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बाल कृष्ण दोशी : वास्तुकला में प्रकृति के स्वर भरने वाला चितेरा

By भाषा | Updated: December 12, 2021 13:20 IST

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नयी दिल्ली, 12 दिसंबर बाल कृष्ण दोशी- दुनिया के जाने माने वास्तुकार-कहने को तो ईंट पत्थर की बेजान इमारतें बनाते हैं, लेकिन वह उन्हें अपने जीवन दर्शन और सपनों का विस्तार मानते हैं। उनका कहना है कि हमारे आसपास की सभी चीजें- रोशनी, आसमान, पानी और आंधी सब में एक स्वर होता है यह स्वर वास्तुकला ही तो है। उनकी बनाई इमारतों में धूप छांव का खेल, परछाइयों की आंख मिचौली और उगते-ढलते सूरज के साथ बढ़ते-घटते साए उनकी इस बात को सही साबित करते हैं।

रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ ब्रिटिश आर्किटेक्ट्स (आरआईबीए) ने बाल कृष्ण दोशी को वर्ष 2022 का रायल गोल्ड मेडल देने का ऐलान किया है। वास्तुकला के क्षेत्र में यह दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों में से एक है और रॉयल गोल्ड मेडल को ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय द्वारा स्वयं अनुमोदित किया जाता है। यह सम्मान ऐसे किसी व्यक्ति या लोगों के समूह को दिया जाता है, जिनका वास्तुकला के विकास में महत्वपूर्ण योगदान हो।

आरआईबीए ने दोशी को इस पुरस्कार के लिए चुनते हुए कहा कि 94 वर्षीय दोशी ने 70 साल के अपने करियर में 100 से अधिक परियोजनाओं का निर्माण किया और अपने अनुभव तथा शिक्षण के माध्यम से भारत और उसके आसपास के क्षेत्रों की वास्तुकला को प्रभावित किया।

इस सम्मान के लिए चुने जाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर उन्हें बधाई दी। पीएम ने कहा कि वास्तुकला की दुनिया में दोशी का योगदान यादगार है। प्रधानमंत्री ने ट्वीट किया, 'प्रतिष्ठित वास्तुकार बालकृष्ण दोशी जी से बात की और उन्हें रॉयल गोल्ड मेडल 2022 से सम्मानित किए जाने पर बधाई दी।' प्रधानमंत्री ने कहा कि वास्तुकला की दुनिया में उनका योगदान ऐतिहासिक है। उनके कार्यों को उनकी रचनात्मकता, विशिष्टता और विविध प्रकृति के लिए विश्व स्तर पर सराहा जाता है।

पुणे में 1927 में फर्नीचर का काम करने वाले एक जाने माने परिवार में जन्मे बालकृष्ण दोशी ने मुंबई के जेजे स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर से पढ़ाई की और पढ़ाई पूरी करने के बाद 1950 में वे यूरोप चले गए। वहां उन्होंने 1951 से 1954 के बीच पेरिस की कुछ योजनाओं पर यूरोप के विश्वविख्यात वास्तुकार ले कॉर्बूसियर के साथ मिलकर काम किया। वास्तुशिल्प के जानकार दोशी के काम पर कॉर्बूसियर की झलक देखते हैं, खुद दोशी का भी मानना है कि वह ऐतिहासिक भारतीय स्मारकों से प्रेरित है और यूरोपीय तथा अमेरिकी वास्तुकारों का काम भी उन्हें प्रभावित करता है।

एक वास्तुकार के रूप में अन्तरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त करने के साथ ही दोशी एक शिक्षाविद् और संस्थान निर्माता के तौर पर भी जाने जाते हैं। वह अहमदाबाद के स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर के पहले संस्थापक निदेशक रहे, स्कूल ऑफ प्लानिंग के पहले संस्थापक निदेशक रहे, सेंटर फॉर एनवायरमेंट एंड टेक्नोलॉजी के पहले संस्थापक डीन रहे, अहमदाबाद के विजुअल आर्ट सेंटर के संस्थापक सदस्य रहे और कनोरिया सेंटर फॉर आर्ट्स अहमदाबाद के पहले संस्थापक निदेशक रहे।

एक वास्तुकार के रूप में सात दशक के अपने उजले करियर के दौरान दोशी को दुनियाभर के प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। इनमें 2018 में दिया गया वास्तुकला का नोबेल कहा जाने वाला प्रित्ज़कर अवार्ड शामिल है। उन्हें यह पुरस्कार देने की घोषणा करते हुए ज्यूरी ने कहा था, "बालकृष्ण दोशी द्वारा निर्मित वास्तुकला के नमूने हमेशा संजीदा और आम चलन से अलग रहे हैं। उन्होंने अपने डिजाइन से हमेशा यह बताया कि अच्छी वास्तुकला और शहरी योजना में उद्देश्य और ढांचे के साथ-साथ इसे बनाने के समय जलवायु, स्थान, तकनीक, कारीगरी और हस्तकला का भी ध्यान रखा जाना चाहिए।"

देश के प्रमुख नागरिक सम्मान पद्म श्री और पद्म विभूषण से सम्मानित बाल कृष्ण दोशी को ब्रिटेन का वास्तुकला का शीर्ष पुरस्कार दिया जाना उनके काम को दुनिया का सच्चा सलाम है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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