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केंद्र को लंबित मुद्दों पर किसानों से बात शुरू करनी चाहिए : मलिक

By भाषा | Updated: November 24, 2021 18:55 IST

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मुंबई, 24 नवंबर महाराष्ट्र के कैबिनेट मंत्री और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के नेता नवाब मलिक ने बुधवार को मांग की है कि केंद्र कृषि उपज के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) कानून लाने समेत लंबित मुद्दों के समाधान के लिये यथाशीघ्र प्रदर्शनकारी किसानों के साथ बातचीत शुरू करे।

कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले के साथ एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए मलिक ने तीन विवादास्पद कृषि-विपणन कानूनों के खिलाफ दिल्ली के बाहर साल भर के विरोध के दौरान मारे गए किसानों को मुआवजे की भी मांग की। इन तीन कृषि कानूनों को अब केंद्र द्वारा निरस्त किया जा रहा है।

राकांपा और कांग्रेस शिवसेना के नेतृत्व वाली महाविकास आघाड़ी (एमवीए) सरकार का हिस्सा हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले हफ्ते घोषणा की कि तीन कृषि कानून, जो पिछले एक साल से किसानों के विरोध के केंद्र में थे, को निरस्त कर दिया जाएगा। मोदी ने जोर देकर कहा था कि कानून किसान समर्थक हैं, लेकिन केंद्र किसानों के एक वर्ग को उनके लाभों के बारे में नहीं समझा सका।

मलिक ने कहा, “जब तक एमएसपी लाने का कानून पारित नहीं किया जाता, तब तक किसानों की मांगें अधूरी ही रहेंगी। गलत नीतियों के कारण कम से कम 700 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं।” मंत्री ने कहा कि लोकतंत्र में किसी भी समस्या के समाधान के लिये बातचीत अहम है।

मलिक ने कहा, “संवाद (किसानों के साथ) की पहल (सरकार द्वारा) शुरुआत में (पिछले साल के विरोध के) की गयी थी। तबसे धरना प्रदर्शन को खत्म किया जा रहा था। अब, एकतरफा घोषणा है कि कुछ किसानों को मनाया नहीं जा सका (इसलिए कानूनों को निरस्त किया जा रहा है)।”

उन्होंने कहा, “क्या कानून किसानों के लिये बनाए गए थे या किसानों के एक वर्ग के लिए? जिस तरह से शब्दों से खेला जा रहा है, वह गलत है।”

उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को मुद्दे के समाधान की मंशा दिखानी चाहिए थी जो बीते 15-16 महीनों में नजर नहीं आई है।

मलिक ने इस विवादास्पद मुद्दे पर विपक्ष को विश्वास में लेने का सुझाव दिया।

केंद्र पर कटाक्ष करते हुए, पटोले ने कहा कि मोदी “पहले प्रधानमंत्री हैं जिन पर देश भरोसा नहीं करता है।”

उन्होंने कहा, “कैबिनेट ने यह किया है (तीन कानूनों को निरस्त करने के निर्णय को मंजूरी दी), लेकिन यह देखना होगा कि कानून वापस कैसे होते हैं”।

नए कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन की अगुवाई करने वाले संगठनों ने हालांकि केंद्र की कानूनों को निरस्त करने की घोषणा का स्वागत किया है, लेकिन साथ ही स्पष्ट किया कि वे फसलों की लाभकारी कीमतों के लिए वैधानिक गारंटी सहित अन्य लंबित मांगों के समर्थन में अपना आंदोलन जारी रखेंगे।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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