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Ayodhya Verdict: सुप्रीम कोर्ट ने कहा- मध्यस्थता समझौता है सशर्त, नहीं माना जा सकता बाध्यकारी

By भाषा | Updated: November 9, 2019 20:47 IST

अपने 1,045 पन्नों के फैसले में संविधान पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत को मध्यस्थता पैनल की जो रिपोर्ट मिली है उसपर मौजूदा विवाद के सभी पक्ष राजी नहीं हैं और न ही उन्होंने हस्ताक्षर किया है, लेकिन यह पूरी तरह से कुछ शर्तों को पूरा किए जाने पर निर्भर है।

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उच्चतम न्यायालय ने शनिवार को अपने फैसले में कहा कि राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को सौहार्दपूर्ण तरीके से सुलझाने के लिए जिस अयोध्या मध्यस्थता समझौते पर कुछ पक्षकार राजी हुए थे उसे बाध्यकारी नहीं माना जा सकता क्योंकि यह सशर्त है और कुछ शर्तों को मानने पर आधारित है।

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने हालांकि, विवाद से जुड़े सभी पक्षों को साफ और स्पष्ट बातचीत के लिए एक मंच पर लाने में मध्यस्थता पैनल की महत्वपूर्ण भूमिका की तारीफ की।

न्यायालय ने विभिन्न अपीलों में उठाए गए मुद्दों के स्थाई समाधान की संभावना तलाशने के लिए एक मध्यस्थता पैनल का गठन किया था जिसमें शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति एफ एम आई कलीफुल्ला, आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर और वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पांचू शामिल थे। अपीलों पर 16 अक्टूबर को अंतिम दलीलें पूरी हो गयी थीं, उसी दिन पैनल ने ‘समिति की अंतिम रिपोर्ट’ शीर्षक से अपनी रिपोर्ट न्यायालय को सौंपी।

पैनल ने कहा था कि मौजूदा विवाद को लेकर कुछ पक्षों में सहमति बन गयी है। हालांकि, समझौते के तहत सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड विवादित जमीन पर अपना सारा अधिकार, हित और दावा छोड़ने को तैयार हो गया था, लेकिन यह कुछ शर्तों को मानने और पूरा किए जाने पर निर्भर था।

अपने 1,045 पन्नों के फैसले में संविधान पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत को मध्यस्थता पैनल की जो रिपोर्ट मिली है उसपर मौजूदा विवाद के सभी पक्ष राजी नहीं हैं और न ही उन्होंने हस्ताक्षर किया है, लेकिन यह पूरी तरह से कुछ शर्तों को पूरा किए जाने पर निर्भर है। इसलिए इस समझौते को बाध्यकारी या विवाद के पक्षों के बीच का अंतिम समझौता नहीं माना जा सकता। 

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