साल 1984, 2 और 3 दिसंबर की दरम्यानी रात। पूरा हिंदुस्तान नींद की आगोश में था लेकिन भोपाल वालों के लिए ये रात काटे नहीं कट रही थी। 2 दिसंबर की रात तो वे भी पूरे हिंदुस्तान के साथ सपनों के आगोश में गए थे लेकिन आधी रात के बाद जो मंजर भोपाल वालों ने देखा उसके बारे में तो उन्होंने सपने में भी कभी नहीं सोचा होगा। उस रात जो हुआ, उस कड़वी याद को शायद ही भुलाया जा सकेगा।
यूनियन कार्बाइड कीटनाशक संयंत्र से निकली जहरीली गैस के रिसाव ने हजारों की जान ले ली। हवा में जहर ऐसा घुला कि उसका दंश भोपाल में आज भी दूसरी ओर तीसरी पीढ़ी भुगत रही है। कितने हजार लोगों की उस घटना में मौत हुई और कितने लाख उससे प्रभावित हुए, घायल हुए, इसके आंकड़ो को लेकर अब भी तमाम दावे आते रहते हैं।
उस भयानक रात को बीते आज 36 साल हो गए हैं और उस घटना की बरसी पर एक आंकड़ा और आया है।
मध्य प्रदेश सरकार ने 2 दिसंबर को बताया कि भोपाल गैस त्रासदी में बच गए लोगों में से 102 की मौत कोरोना की वजह से इस साल हो गई है। हालांकि, आंकड़ों को लेकर यहां भी मतभेद हैं। भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के लिए काम कर रहे संगठनों ने दावा किया है कि कोरोना संक्रमण से भोपाल जिले में 18 अक्टूबर तक उस त्रासदी से बचे गए 254 लोगों की मौत हुई है।
यहां ये भी बता दें कि स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार 18 अक्टूबर तक भोपाल जिले में कोरोना से 450 लोगों की मौत हुई है। यानी 450 में से 254 वे लोग हैं जो भोपाल गैस त्रासदी से किसी तरह बच निकले थे। जाहिर है इनमें कई लोग ऐसे होंगे जो लंबे इलाज के बाद उस त्रासदी के प्रभाव से उबरे होंगे।
इन संगठनों ने कहा है कि भोपाल में कोविड-19 से भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ित लोगों की मृत्यु दर अन्य लोगों से करीब 6.5 गुना ज्यादा है। इसलिए कोरोना वायरस महामारी से साबित हुए दूरगामी शारीरिक क्षति के लिए यूनियन कार्बाइड और उसके वर्तमान मालिक डाव केमिकल अतिरिक्त मुआवजा दें।
भोपाल गैस पीड़ितों के हितों के लिये लंबे अरसे से काम करने वाले एक संगठन ‘भोपाल ग्रुप फॉर इन्फॉर्मेशन एंड एक्शन’ की सदस्य रचना ढींगरा ने कहा कि उनकी टीम ने मृतक लोगों के घर-घर जाकर उनके परिजनों से मुलाकात की है और उनकी पहचान भोपाल गैस पीड़ित के रूप में की है। इससे जुड़े दस्तावेज भी अधिकारियों को को सौंपे गए हैं।