मनोज तिवारीः उत्तर भारत में सियासी सफलता के लिए लोकप्रियता काफी नहीं, जमीनी आधार भी मजबूत होना चाहिए!
By प्रदीप द्विवेदी | Published: October 23, 2020 06:03 PM2020-10-23T18:03:31+5:302020-10-23T18:03:31+5:30
मनोज तिवारी की लोकप्रियता बढ़ी है, तो राजनीति में अवसर भी मिले, लेकिन सियासी समय का साथ नहीं मिला, लिहाजा जो कामयाबी मिलनी चाहिए थी, वह अब तक नहीं मिली है. इस वक्त वे बिहार के चुनाव में अपने सियासी अभियान में व्यस्त हैं.
सिनेमा से सियासत में कदम रखने वालों में मनोज तिवारी का नाम लोकप्रिय तो खूब है, लेकिन अब तक उन्हें मेहनत के सापेक्ष नतीजे नहीं मिले हैं.
इन कुछ वर्षों में मनोज तिवारी की लोकप्रियता बढ़ी है, तो राजनीति में अवसर भी मिले, लेकिन सियासी समय का साथ नहीं मिला, लिहाजा जो कामयाबी मिलनी चाहिए थी, वह अब तक नहीं मिली है. इस वक्त वे बिहार के चुनाव में अपने सियासी अभियान में व्यस्त हैं.
उनका एक वीडियो सामने आया है, जिसमें वे बिहार की जनता को बता रहे हैं कि एक बार फिर बीजेपी को देश की जनता के साथ और आशीर्वाद की जरूरत है. यही नहीं, वे यह भी कह रहे हैं कि एनडीए के संग कदम बढ़ाने में ही देश की जनता का फायदा है.
हालांकि, वे केवल गीत नहीं गा रहे हैं, उनके भाषणों में आक्रामकता भी हैं. बिहार की एक जनसभा को संबोधित करते हुए मनोज तिवारी ने सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में महाराष्ट्र कांग्रेस पर निशाना साधते हुए सीधा और बेहद गंभीर आरोप भी लगाया है.
उनका कहना है कि सुशांत की मौत के मामले में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सक्रियता के चलते ही एफआईआर हो पाई थी. बीजेपी के घोषणा पत्र को झूठ का पुलिंदा बताने पर मनोज तिवारी ने तेजस्वी यादव पर व्यंग्यबाण चलाते हुए कहा कि- पता नहीं तेजस्वी पढ़ पाते हैं या नहीं. अगर नहीं पढ़ पाते हैं, तो उन्हें भाजपा का मेनिफेस्टो पढ़वाना चाहिए.
उनका यह भी कहना था कि यदि बिहार में विकास चाहते हैं तो एनडीए का भरपूर समर्थन दें ताकि विकास की गाड़ी और तेजी से बढ़ सके. मनोज तिवारी की शुरुआत भोजपुरी गायक के रूप में हुई, तो एक्कीसवीं सदी के आरंभ में उन्होंने फिल्म- ससुरा बड़ा पैसा वाला, की जो कामयाब रही.
इसके बाद उन्होने दारोगा बाबू आई लव यू, बंधन टूटे ना आदि फिल्में की, तो टीवी पर भी नजर आने लगे. मनोज तिवारी वर्ष 2011 में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में सक्रिय रहे, हालांकि इससे पहले उन्होंने 2009 में चुनाव लड़ा था, पर सफलता नहीं मिली. इस वक्त उतर-पूर्वी दिल्ली से संसद सदस्य हैं. सियासी सयानों का मानना है कि उत्तर भारत में सियासत में बड़ी सफलता के लिए केवल लोकप्रियता काफी नहीं हैं, जमीनी आधार भी मजबूत होना चाहिए!