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Ayodhya Verdict: सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने न्यूज चैनलों के लिए जारी की एडवाइजरी, बताया- रिपोर्टिंग में किन बातों का रखें ख्याल

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: November 9, 2019 15:16 IST

अयोध्या विवाद पर फैसला आने के बाद सूचना और प्रसारण मंत्रालय न्यूज चैनलों से प्रोग्राम कोर्ड का सख्ती से पालने करने के लिए कहा है।

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ठळक मुद्देसूचना और प्रसारण मंत्रालय ने सभी न्यूज चैनलों और केबल टीवी ऑपरेटर्स के लिए एडवाइजरी जारी की।मंत्रालय ने चैनलों से चर्चा, बहस और रिपोर्टिंग के दौरान प्रोग्राम कोड का सख्ती से पालन करने के लिए कहा है।

सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को अयोध्या में 2.77 एकड़ विवादित जमीन पर अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाया। 5 जजों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से विवादित भूमि को राम लला विराजमान को देने और मुस्लिम पक्ष को अयोध्या में ही 5 एकड़ की वैकल्पिक जमीन देने का फैसला किया।

कोर्ट ने कहा कि मंदिर निर्माण के लिए 3 महीने में ट्रस्ट बने और इसकी योजना तैयार की जाए। चीफ जस्टिस ने कहा कि ढहाया गया ढांचा ही भगवान राम का जन्मस्थान है और हिंदुओं की यह आस्था निर्विवादित है।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद सूचना और प्रसारण मंत्रालय (MIB) ने अयोध्या विवाद और अयोध्या पर फैसले को लेकर न्यूज चैनलों से किसी भी तरह की सनसनी नहीं फैलाने और प्रोग्राम कोर्ड का सख्ती से पालने करने के लिए कहा है।

सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने सभी न्यूज चैनलों और केबल टीवी ऑपरेटर्स के लिए एडवाइजरी जारी की और कहा कि वह अयोध्या पर आए फैसले को लेकर किसी भी तरह की चर्चा, बहस और रिपोर्टिंग के दौरान प्रोग्राम कोड का सख्ती से पालन करें। इसके अलावा मंत्रालय ने चैनलों से किसी भी तरह की धार्मिक किसी भी धर्म या समुदाय को लेकर विवादित चीजों को प्रमोट करने से बचने के लिए कहा है। चैनलों को आधे-अधुरे सच दिखाने से बचने के लिए भी कहा गया है।

अयोध्या विवाद में कब क्या हुआ

इतिहासकारों के मुताबिक, बाबर इब्राहिम लोदी से 1526 में भारत आया था। बाबर के सूबेदार मीरबाकी ने 1528 में अयोध्या में मस्जिद बनवाई। बाबर के सम्मान में इसे बाबरी मस्जिद नाम दिया गया। 

हिंदू समुदाय का कहना था कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी। बाबरी मस्जिद को कार सेवकों ने छह दिसंबर, 1992 को गिरा दिया था। इसके बाद 2002 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित ढांचे के मालिकाना हक को लोकर याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की।

2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि अयोध्या का 2.77 एकड़ का क्षेत्र तीन हिस्सों में समान बांट दिया जाए। एक हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड, दूसरा निर्मोही अखाड़ा और तीसरा रामलला विराजमान को मिले। हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 14 याचिकाएं दाखिल की गई थीं।

साल 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाई और 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद को लेकर दाखिल विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की। अगस्त 2019 में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर हिंदू और मुस्लिम पक्ष की अपीलों पर सुनवाई शुरू की और 16 अक्टूबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई पूरी हुई।

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