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सीबीआई ने मेडिकल कॉलेज घोटाला मामला: इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को नामजद किया

By भाषा | Updated: December 7, 2019 06:18 IST

अधिकारियों ने बताया कि जांच एजेंसी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के न्यायाधीश शुक्ला के साथ-साथ छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश आई एम कुद्दूसी, प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट के भगवान प्रसाद यादव और पलाश यादव, ट्रस्ट तथा निजी व्यक्तियों--भावना पांडेय और सुधीर गिरि को भी मामले में नामजद किया है।

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ठळक मुद्दे सीबीआई ने भ्रष्टाचार के एक मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस एन शुक्ला को नामजद किया हैजांच एजेंसी ने उनके लखनऊ स्थित आवास पर छापेमारी भी की।

 सीबीआई ने भ्रष्टाचार के एक मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस एन शुक्ला को नामजद किया है। जांच एजेंसी ने उनके लखनऊ स्थित आवास पर छापेमारी भी की। एक मेडिकल कॉलेज का कथित तौर पर पक्ष लेने को लेकर सीबीआई ने उनके खिलाफ यह कार्रवाई की। अधिकारियों ने शुक्रवार को यह जानकारी दी। अधिकारियों ने बताया कि जांच एजेंसी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के न्यायाधीश शुक्ला के साथ-साथ छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश आई एम कुद्दूसी, प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट के भगवान प्रसाद यादव और पलाश यादव, ट्रस्ट तथा निजी व्यक्तियों--भावना पांडेय और सुधीर गिरि को भी मामले में नामजद किया है।

सीबीआई ने प्राथमिकी में आरोप लगाया है, ‘‘...यह खुलासा हुआ है कि न्यायमूर्ति श्री नारायण शुक्ला ... ने अपने पद का दुरूपयोग किया और आपराधिक साजिश रची...और प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट के बीपी यादव एवं पलाश यादव को वित्तीय फायदा पहुंचाने के लिए अवैध लाभ हासिल किए।’’

यह ट्रस्ट लखनऊ में एक मेडिकल कॉलेज चलाता है। उन्होंने बताया कि यह मामला न्यायमूर्ति शुक्ला के कथित कदाचार के बारे में स्रोत आधारित सूचना के आधार पर आठ सितंबर 2017 को एजेंसी द्वारा दर्ज एक प्राथमिक जांच से उपजा। सीबीआई ने इस साल जुलाई में तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई से इजाजत मिलने के बाद न्यायमूर्ति शुक्ला के खिलाफ चार दिसंबर को एक नयी प्राथमिकी दर्ज की। एजेंसी ने न्यायाधीश एवं अन्य के खिलाफ शुरूआती जांच के बारे में सीजेआई को सूचना दी थी। यह शुरूआती जांच पूर्ववर्ती सीजेआई दीपक मिश्रा की सलाह पर शुरू की गई थी जब न्यायाधीश के कथित कदाचार का विषय उनकी जानकारी में लाया गया था।

उच्चतम न्यायालय के एक अधिकारी ने बताया कि यह पहला मौका है जब किसी उच्च न्यायालय के मौजूदा न्यायाधीश के खिलाफ मामला दर्ज करने की इजाजत दी गई। आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 120 बी (आपराधिक षड्यंत्र) और भ्रष्टाचार रोकथाम कानून के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया है। अधिकारियों ने बताया कि प्राथमिकी दर्ज करने के बाद सीबीआई ने लखनऊ, मेरठ और दिल्ली में कई स्थानों पर छापेमारी शुरू कर दी। आरोप है कि प्रसाद इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज को केंद्र ने मई 2017 में मानक स्तर की सुविधाएं न होने और जरूरी मानदंड पूरे न करने की वजह से छात्रों को दाखिला देने से रोक दिया था।

इसके साथ 46 अन्य मेडिकल कॉलेजों को भी समान आधार पर दाखिला देने से रोक दिया गया था। अधिकारियों ने कहा कि ट्रस्ट ने केंद्र के फैसले को एक रिट याचिका के माध्यम से उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी। प्राथमिकी में नामजद लोगों ने बाद में साजिश रची और न्यायालय की अनुमति से याचिका को वापस ले लिया। उन्होंने बताया कि फिर, 24 अगस्त 2017 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ में एक अन्य याचिका दायर की गई।

प्राथमिकी में आगे आरोप लगाया गया कि न्यायमूर्ति शुक्ला की भी भागीदारी वाली खंडपीठ ने 25 अगस्त 2017 को याचिका पर सुनवाई की और उसी दिन ट्रस्ट की पसंद का आदेश पारित कर दिया गया। अधिकारियों ने कहा कि पसंदीदा आदेश पाने के लिए प्राथमिकी में नामजद आरोपियों में से एक को ट्रस्ट ने कथित तौर पर रिश्वत दी। उच्च न्यायालय की वेबसाइट के मुताबिक न्यायमूर्ति शुक्ला इलाहाबाद उच्च न्यायालय में पांच अक्टूबर 2005 को नियुक्त हुए थे और वह 17 जुलाई 2020 को सेवानिवृत्त होने वाले हैं। भाषा सुभाष पवनेश पवनेश

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