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केंद्र ने चुनावों को ध्यान में रखकर कृषि कानून निरस्त करने का फैसला किया है : पवार

By भाषा | Updated: November 19, 2021 17:15 IST

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नागपुर, 19 नवंबर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के अध्यक्ष शरद पवार ने शुक्रवार को कहा कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश और पंजाब में आगामी चुनावों में प्रतिकूल प्रतिक्रिया मिलने के डर से तीन कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला किया है। पवार ने प्रदर्शनरत किसानों की प्रशंसा करते हुए कहा कि कानूनों के खिलाफ साल भर से चल रहे उनके संघर्ष को भुलाया नहीं जा सकता।

उन्होंने तीन कृषि विधेयकों को पेश करने और उन्हें बिना किसी चर्चा के और राज्य सरकारों को विश्वास में लिए बिना "जल्दबाजी में" पारित करने के लिए केंद्र की आलोचना की।

महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले में संवाददाताओं से बातचीत में पवार ने कहा, “मैं जब 10 वर्षों तक कृषि मंत्री रहा, भाजपा ने संसद में कृषि कानूनों का मुद्दा उठाया था जो उस वक्त विपक्ष में थी। मैंने एक वचन दिया था कि खेती राज्य का विषय है और इसलिए हम राज्यों को विश्वास में लिए बिना या बिना चर्चा के कोई फैसला नहीं करेंगे।”

उन्होंने कहा, “मैंने व्यक्तिगत रूप से सभी राज्यों के कृषि मंत्रियों के साथ-साथ मुख्यमंत्रियों के साथ दो दिवसीय बैठक की, उनके साथ विस्तृत चर्चा की और उनके द्वारा दिए गए सुझावों पर गौर किया। इसी तरह देश के कृषि विश्वविद्यालयों के साथ-साथ कुछ किसान संगठनों से भी राय मांगी गई। हम कृषि कानून बनाने की प्रक्रिया शुरू करने वाले थे, लेकिन हमारी सरकार का कार्यकाल समाप्त हो गया और नई सरकार सत्ता में आ गई।”

पवार ने कहा कि 2014 में सत्ता में आने के बाद भाजपा सरकार ने बिना चर्चा और राज्य सरकारों को विश्वास में लिए बिना तीन कृषि विधेयक पेश किए।

उन्होंने कहा, “इन विधेयकों का संसद में सभी विपक्षी दलों ने विरोध किया था और उसकी कार्यवाही रोकी गई और मुद्दे पर बहिर्गमन हुए। हालांकि, सत्ता में बैठे लोगों ने जोर दिया कि वे विधेयकों पर आगे बढ़ेंगे और उन्हें जल्दबाजी में पारित किया गया।”

राकांपा प्रमुख ने कहा कि नतीजन इसके खिलाफ प्रदर्शन हुए। किसान मौसमी परिस्थितियों की परवाह किए बिना सड़क पर बैठे रहे और संघर्ष करते रहे।

उन्होंने कहा, “ अंतत: जैसे ही उत्तर प्रदेश और पंजाब के चुनाव नजदीक आए और खासकर जब भाजपा के लोगों ने हरियाणा और पंजाब और कुछ अन्य राज्यों के गांवों में किसानों की प्रतिक्रिया देखी। वे इस पहलू की अनदेखी नहीं कर सके और आगामी चुनावों को ध्यान में रखते हुए उन्होंने तीन कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला किया।”

पवार ने कहा कि हालांकि जो हुआ वह अच्छा है लेकिन हम यह नहीं भूल सकते कि इस सरकार ने एक ऐसी स्थिति बना दी जिसमें किसानों को एक साल तक संघर्ष करना पड़ा।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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