बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा, माता-पिता के जीवित रहते बेटा को नहीं हासिल होगा संपत्ति का अधिकार

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: March 19, 2022 10:31 PM2022-03-19T22:31:32+5:302022-03-19T22:37:52+5:30

बॉम्बे हाईकोर्ट के जस्टिस गौतम पटेल और जस्टिस माधव जामदार ने सुनवाई करते हुए बेटे से कहा कि चूंकि आपके माता-पिता अभी जीवित हैं। ऐसे में पिता की संपत्ति पर आपको किसी भी तरह सेवैधानिक अधिकार नहीं मिल सकता है।

Bombay High Court said, the son will not get the property right while the parents are alive | बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा, माता-पिता के जीवित रहते बेटा को नहीं हासिल होगा संपत्ति का अधिकार

फाइल फोटो

Highlightsबॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा माता-पिता के रहते हुए बेटे का संपत्ती पर कोई वैधानिक अधिकार नहीं है माता-पिता के जीवित होने की सूरत में बेटा उनकी संपत्ति पर किसी तरह का दावा नहीं कर सकता हैउत्तराधिकार कानून में माता-पिता के जीवित रहते बेटे को संपत्ति की वैधानिकता नहीं दी जा सकती है

मुंबई: बॉम्बे हाईकोर्ट ने शनिवार को एक मामले में सुनवाई करते हुए अपने आदेश में स्पष्ट कहा कि बेटे को माता पिता की संपत्ती पर तब तक कोई अधिकार हासिल नहीं है, जब तक वो जीवित हैं। माता-पिता के जीवित होने की सूरत में बेटा उनकी संपत्ति पर न तो दावा कर सकता है और न ही हिस्सेदारी की मांग कर सकता है।

बॉम्बे हाईकोर्ट में सोनिया खान के बेटे द्वारा दायर की गई याचिका में कोर्ट से गुजारिश की गई थी कि वह कई वर्षों से अपने पिता के "वास्तविक अभिभावक" हैं, इसलिए वो कोर्ट में यह हस्तक्षेप दायर कर रहे हैं।

बेटे ने अपनी याचिका में तर्क दिया था कि हालांकि उनके माता-पिता जीवित हैं, दो फ्लैट हैं, जिनमें से प्रत्येक उनके माता-पिता के स्वामित्व में है, जिसे उन्होंने "एक साझा घर" के रूप में वर्णित किया है और इसलिए उनके पास इन दोनों में से किसी एक या दोनों फ्लैटों के लिए एक लागू करने योग्य कानूनी अधिकार या अधिकार है।

मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस गौतम पटेल और जस्टिस माधव जामदार की बेंच ने कहा याची द्वारा कोर्ट के सामने एक भी ऐसा दस्तावेज नहीं दिया गया, जिससे पता चले कि वो अपने माता-पिता की कभी परवाह करता है।

कोर्ट ने उनकी दलीलों को "असंगत और अतार्किक" पाया। बेंच ने तर्क दिया कि किसी भी समुदाय के लिए उत्तराधिकार कानून के तहत बेटे के लिए माता-पिता की संपत्ति पर तब तक अधिकार या हक का दावा करने का कोई प्रावधान नहीं है जब तक वे जीवित हैं।

इसके साथ ही बॉम्बे हाईकोर्ट ने बेटे को अपने पिता का विधि संरक्षक नियुक्त करने से जुड़ी याचिका में हस्तक्षेप करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया।

इस संबंध में मां ने अपनी दो विवाहित बेटियों के साथ कोर्ट में याचिका दायर कर मांग की थी कि उसके पति की सेहत ठीक नहीं है। वे डिमेंशिया से पीड़ित हैं। वे कुछ लिखपढ़ नहीं सकते हैं। वे हस्ताक्षर करने में भी असमर्थ हैं। चल फिर भी नहीं सकते है। ऐसे में मुझे बिस्तर पर लेटे अपने पति के इलाज से जुड़े खर्च का वहन करने के लिए उनका कानूनी संरक्षक नियुक्त किया जाए ताकि वे पति के दोनों फ्लैट्स की देखरेख कर सकें और उनके बैंक खातों को भी ऑपरेट कर सकें।

जस्टिस गौतम पटेल और जस्टिस माधव जामदार की बेंच के सामने बेटे ने अपना पक्ष रखते हुए इस याचिका में हस्तक्षेप की इजाजत  मांगी थी। बेटा जो पिता से अलग दूसरी जगह रहता है, उसने दावा किया था कि पिता के मुंबई के मरोल इलाके में दो फ्लैट में उसका भी हिस्सा बनता है।

बेटे ने अपने तर्क में कहा कि वास्तव में मैं कई वर्षों तक अपने पिता का वास्तविक संरक्षक रहा हूं। इस आवेदन पर गौर करने के बाद बेंच ने बेटे से कहा कि चूंकि आपके माता-पिता अभी जीवित हैं। ऐसे में पिता की संपत्ति पर आपको किसी भी तरह सेवैधानिक अधिकार नहीं मिल सकता है।

जिस संपत्ति के मामले को लेकर आप कोर्ट में आये हैं, उसे आज बी बेचने का हक केवल आपके पिता के पास है। और इसके लिए आपके पिता को आपसे या किसी और से अनुमति लेने की भी जरूरत नहीं है। जहां तक बात आपके वास्तविक संरक्षक होने के दावे की है तो आपको खुद कोर्ट में याचिका दायर कर अपने पिता का संरक्षक नियुक्त करने की मांग करनी चाहिए थी।

सुनवाई के दौरान जस्टिस गौतम पटेल और जस्टिस माधव जामदार ने बेटे से पूछा कि क्या आप कभी अपने पिता को इलाज के लिए अस्पताल लेकर गए हैं। क्या आपने कभी पिता के मेडिकल बिल का भुगतान किया है। जबकि आपकी मां ने आपके पिता के इलाज के कई बिलों का भुगतान किया है, जिसे याचिका के साथ जोड़ा गया है।

इस दौरान बेटे के वकील ने जस्टिस गौतम पटेल और जस्टिस माधव जामदार से कहा कि उनके मुवक्किल को पिता के घर में रहने का कानूनी अधिकार है। बेंच ने इसे सिरे से अतार्किक मानते हुए कहा कि किसी भी उत्तराधिकार कानून में माता-पिता के जीवित रहते उनके द्वारा खरीदे गए घर में बेटे के अधिकार को वैधानिकता नहीं दी गई है। इसके साथ ही बेंच ने बेटे के आवेदन को खारिज कर दिया। 

Web Title: Bombay High Court said, the son will not get the property right while the parents are alive

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