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बिहार में बाढ़ः तिरपाल में सिसक रही हैं जिंदगियां, आसमानी बारिश ने किया अस्त-व्यस्त, जानवर भूखे रहने को विवश

By एस पी सिन्हा | Updated: August 13, 2020 21:08 IST

सूबें में हो रही मूसलधार बारिश के बीच तिरपाल में टपक रही बूंदों को रोकने और अपने बच्चों को भीगने से बचाने के लिए महिलाएं बार-बार अपनी साड़ी टांगती हैं. यह दर्द किसी एक का नहीं है, बल्कि लाखों बाढ़ से प्रभावित परिवारों का है, जो आज भी सड़कों, स्टेशनों और तटबंधों पर शरण लिये हैं.

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ठळक मुद्देबिहार में बाढ़ का कहर थमने का नाम नही ले रहा है. बिहार के कुल 1271 पंचायत के 77 लाख 18 हजार लोग बाढ़ से प्रभावित हैं.

पटना:  बिहार में बाढ़ का कहर थमने का नाम नही ले रहा है. राज्य के 16 जिलों के 127 प्रखंडों में बाढ़ से त्राहिमाम मचा हुआ है. राज्य के कुल 1271 पंचायत के 77 लाख 18 हजार लोग बाढ़ से प्रभावित हैं. सरकार ने 5 लाख 47 हजार से अधिक लोगों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया है. बाढ़ में डूबने से करीब ढाई दर्जन लोगों की मौत हो चुकी है, वहीं 66 पशुधन की भी जान गई है. उत्तर बिहार में सड़क के अलावा हर तरफ पानी-ही-पानी है. इस बरसाती रात में स्टेट हाइवे पर टंगे तिरपालों में आसमानी आफत के बीच जिन्दगियां सिसक रही हैं.

सूबें में हो रही मूसलधार बारिश के बीच तिरपाल में टपक रही बूंदों को रोकने और अपने बच्चों को भीगने से बचाने के लिए महिलाएं बार-बार अपनी साड़ी टांगती हैं. यह दर्द किसी एक का नहीं है, बल्कि लाखों बाढ़ से प्रभावित परिवारों का है, जो आज भी सड़कों, स्टेशनों और तटबंधों पर शरण लिये हैं. बात ऐसी नहीं कि इनके घर नहीं हैं. इनको भी अपने घर हैं, लेकिन बाढ़ ने इन्हें बेघर कर दिया है. बाढ प्रभावित इलाकों में पीड़ितों के दर्द पर बारिश आग में घी का काम कर रही है. बारिश का सबसे अधिक असर बाढ़ पीडितों पर पड़ रहा है.

बाढ ने लोगों के अरमानों पर पानी फेर दिया है. कल तक जो लोग घर से निकलते ही सड़कों पर फर्राटे भरते थे, वही आज गांव में जाने के लिए नाव का सहारा ले रहे हैं. क्या इंसान, क्या पशु सभी को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. खेतों में सात से आठ फुट पानी के कारण हरा चारा मिलना मुश्किल, किसानों के डेहरी में रखे भूसे बाढ़ के पानी में बह गये. पैसे नही है कि चोकर मिले, पैसे मिले तो बाढ़ ने आवागमन के सभी रास्ते बंद कर दिये और पशुओं की जिंदगी भगवान भरोसे हो गई है. उनके जिंदा रहने का आधार केवल पेड़ों की पत्तियां तथा राहत में मिलने वाली खाद्य सामग्री रही जो उनके मालिकों को समाजसेवी दे रहे थे.

राज्य में सीतामढी, शिवहर, सुपौल, किशनगंज, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, गोपालगंज, पूर्वी चंपारण, पश्चिम चंपारण, खगडिया, सारण समस्तीपुर सीवान, मधुबनी, मधेपुरा और सहरसा में बाढ़ की पानी घुस गया है. बाढ़ प्रभावितों को खाना खिलाने के लिए 1121 समुदायिक किचेन केंद्र चलाए जा रहे हैं, जिसमें 8 लाख 90 हजार से अधिक लोग भोजन कर रहे हैं. जबकि राहत बचाव कार्य में एनडीआरएफ और एसपीआरएफ की 33 टुकडियां लगी हुई हैं. सभी अपनी जान को जोखिम में डालकर लोगों राहत एवं बचाव काम में लगे हुए हैं. लेकिन जो जिंदगियां सिसक रही हैं, उन्हें सांतवना देने कोई नही जा रहा है. उसका एक कारण कोरोना का दहशत भी है. अधिकारी भी उन ईलाकों में जाने से कतराते हैं, कारण कि वहां सोशल डिस्टेंशिंग का कोई प्रावधान लागू नही किया जा सकता है.

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