नई दिल्ली, 16 अगस्त: गुजरात के दंगों ( 2002) के आरोप के छीटें तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पर पड़ा था। गुजरात में उस वक्त भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी। मुख्यमंत्री थे नरेंद्र मोदी, जिनपर गुजरात में हुए हिंसा को ना रोकने का इल्जाम लगा था। नरेन्द्र मोदी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेस कर अटल बिहारी वायजपेयी को चुप रहने पर भी मजबूर किया था।
मीडिया ने उस वक्त तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से नरेन्द्र मोदी के बारे में जानना चाहती थी। वायजपेयी ने उस वक्त सिर्फ इतना ही कहा था- मोदी को 'अपने राजधर्म का पालन' करना चाहिए। उन्होंने राजधर्म का मतलब भी समझाया, लेकिन वाजपेयी को अपने बारे में कुछ बोलता देख, नरेन्द्र मोदी उनकी तरफ तीखी नजरों से देखते हुए बोले- 'हम भी वही कर रहे हैं, साहिब।' वाजपेयी ने मौके की नजाकत को समझा और कहा, 'मुझे पूरा विश्वास है कि नरेंद्रभाई भी वही कर रहे हैं।'
इस घटना के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अपने सिंगापुर दौरे पर फ्लाइट के दौरान वाजपेयी चिंतित थे कि देश के बाहर उन्हें और शर्मिंदगी का सामना करना पड़ेगा। हालांकि तत्कालीन केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी ने वाजपेयी को लाल कृष्ण आडवाणी से बातचीत करने की सलाह दी।
सिंगापुर दौरे के आखिरी दिन प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक पत्रकार ने सिंगापुर में धार्मिक हिंसा का जिक्र करते हुए सवाल पूछा- भारत में ऐसी हिंसा एक बार नहीं, कई बार हुई है, भारत के अनुभव से सिंगापुर क्या सीख सकता है? वाजपेयी ने दुखी भाव से कहा- भारत में जो भी हुआ, बेहद दुर्भाग्यपूर्ण था। दंगे नियंत्रिण किए जा चुके हैं। अगर गोधरा स्टेशन पर, साबरमती एक्सप्रेस के यात्रियों को जिंदा जलाया नहीं गया होता, तो शायद गुजरात वीभिषा रोकी जा सकती थी। यह साफ है कि घटना के पीछे कोई साजिश थी।
इस घटना के बाद नरेन्द्र मोदी और वायजपेयी के रिश्तों में कुछ खटास आ गई थी। खबरों के मुताबिक नरेन्द्र मोदी का मंच पर किया गया व्यवहार अटल जी को पसंद नहीं आई थी।