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विभिन्न संस्कृतियों के प्रति जागरूकता जरूरी : असम के राज्यपाल

By भाषा | Updated: December 25, 2021 19:46 IST

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गुवाहाटी, 25 दिसंबर असम के राज्यपाल प्रोफेसर जगदीश मुखी ने शनिवार को कहा कि एक दूसरे के प्रति सहिष्णुता पैदा करने और बातचीत के जरिए संघर्षों को सुलझाने के लिए विभिन्न संस्कृतियों के बारे में जागरूकता और शिक्षा जरूरी है।

एक आधिकारिक विज्ञप्ति के अनुसार राज्यपाल ने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य प्रारंभिक वर्षों से ही मानसिक दृष्टिकोण को व्यापक बनाने के लिए विभिन्न संस्कृतियों और विचारधाराओं के बारे में जानकारी प्रदान करना होना चाहिए। ‘उत्तर-आधुनिक भारत में सभ्यता का संघर्ष और इसके उपाय’ विषय पर यहां आयोजित एक सम्मेलन में मुखी ने कहा कि भाषा, संस्कृति, परंपरा और सबसे महत्वपूर्ण धर्म को प्रभावित करने वाले वैचारिक बंधनों को संघर्ष को बढ़ावा देने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

मुखी ने कहा, ‘‘भारत एक बहु सांस्कृतिक राष्ट्र है और विविध लोगों ने इस भूमि को अपना घर बनाया है और यहां के समाज में खुद को आत्मसात कर लिया है। हालांकि, संघर्ष तब उत्पन्न होता है जब कोई एक या अधिक समूह आर्थिक, भाषाई, सांस्कृतिक या राजनीतिक मोर्चे पर दूसरों पर अपना आधिपत्य जमाते हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘यह वास्तव में खुशी की बात है कि हमारे देश में विभिन्न धार्मिक, भाषाई और जातीय समूहों के लोग पूर्ण सद्भाव में रह रहे हैं। यह बातचीत के माध्यम से और अन्य समुदायों के प्रति पूर्वाग्रह को दूर करने के लिए, उनकी विश्वास प्रणालियों और सांस्कृतिक प्रथाओं के बारे में सहिष्णुता के मूल्य को विकसित करने के माध्यम से किया गया है।’’

राज्यपाल ने कहा कि अतीत में हालांकि राजाओं और साम्राज्यों के बीच उनकी विस्तारवादी नीतियों के कारण संघर्ष हुए, धीरे-धीरे संघर्ष की प्रकृति सांस्कृतिक संबद्धता की ओर मुड़ गई। उन्होंने आगाह किया, ‘‘यह एक खतरनाक प्रवृत्ति है जो मानव अस्तित्व की इमारत को कमजोर कर सकती है।’’

राज्यपाल ने कहा कि सांस्कृतिक संघर्ष की घटनाएं एक बड़े वैश्विक संकट में बदल सकती हैं। इस तरह के संघर्ष की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए इसके हल के लिए आक्रामक रूप से ‘जागरूकता, शिक्षा’ उत्पन्न करने की तत्काल आवश्यकता है।

उन्होंने कहा कि धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों में भिन्न समाजों के बीच तनाव और ध्रुवीकरण को कम करने के लिए, बच्चों और युवाओं को उन विविध संस्कृतियों और समुदायों के बारे में पढ़ाना आवश्यक है, जिनसे समाज का आशीर्वाद प्राप्त है।

उदाहरण के लिए, पूर्वोत्तर भारत के कई लोग भारत के अन्य हिस्सों में घृणा अपराधों और पूर्वाग्रह के शिकार हुए हैं। मुखी ने कहा कि इस पर बातचीत करनी होगी और बड़े पैमाने पर सूचना, शिक्षा और संचार के साथ इसमें बदलाव करना होगा।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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