सी-वोटर सर्वेः नीतीश कुमार के काम से 58 फीसदी लोग संतुष्ट?, तेजस्वी यादव की लोकप्रियता 7 प्रतिशत नीचे, 18.4 फीसदी लोग प्रशांत किशोर को कर रहे पसंद
By एस पी सिन्हा | Updated: July 14, 2025 16:44 IST2025-07-14T16:43:18+5:302025-07-14T16:44:44+5:30
C-Voter Survey: स्वास्थ्य को लेकर चिंता और एंटी इंकम्बेंसी जैसे कमजोर आधार के बावजूद नीतीश कुमार के काम से 58 फीसदी लोग संतुष्ट हैं।

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पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर सी-वोटर के मासिक ट्रैकर सर्वे में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की लोकप्रियता और उनके कामकाज से जनता संतुष्ट नजर आ रही है। सर्वे में यह भी बात सामने आई है कि तेजस्वी यादव की लोकप्रियता घटी जा रही है और प्रशांत किशोर तेजी से ऊपर बढ़ रहे हैं। तेजस्वी यादव की लोकप्रियता में कमी के क्या कारण हैं, नीतीश कुमार की यथास्थिति और प्रशांत किशोर के प्रभाव में बढ़ोतरी बिहार में सियासी समीकरणों के नये संकेत दे रहे हैं। कानून-व्यवस्था पर उठ रहे सवालों के बीच उनके स्वास्थ्य को लेकर चिंता और एंटी इंकम्बेंसी जैसे कमजोर आधार के बावजूद नीतीश कुमार के काम से 58 फीसदी लोग संतुष्ट हैं। लेकिन उनकी सार्वजनिक तौर पर सक्रियता और बार-बार गठबंधन बदलने की इमेज एनडीए के लिए चुनौती बनी हुई है।
वहीं, तेजस्वी यादव अपनी लोकप्रियता को बरकरार रख पाने में फिलहाल संघर्ष करते नजर आ रहे हैं। वहीं, जन सुराज के प्रशांत किशोर की लोकप्रियता 14.9 फीसदी से बढ़कर 18.4 फीसदी हुई है जो उनकी जाति राजनीति से अलग अपील और युवा-शहरी वोटरों के समर्थन की ओर संकेत करता है।
सर्वे के अनुसार, तेजस्वी यादव की लोकप्रियता फरवरी 2025 में 41 फीसदी थी, जो जुलाई 2025 में घटकर 35 फीसदी हो गई है। इस 6 फीसदी की गिरावट के पीछे कई संभावित कारण हैं। तेजस्वी यादव की लोकप्रियता में कमी का एक प्रमुख कारण यादव समुदाय के एक तबके में असंतोष है।
विशेष रूप से, मोतिहारी में अजय यादव की सांप्रदायिक हिंसा में मौत पर तेजस्वी यादव और राजद की चुप्पी ने इस समुदाय को निराश किया है। बता दें कि यादव समुदाय राजद का कोर वोट बैंक माना जाता है। जानकारों के अनुसार यादव समुदाय मानता है कि सामाजिक एकता और सुरक्षा के मुद्दों पर तेजस्वी को और मुखर होना चाहिए था।
समुदाय का एक हिस्सा यह कह रहा है कि “पहले समाज रहेगा, तब राजद या तेजस्वी होंगे। यह नाराजगी राजद के पारंपरिक वोटर आधार को कमजोर कर सकती है। इसके साथ ही तेजस्वी यादव और राजद की रणनीति में कुछ कमियां भी उनकी लोकप्रियता पर असर डाल रही हैं।
उदाहरण के लिए, गठबंधन के भीतर सीट बंटवारे और सहयोगी दलों, जैसे- कांग्रेस के साथ तालमेल की कमी ने महागठबंधन की एकजुटता को कमजोर किया है। पप्पू यादव जैसे नेताओं ने तेजस्वी पर गठबंधन धर्म निभाने में विफलता का आरोप लगाया है, जिससे विपक्षी खेमे में भ्रम की स्थिति बनी है।
इसबीच बिहार की जनता के बीच “जंगलराज” (लालू-राबड़ी शासन) और “नीतीश राज” की तुलना एक बार फिर चर्चा में है। चुनाव का समय नजदीक आते ही लोगों तुलना करने लगे हैं और नीतीश कुमार की सरकार को लेकर लोगों के मन में उतनी नाराजगी नहीं है, भले ही उनकी सार्वजनिक उपस्थिति कम हो हो गई है।
विकास और सुशासन के कुछ क्षेत्रों में जनता का भरोसा बनाए हुए हैं। नीतीश कुमार ने हाल ही में महिलाओं के लिए सरकारी नौकरियों में 35 फीसदी आरक्षण और शत-प्रतिशत डोमिसाइल नीति जैसे कदम उठाए हैं, जो महिला वोटरों को आकर्षित कर रहे हैं। फरवरी में 18.4 फीसदी, अप्रैल में 15.4 फीसदी और जून में 17.4 फीसदी लोगों ने उन्हें पसंदीदा मुख्यमंत्री के रूप में चुना।
उनका स्वास्थ्य कारणों से जनता के बीच में कम आना उनकी छवि पर असर डाल रही है। सर्वे के अनुसार, 58 फीसदी लोग उनके काम से संतुष्ट हैं, लेकिन 41 फीसदी असंतुष्ट भी हैं जो उनकी विश्वसनीयता में कमी का संकेत देता है। नीतीश की बार-बार गठबंधन बदलने की रणनीति (2022 में एनडीए से महागठबंधन, फिर 2024 में वापस एनडीए) ने उनकी विश्वसनीयता को प्रभावित किया है।
इसके अलावा उनकी उम्र और कमजोर सार्वजनिक उपस्थिति ने जदयू के लिए अगली पीढ़ी के नेतृत्व की कमी को उजागर किया है। फिर भी नीतीश का सुशासन और विकास का ट्रैक रिकॉर्ड, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में उन्हें एक मजबूत आधार देता है। इस बीच प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी बिहार की राजनीति में एक नए विकल्प के रूप में उभर रही है। सर्वे में उनकी लोकप्रियता फरवरी में 14.9 फीसदी से बढ़कर जून में 18.4 फीसदी हो गई है और वे नीतीश कुमार को पछाड़कर दूसरे स्थान पर पहुंच गए हैं।
प्रशांत किशोर का जाति-निरपेक्ष दृष्टिकोण और शहरी युवाओं व शिक्षित वर्ग के बीच बढ़ता समर्थन तेजस्वी के वोट बैंक, विशेष रूप से युवाओं और गैर-यादव पिछड़े वर्गों को प्रभावित कर रहा है। उनकी ताजा हवा की तरह उभरने वाली छवि तेजस्वी यादव की लोकप्रियता को चुनौती दे रही है।