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असम हिंदू-मुस्लिम एकता का है प्रतीक: सोनोवाल

By भाषा | Updated: December 13, 2020 16:51 IST

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(किशोर द्विवेदी)

नयी दिल्ली, 13 दिसंबर असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने कहा है कि असम ने सदियों के दौरान सद्भावपूर्ण सह-अस्तित्व का सटीक उदाहरण कायम किया है और वह हिंदुओं और मुसलमानों के बीच ‘एकता का प्रतीक’ रहा है जो वैष्णव संत श्रीमंत शंकरदेव से प्रेरित अजान पीर द्वारा लोकप्रिय बनाये गये गये भक्तिपूर्ण जिकिर गीतों से परिलक्षित होता है ।

सोनोवाल ने ‘‘द आईडेंटिटी कोशेंट: द स्टोरी ऑफ असमीज मुस्लिम’’ नामक एक नयी पुस्तक की प्रस्तावना में यह टिप्पणी की है। यह पुस्तक पत्रकार जाफरी मुदस्सिर नोफिल ने लिखी है और हर-आनंद प्रकाशन ने प्रकाशित की है।

सोनोवाल ने कहा, ‘‘असम ने सदियों के दौरान सद्भावपूर्ण सह अस्तित्व का सटीक उदाहरण कायम किया है। यह राज्य हिंदुओं और मुसलमानों के बीच ‘एकता का प्रतीक’ रहा है जो हिंदू-मुस्लिम मित्रता के अंतर्संबंध से स्पष्ट होता है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘श्रीमंत शंकरदेव से प्रेरित अजान पीर के जिकिर और जारी निश्चित रूप से उसी तरह धर्मनिरपेक्ष संदेश के पाठ पढ़ाते हैं जिस तरह डॉ. भूपेन हजारिका के गीत धर्मों और मानवता के बीच समानता, शांति और एकता के संदेश देते हैं। ’’

दरअअसल जिकिर और जारी, अजान पीर के असमिया भाषा के मुस्लिम भक्ति गीत हैं। अजान पीर असम के आध्यात्मिक आदर्श और सार्वभौमिक भाईचारे के प्रतीक बन गये। वह श्रीमंत शंकरदेव से प्रेरित थे और समाज में एकता का सेतु कायम करने में सफल रहे।

मुख्यमंत्री ने कहा कि यह पुस्तक असमी मुसलमानों की कहानी बयां करती है और मध्यकाल से उनकी वंशावली खंगालती है जब मुस्लिम शासकों एवं जनरलों ने इस क्षेत्र पर हमला किया था।

स्वयं असमी मुसलमान नोफिल ने नयी दिल्ली आने से पहले गुवाहाटी में ‘द सेंटिनल’ अखबार में कार्य करते हुए असम को कवर किया। अब वह नयी दिल्ली में प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (पीटीआई) में नेशनल डेस्क पर वरिष्ठ समाचार संपादक हैं।

सोनोवाल ने कहा, ‘‘ मैं इस किताब से खुश हूं कि जो राज्य के मुसलमानों के योगदान, उनके रीति रिवाज और उनके अनोखे व्यंजनों के बारे में बताती है। ऐतिहासिक उद्धरणों के साथ कथेतर विमर्श के अनोखेपन वाली इस पुस्तक के बारे में मेरा मानना है कि इसे लोग पढेंगे और सराहेंगे। ’’

नोफिल लिखते हैं, ‘‘यह पुस्तक बताती है कि कैसे असम के मुसलमान देश के बाकी मुसलमानों से अलग हैं। उन्हें अपने आप को पहले असमी कहलाने में गर्व होता है और वे कभी भी अपने को असमी हिंदुओं से कम असमी नहीं मानते हैं।’’

वह कहते हैं कि असमी मुसलमानों का योगदान बहुआयामी, विविध और विपुल है, ऐसे में चाहे राजनीति हो या सिविल सेवा, साहित्य एवं कला, शिक्षा या कानून, खेल, फिल्म एवं मनोरंजन जगत आदि सभी क्षेत्रों में उन्होंने शानदार प्रदर्शन किया है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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