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अयोध्या मामला: सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता पर फैसला रखा सुरक्षित, सभी पक्षों को नाम सुझाने का दिया आदेश

By भाषा | Updated: March 6, 2019 13:09 IST

शीर्ष अदालत में अयोध्या प्रकरण में चार दिवानी मुकदमों में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले के खिलाफ 14 अपील लंबित हैं। उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि अयोध्या में 2.77 एकड़ की विवादित भूमि तीनों पक्षकारों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच बराबर बांट दी जाये।

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अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि वह विवाद की गंभीरता और देश की राजनीति पर इस मध्यस्थता के नतीजे के असर से वाकिफ है।

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि मामला सिर्फ संपत्ति का नहीं है बल्कि यह भावनाओं और आस्था से भी जुड़ा है।

संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं। संविधान पीठ ने कहा, ‘‘यह सिर्फ संपत्ति का विवाद नहीं है। यह सोच , भावना और अगर संभव हुआ तो निदान से जुड़ा मामला है।’’ 

पीठ ने कहा, ‘‘मुगल शासक बाबर ने क्या किया और उसके बाद क्या हुआ हमें इससे मतलब नहीं है। मौजूदा समय में क्या हो रहा है, हम बस इसी पर विचार कर सकते हैं।’’ 

शीर्ष अदालत विचार कर रही है कि क्या इस विवाद को मध्यस्थता के जरिये सुलझाया जा सकता है।

शीर्ष अदालत ने सभी पक्षकारों को दशकों पुराने इस विवाद को मैत्रीपूर्ण तरीके से मध्यस्थता के जरिये निपटाने की संभावना तलाशने का सुझाव दिया था। न्यायालय ने कहा था कि इससे ‘‘संबंधों को बेहतर’’बनाने में मदद मिल सकती है।

शीर्ष अदालत में अयोध्या प्रकरण में चार दिवानी मुकदमों में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले के खिलाफ 14 अपील लंबित हैं। उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि अयोध्या में 2.77 एकड़ की विवादित भूमि तीनों पक्षकारों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच बराबर बांट दी जाये।

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