"कस ली है कमर अब तो, कुछ करके दिखाएंगे, आज़ाद ही हो लेंगे, या सर ही कटा देंगे" आजादी के प्रति ऐसा समर्पण रखने वाले कोई और नहीं बल्कि अशफाक उल्ला खां थे। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में प्रमुख भुमिका निभाने वाले अशफ़ाक उल्ला खाँ अग्रणी क्रान्तिकारियों में से एक थे। वे पं रामप्रसाद बिस्मिल के सबसे खास मित्र थे। इनकी मित्रता के कई किस्से भी प्रचलित है। दोंनो ही शायरी करते थे। उन्होंने काकोरी काण्ड में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। काकोरी काण्ड के बाद शिथिल चल रही क्रांति की धार को एक दिशा मिला। इस क्रांति के बाद अंग्रेजों के चंगुल से जल्द से जल्द आजादी मिलने की कवायद तेज हो गई।
9 अगस्त, 1925 को सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर ट्रेन काकोरी स्टेशन पर रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अशफाक उल्लाह खान समेत आठ अन्य क्रांतिकारियों ने ट्रेन से खजाना लूटने की योजना बनाई। इस योजना को अंजाम तक पहुंचाने वाले स्वतंत्रता सेनानी, कवि और हिंदू-मुसलिम एकता को बढ़ावा देने वाले अशफाक उल्लाह खान ही थे। अशफाक उल्लाह खां की वर्षगांठ पर आज हम आपको उनके जीवन से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें बताएंगे।
अशफाक उल्ला खां की जीवनी
अशफाक उल्ला खां का जन्म 22 अक्टूबर 1900 ई. में उत्तरप्रदेश के शाहजहांपुर स्थित शहीदगढ़ में हुआ था। उनके पिता का नाम मोहम्मद शफीक उल्ला खान और उनकी मां का नाम मजहूरुनिशा बेगम था। बचपन में ही अशफाक का मन पढ़ाई में नहीं लगता था। बल्कि उनकी रुचि तैराकी, घुड़सवारी, निशानेबाजी में अधिक थी। उन्हें कविताएं लिखने का काफी शौक था, जिसमें वे अपना उपनाम हसरत लिखा करते थे।
बिस्मिल और अशफाक की दोस्ती
स्वतंत्रता संग्राम में जिस प्रकार से भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू की दोस्ती थी। ठीक उसी प्रकार से बिस्मिल और अशफाक की दोस्ती थी। मैनपुरी षड्यंत्र के मामले में शामिल रामप्रसाद बिस्मिल से हुई और वे भी क्रांति की दुनिया में शामिल हो गए। दोनों की दोस्ती हिंदू-मुसलिम एकता का प्रतीक मानी गई है। पहले ही मुलाकात में बिस्मिल अशफाक से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने उन्हें अपनी पार्टी ‘मातृवेदी’ का सक्रिय सदस्य बना लिया।
काकोरी कांड
सन् 1921 की अमदाबाद कांग्रेस में रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाक भी शामिल हुए। जब गांधी ने पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव मानने से इनकार कर दिया तो शाहजहांपुर के कई कांग्रेसी स्वयंसेवकों ने इसका विरोध किया। देश को आजाद कराने के लिए क्रांतियां शिथिल पड़ गई थी। क्रांतिकारी नेता नरम और गरम दल में बट गए थे। ऐसे वक्त में 9 अगस्त, 1925 को सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर ट्रेन काकोरी स्टेशन पर रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अशफाक उल्लाह खान समेत आठ अन्य क्रांतिकारियों ने ट्रेन से खजाना लूटने की योजना बनाई और इस योजना में सफलता ही हासिल हुई। खजाने की लूट के बाद ब्रिटिश सरकार की पुलिस अशफाक और उनके साथियों को पकड़ने में जुट गई। अशफाक के कई साथी गिरफ्तार हो गए, लेकिन अशफाक गिरफ्तारी से बच निकले। इसके बाद वे नेपाल, कानपुर, बनारस, बिहार आदि राज्यों में कुछ-कुछ काम करते रहे। हालांकि उन्हें दिल्ली में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
ब्रिटिश शासन ने उनके ऊपर अभियोग चलाया और 19 दिसम्बर सन् 1927 को उन्हें फैजाबाद जेल में फाँसी पर लटका दिया गया। उर्दू के अतिरिक्त वे हिन्दी व अँग्रेजी में आलेख व कवितायें करते थे। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास में बिस्मिल और अशफाक की भूमिका हिन्दू-मुस्लिम एकता का बेजोड़ उदाहरण है। उनकी एक रचना बहुत ही फेमस हुई थी। जो इस प्रकार है:
कस ली है कमर अब तो, कुछ करके दिखाएंगे,आज़ाद ही हो लेंगे, या सर ही कटा देंगे।
हटने के नहीं पीछे, डरकर कभी जुल्मों से,तुम हाथ उठाओगे, हम पैर बढ़ा देंगे।
बेशस्त्र नहीं हैं हम, बल है हमें चरख़े का,चरख़े से ज़मीं को हम, ता चर्ख़ गुंजा देंगे।
परवा नहीं कुछ दम की, ग़म की नहीं, मातम की,है जान हथेली पर, एक दम में गंवा देंगे।
उफ़ तक भी जुबां से हम हरगिज़ न निकालेंगे,तलवार उठाओ तुम, हम सर को झुका देंगे।
सीखा है नया हमने लड़ने का यह तरीका,चलवाओ गन मशीनें, हम सीना अड़ा देंगे।
दिलवाओ हमें फांसी, ऐलान से कहते हैं,ख़ूं से ही हम शहीदों के, फ़ौज बना देंगे।
मुसाफ़िर जो अंडमान के, तूने बनाए, ज़ालिम,आज़ाद ही होने पर, हम उनको बुला लेंगे।