अपहरणकर्ता के साथ नाबालिग लड़की की आसक्ति को बचाव के तौर पर स्वीकार नहीं किया जा सकता : न्यायालय
By भाषा | Updated: January 13, 2021 23:15 IST2021-01-13T23:15:18+5:302021-01-13T23:15:18+5:30

अपहरणकर्ता के साथ नाबालिग लड़की की आसक्ति को बचाव के तौर पर स्वीकार नहीं किया जा सकता : न्यायालय
नयी दिल्ली, 13 जनवरी उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि किसी नाबालिग लड़की की उसके कथित अपहरणकर्ता के साथ आसक्ति को बचाव के तौर पर स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि यह आरोपी के अपराध की गंभीरता की प्रकृति को कमतर करने के समान होगा।
शीर्ष अदालत ने 1998 में एक नाबालिग लड़की के अपहरण के लिए एक व्यक्ति को दोषी करार देते हुए यह कहा।
न्यायमूर्ति एन वी रमण की अध्यक्षता वाली पीठ ने संबद्ध कानूनी प्रावधानों का हवाला देते हुए कहा कि यह प्रतीत होता है कि वैध बचाव करने के बजाय याचिकाकर्ता (व्यक्ति) की दलीलें महज हमारी सहानुभूति पाने की कोशिश है लेकिन यह कानून को नहीं बदल सकता।
पीठ के सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए नजीर और न्यायमूर्ति सूर्यकांत भी शामिल थे।
न्यायालय ने व्यक्ति की एक याचिका पर अपना फैसला सुनाया। व्यक्ति ने गुजरात उच्च न्यायालय के 2009 के एक फैसले को चुनौती दी, जिसने आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार) के तहत उसकी दोषसिद्धि को निरस्त कर दिया था लेकिन अपहरण के अपराध के लिए उसकी दोषसिद्धि कायम रखी थी। उसे पांच साल की कैद की सजा सुनाई गई थी।
हालांकि शीर्ष अदालत ने उसकी कैद की अवधि उतनी घटा दी, जितने समय तक वह जेल में रह चुका है।
लड़की ने सुनवाई के दौरान दावा किया था कि उसे जबरन ले जाया गया, उसके साथ बलात्कार किया गया और इस व्यक्ति से शादी के लिए मजबूर किया गया। लेकिन बाद में जिरह के दौरान उसने व्यक्ति के साथ प्रेम संबंध होने की बात स्वीकार की थी।
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