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बिहार: पिता और भाई फंसे परदेस में तो बेटी को मां ने दिया कंधा, किया अंतिम संस्कार

By एस पी सिन्हा | Updated: May 14, 2020 17:38 IST

बिहार के कैमूर जिले के रामगढ थाना क्षेत्र के तियरा गांव में सामने आया है, जहां बेटी की मौत के बाद एक मां को कंधा देकर अपनी बेटी का दाहसंस्कार करना पडा है. उस वक्त का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि जिस मां ने एक बच्ची को जन्म दिया और उसे पाल-पोसकर बड़ा किया अब मौत के बाद मुखाग्नि भी उसी मां को ही देना पड़ा .

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ठळक मुद्देबेटी की मौत के बाद एक मां को कंधा देकर अपनी बेटी का दाहसंस्कार करना पड़ा है. तियरा गांव के झिल्लू सिंह कुशवाहा बीते कुछ वर्षों से राजस्थान के जोधपुर में नौकरी करते हैं.

पटना: कोरोना काल में सारे नियम-परंपराएं तो टूट ही रही हैं, अब कलेजे पर पत्थर भी रखकर किसी परंपरा को निभाना पड़ रहा है. ऐसा ही एक मामला बिहार के कैमूर जिले के रामगढ थाना क्षेत्र के तियरा गांव में सामने आया है, जहां बेटी की मौत के बाद एक मां को कंधा देकर अपनी बेटी का दाहसंस्कार करना पड़ा है. उस वक्त का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि जिस मां ने एक बच्ची को जन्म दिया और उसे पाल-पोसकर बड़ा किया अब मौत के बाद मुखाग्नि भी उसी मां को ही देना पड़ा .

लेकिन कोरोना संकट ने उस मां को जिंदगी भर का गम दे गया. लॉकडाउन में जब इकलौती बेटी की बीमारी से मौत हुई तो उसे कंधा देने के लिए न तो पिता आ सके और न ही भाई. फिर मां ने सामाजिक परंपराओं को तोड़कर बेटी की अर्थी उठाई, उसे कंधा देकर श्मशान घाट तक ले गई और मुखाग्नि देकर अंतिम संस्कार किया. यह मार्मिक दृश्य देखकर सभी भावविह्वल हो गये. लेकिन कलेजे पर पत्थर रखकर मां ने उन परपरांओं कि निभाया, जो उसके पिता-भाई को निभाना चाहिये था. बताया जाता है कि तियरा गांव के झिल्लू सिंह कुशवाहा बीते कुछ वर्षों से राजस्थान के जोधपुर में नौकरी करते हैं. उनके दोनों बेटे नीरज व प्रद्युम्न भी बाहर रहते हैं. गांव में उनकी पत्नी जोखनी देवी अपनी 13 वर्षीया बेटी गीता कुमारी के साथ रहती थी. झिल्लू सिंह को 24 मार्च को घर आना था. लेकिन कोरोना संकट के कारण लॉकडाउन हुआ तो वे नहीं आ सके. 

इधर, कुछ महीनों से उनकी बेटी गीता बीमार चल रही थी. मंगलवार को उसकी तबीयत अचानक ज्यादा बिगड़ गई. मां उसे अस्पताल ले गई, जहां इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई. इसके बाद सवाल उठा कि अंतिम संस्‍कार कैसे होगा? मृत लड़की के पिता व दोनों भाई लॉकडाउन के कारण आने में असमर्थ हो हैं. तब मां ने कलेजे पर पत्थर रखा और यह निर्णय लिया की वह खुद अपनी बेटी के शव को कंधा देगी. इसके बाद मां ने कंधा देकर अपनी बेटी की अर्थी को कर्मनाशा नदी के श्मशान घाट पर ले गई और मुखाग्नि देकर उसका अंतिम संस्कार किया. गांव के मुखिया अदालत पासवान व गांववालों ने भी इसमें सहयोग किया. बताया जा रहा है कि इकलौती बेटी को कंधा देते समय मां के गिरते आंसुओं को देख साथ चल रहे ग्रामीण भी रोने लगे. गांव की महिलाएं भी खुद को रोक न सकीं. वे भी फफककर रोने लगीं. इस करुण दृश्य को जिसने भी देखा, उसकी आंखों से आंसू टपक पडे. लेकिन मां ने अपने कलेजे के टूकडे को उस अंजाम तक पहुंचाया, जहां मां शायद ही जाने की हिम्मत करती हो.

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