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गंभीर अपराधों में जमानत देने से पहले, पीड़ित और परिवार के अधिकारों पर विचार हो, उच्च न्यायालय ने कहा

By भाषा | Updated: September 21, 2021 21:51 IST

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नयी दिल्ली, 21 सितंबर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उच्चतम न्यायालय से कहा है कि गंभीर और जघन्य अपराधों के मामलों में किसी आरोपी को जमानत देने से पहले पीड़ित और उसके परिवार के अधिकारों पर विचार किया जाना चाहिए।

उच्च न्यायालय ने शीर्ष अदालत को सुझाव दिया कि पीड़ित से परामर्श के बाद ‘पीड़ित प्रभाव आकलन’ रिपोर्ट ली जानी चाहिए। रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से सभी चिंताओं के साथ-साथ अपराध के शारीरिक, मानसिक और सामाजिक प्रभाव और पीड़ित पर जमानत के प्रभाव के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी होनी चाहिए।

उच्च न्यायालय की रजिस्ट्री ने शीर्ष अदालत को पूर्व के एक आदेश के आलोक में अपने सुझाव दिए हैं, जिसमें दोषी ठहराए गए व्यक्तियों की अपील के लंबित रहने के दौरान जमानत अर्जियों के मामलों को विनियमित करने के लिए ‘‘व्यापक मानदंड’’ निर्धारित करने में मदद करने के लिए कहा गया था। उच्च न्यायालय ने गंभीर और जघन्य अपराधों के संदर्भ में कहा, ‘जमानत देने से पहले पीड़िता के अधिकारों पर विचार किया जाना चाहिए।’

इलाहाबाद उच्च न्यायालय की रजिस्ट्री द्वारा दाखिल हलफनामे पर बुधवार को न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पीठ विचार कर सकती है। शीर्ष अदालत जघन्य अपराधों में दोषी ठहराए गए लोगों की 18 अपीलों पर विचार कर रही है। याचिकाकर्ता इस आधार पर जमानत दिए जाने का अनुरोध कर रहे हैं कि उन्होंने सात या अधिक साल जेल में बिताए हैं और उन्हें इस आधार पर जमानत दी जाए कि दोषसिद्धि के खिलाफ उनकी अपील को उच्च न्यायालय में नियमित सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाना लंबे समय से लंबित है।

हलफनामे में कहा गया है, ‘‘उच्च न्यायालय भारी संख्या में लंबित मामलों के कारण काफी दबाव का सामना कर रहा है। इसलिए, अभियुक्तों को इसका लाभ तब तक नहीं दिया जा सकता जब तक कि अपीलों पर जल्द निर्णय लेने के लिए समर्पित विशेष पीठों का गठन नहीं किया जाता है।’’ उच्च न्यायालय ने आगे कहा कि जैसा कि शीर्ष अदालत ने विभिन्न मामलों में कहा है कि उम्रकैद का मतलब ‘पूरी उम्र’ है, और इसे उसी संदर्भ में लेना चाहिए।

उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘यदि कोई व्यक्ति वर्षों तक जेल में रहने के बाद रिहा हो जाता है, तो आजीवन कारावास की सजा देने का उद्देश्य ही विफल हो जाएगा। यदि जघन्य अपराधों के आरोपी को वर्षों जेल में बिताने के बाद जमानत पर रिहा किया जाता है, तो वह अपनी अपील पर जल्द निर्णय लेने का कोई प्रयास नहीं करेगा।’’ उच्च न्यायालय ने उन अभियुक्तों की जमानत याचिकाओं को विनियमित करने के लिए कई अन्य सुझाव दिए, जिनकी अर्जियां लंबी अवधि से लंबित हैं।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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