इंडिया गेट तक के मार्ग में स्वतंत्र भारत की सुबह का स्वागत करने के लिए उमड़ पड़े थे।
भारत 26 जनवरी 1950 को गणतंत्र बन गया और राजपथ 1951 से सभी गणतंत्र दिवस समारोहों का स्थल रहा है। केवल पहला गणतंत्र दिवस समारोह इंडिया गेट परिसर के पीछे इरविन स्टेडियम (अब कैप्टन ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम) में आयोजित किया गया था, जहां राजपथ खंड समाप्त होता है।
नयी दिल्ली नगरपालिका परिषद (एनडीएमसी) ने नाम बदलने को मंजूरी दे दी और बुधवार को इस संबंध में एक सार्वजनिक नोटिस जारी करने के बाद राजपथ और सेंट्रल विस्टा लॉन को आधिकारिक तौर पर कर्तव्य पथ का नाम दिया गया।
विदेश और संस्कृति राज्य मंत्री मीनाक्षी लेखी ने बुधवार को कहा कि ब्रिटिश शासन के दौरान राजपथ को किंग्सवे के नाम से जाना जाता था, जबकि जनपथ को क्वींसवे के नाम से जाना जाता था। लेखी एनडीएमसी की सदस्य भी हैं। उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि, स्वतंत्रता के 75 वर्षों के बाद, यह महसूस किया गया कि लोकतंत्र के मूल्यों और सिद्धांतों और समकालीन नए भारत के अनुरूप राजपथ का नाम बदलने की जरूरत है।
कर्तव्य पथ उन सभी को भी प्रेरित करेगा जो देश, समाज और अपने परिवारों के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए इस सड़क पर आते हैं या इसे पार करते हैं।’’ एनडीएमसी के उपाध्यक्ष सतीश उपाध्याय ने कहा कि प्रस्ताव केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय से प्राप्त हुआ था।
मोदी बृहस्पतिवार को इंडिया गेट पर बोस की 28 फुट ऊंची प्रतिमा का अनावरण भी करेंगे जो सजावटी छतरी में स्थित है। किंग जॉर्ज पंचम की प्रतिमा 1968 में हटाए जाने के बाद से यह छतरी खाली थी और बाद में इस प्रतिमा को उत्तर-पश्चिम दिल्ली में कोरोनेशन पार्क में जगह मिली। संयोग से 1911 में इसी जगह दरबार का आयोजन हुआ था।
अभिलेखीय रिकॉर्ड के अनुसार इंडिया गेट के सामने एक सजावटी छतरी के नीचे स्थित किंग जॉर्ज पंचम की भव्य संगमरमर की प्रतिमा का अनावरण 1939 में तत्कालीन वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो ने ब्रिटिश सम्राट के लिए एक उपयुक्त स्मारक के रूप में किया था, जिसके शासनकाल में ‘नयी दिल्ली’ राजधानी बनाई गई थी।
(कॉपी भाषा)