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Ayodhya Verdict: फैसले को लेकर सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने तस्वीर की साफ, कहा- हम नहीं दायर करेंगे रिव्यू पेटिशन 

By रामदीप मिश्रा | Updated: November 9, 2019 16:56 IST

Ayodhya Verdict: प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने भारतीय इतिहास की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण इस व्यवस्था के साथ ही करीब 130 साल से चले आ रहे इस संवेदनशील विवाद का पटाक्षेप कर दिया।

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ठळक मुद्देसुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद पर शनिवार (09 नवंबर) को एक ऐतिहासिक फैसला दिया, जिसमें राम मंदिर के निर्मारण का रास्ता साफ हो गया है।फैसला आने के बाद उत्तर प्रदेश के सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने साफ कर दिया है कि वह पुनर्विचार याचिका दायर नहीं करेंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद पर शनिवार (09 नवंबर) को एक ऐतिहासिक फैसला दिया, जिसमें राम मंदिर के निर्मारण का रास्ता साफ हो गया है। वहीं, फैसला आने के बाद उत्तर प्रदेश के सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने साफ कर दिया है कि वह पुनर्विचार याचिका दायर नहीं करेंगे। साथ ही साथ सर्वोच्च अदालत के फैसले का स्वागत किया। 

समाचार एजेंसी एएनआई की रिपोर्ट के अनुसार, पुनर्विचार याचिका दायर करने को लेकर उत्तर प्रदेश के सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष जफर फारूकी ने कहा, 'हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हैं और विनम्रतापूर्वक स्वीकार करते हैं। मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड कोर्ट आदेश की किसी भी समीक्षा के लिए नहीं जाएगा और न ही कोई उपचारात्मक याचिका दायर करेगा। इससे पहले शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे जवाद ने कहा, 'हम विनम्रतापूर्वक सुप्रीम कोर्ट के फैसले को स्वीकार करते हैं, मैं अल्लाह का शुक्रगुजार हूं कि मुसलमानों समेत बड़ी संख्या में लोगों ने इस फैसले को स्वीकार किया है और अब विवाद समाप्त हो गया है। हालांकि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के पास पुनर्विचार याचिका दायर करने का अधिकार है, मुझे लगता है कि मामला अब समाप्त होना चाहिए।'

बता दें कि शीर्ष अदालत ने फैसला सुनाते हुए राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ कर दिया है। अपना फैसला सुनाते समय कोर्ट ने कहा कि केन्द्र सरकार सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद के निर्माण के लिए पांच एकड़ जमीन वैकल्पित रूप से आवंटित करे।

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने भारतीय इतिहास की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण इस व्यवस्था के साथ ही करीब 130 साल से चले आ रहे इस संवेदनशील विवाद का पटाक्षेप कर दिया। इस विवाद ने देश के सामाजिक ताने बाने को तार तार कर दिया था। 

सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल थे। पीठ ने कहा कि 2.77 एकड़ की विवादित भूमि का अधिकार राम लला की मूर्ति को सौंप दिया जाये, हालांकि इसका कब्जा केन्द्र सरकार के रिसीवर के पास ही रहेगा। 

संविधान पीठ ने 2.77 एकड़ विवादित भूमि तीन पक्षकारों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला विराजमान- के बीच बराबर बराबर बांटने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर 16 अक्टूबर को सुनवाई पूरी की थी। 

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